tag:blogger.com,1999:blog-28258126949671599212024-03-13T08:36:14.457-07:00सरोकारAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-41135638339460399142019-02-28T05:17:00.003-08:002019-02-28T05:17:31.493-08:00अभिनंदन को छोड़ रहा पाक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://1.bp.blogspot.com/-748ffTqal1s/XHfdivAn1qI/AAAAAAAABDI/93R2OLRckmAfscntvOZtXHJXKRs59a4VACEwYBhgL/s1600/abhi.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1319" data-original-width="1199" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-748ffTqal1s/XHfdivAn1qI/AAAAAAAABDI/93R2OLRckmAfscntvOZtXHJXKRs59a4VACEwYBhgL/s320/abhi.jpg" width="290" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: x-small; text-align: start;">पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वहां की संसद में ऐलान किया कि बंदी बनाए गए विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को शुक्रवार 1 मार्च को भारत को सौंपा जाएगा। इमरान ने कहा कि पाकिस्तान शांति का संदेश देने के लिए यह कदम उठा रहा है। इससे पहले भारत ने पाकिस्तान से कहा कि वह तत्काल और बिना शर्त अभिनंदन को रिहा करे। इमरान ने कहा कि भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर अभिनंदन की रिहाई के बदले पाक सौदेबाजी की उम्मीद कर रहा है तो यह उसकी बड़ी भूल है। इस बीच पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने कहा कि अगर भारत तनाव कम करने को तैयार है, तो रिहाई पर विचार किया जा सकता है। ज्ञात हो कि भारत अभिनंदन की तुरंत रिहाई की उम्मीद कर रहा है। किसी तरह की सौदेबाजी का सवाल ही नहीं उठता। अगर पाकिस्तान सोचता है कि अभिनंदन के तौर पर उनके पास सौदेबाजी के लिए कोई कार्ड है, तो यह उसकी बड़ी भूल है। भारत उम्मीद करता है कि पाकिस्तान में अभिनंदन के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए। भारत ने एक्शन के दौरान किसी भी रिहायशी या सैन्य ठिकाने को निशाना नहीं बनाया, लेकिन पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर इसे बढ़ाया है। भारत ने जानबूझकर लाइन ऑफ कंट्रोल को पार नहीं किया, हमारे पास बहुत मजबूत वजह थी। भारत ने पाकिस्तान की युद्ध जैसे हालात बनाने की कोशिशों को नाकाम कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाक पीएम इमरान खान के बीच बातचीत के सवाल पर सूत्रों ने कहा- आतंकवाद के खिलाफ तुरंत, विश्वसनीय और प्रामाणिक कार्रवाई करने के बाद ही किसी तरह की बातचीत हो सकती है। पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हमारा यही संदेश है। पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद और दो पायलटों को पकड़ने को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से झूठ बोला। इसके अलावा भारतीय जहजों और मिसाइल स्ट्राइक के बारे में भी झूठ फैलाया। हम करतारपुर कॉरिडोर पर वार्ता के लिए तैयार हैं। उन्होंने (पाकिस्तान) इसे बंद कर दिया है, क्योंकि यह उसके हवाई क्षेत्र के नजदीक है। उन्होंने समझौता एक्सप्रेस भी रोक दी है। हम जिम्मेदारी दिखा रहे हैं और वे जंग का माहौल तैयार कर रहे हैं। उन्होंने मुंबई और पठानकोट हमले के सबूत देने पर भी आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। पुलवामा हमले के 13 दिन बाद भी जैश की भूमिका से इनकार किया। इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बैठक के दौरान भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बातचीत के सवाल पर कुरैशी ने कहा कि उन्हें कोई हर्ज नहीं है, लेकिन स्वराज के साथ बातचीत के लिए ओआईसी उचित मंच नहीं है। इससे पहले बुधवार को पाकिस्तान वायुसेना के तीन विमानों ने भारतीय वायु क्षेत्र का उल्लंघन किया था। वे यहां तीन मिनट तक रहे। पाक ने सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले की कोशिश की थी। वायुसेना ने घुसपैठ का जवाब देने के लिए 2 मिग-21 और 3 सुखोई-30 भेजे। मिग के पायलट ने एक पाकिस्तानी एफ-16 मार गिराया। हालांकि, इस दौरान हमारा एक मिग क्रैश हो गया, जिसके चलते पायलट विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान ने बंदी बना लिया। करगिल जंग के वक्त जब कम्बापति नचिकेता वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे तब उनकी उम्र 26 साल थी। उनके जिम्मे बटालिक सेक्टर की सुरक्षा थी। 27 मई 1999 को वे मिग-27 फाइटर प्लेन उड़ा रहे थे जब इंजन फेल हो जाने के चलते उन्हें इजेक्ट होना पड़ा और पैराशूट के सहारे वे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जा गिरे। पाकिस्तान के सैनिकों ने उनके साथ बुरी तरह मारपीट की। पाक सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के दखल के बाद उनके साथ बुरा बर्ताव रुका। भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाया और आठ दिन बाद नचिकेता की रिहाई हो सकी। 1965 की भारत-पाक जंग के वक्त भी कई भारतीय सैनिकों को पाक ने बंदी बना लिया था। इनमें एक स्क्वाड्रन लीडर केसी करियप्पा भी थे। उनके विमान को पाकिस्तानी वायुसेना ने निशाना बनाया था। इसके बाद उन्हें पाकिस्तान ने बंदी बना लिया था। जब जंग खत्म हुई तो चार महीने बाद उनकी रिहाई हो सकी।</span></div>
<span style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: x-small; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: red;">पिता ने कहा : बहादुर है बेटा</span></b><div class="separator" style="clear: both; color: #222222; text-align: center;">
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-bgwmOfqNWMg/XHfdrXEYQFI/AAAAAAAABDM/f1e7U2C7ka4FWTBF9FAQfwhuvH0BZ0NwwCEwYBhgL/s1600/father.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="335" data-original-width="296" height="320" src="https://1.bp.blogspot.com/-bgwmOfqNWMg/XHfdrXEYQFI/AAAAAAAABDM/f1e7U2C7ka4FWTBF9FAQfwhuvH0BZ0NwwCEwYBhgL/s320/father.jpg" width="282" /></a></div>
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</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: x-small; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
अभिनंदन के पिता रिटायर्ड एयर मार्शल एस वर्तमान वायु सेना में फाइटर पायलट रहे हैं। उन्होंने अपने एक संदेश जारी कर कहा, अभि जिंदा है। वह घायल नहीं है। वह मानसिक तौर पर मजबूत है। देखें कि किस तरह उसने बहादुरी से बात की। वह सच्चा सैनिक है। हमें उस पर गर्व है।वहीं पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा है कि भारत ने उनसे विंग कमांडर को छोड़ने की अपील की है। विदेश विभाग के प्रवक्ता शाह फैजल ने कहा कि भारत ने पायलट का मुद्दा पाक के समक्ष उठाया है। हम आने वाले दिनों में तय करेंगे कि कमाडंर पर क्या नियम लागू हों। उसे युद्धबंदी का दर्जा दिया जाए या नहीं।साथ ही पाक विदेश विभाग के प्रवक्ता ने ये भी कहा कि भारत को लगता है कि उनके पायलट से बुरा व्यवहार किया जा रहा है तो ये सही नहीं है। भारतीय कमांडर पूरी तरह सुरक्षित और स्वस्थ है। विदेश मंत्री ने ये भी कहा कि भारत को लगता है कि पाक ने कोई सैन्य कार्रवाई की। जबकि पाकिस्तान का निशाना भारत के सैन्य ठिकाने नहीं थे।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: x-small;"><br /></span></div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-77725319357347184402014-10-06T09:54:00.001-07:002014-10-06T09:54:53.259-07:00बेटे-बेटियों की सक्रियता से नेताओं को मिली फुर्सत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-iROdozEUGzQ/VDLJPwuojlI/AAAAAAAAArI/QxQ-v9tkIMQ/s1600/page3.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-iROdozEUGzQ/VDLJPwuojlI/AAAAAAAAArI/QxQ-v9tkIMQ/s1600/page3.jpg" height="200" width="175" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में अपनी पार्टियों को बढ़त दिलाने उतरे सभी नेताओं के पुत्रों और पुत्रियों ने मोर्चा संभाल लिया है, ताकि उनके पिता पूरे सूबे में घूम-घूम कर प्रचार कर सकें और उनकी सीट पर प्रचार सुचारु ढंग से चलता रहे। चुनाव प्रचार में लगे नेता पुत्रों में पहला नाम आता है आदित्य ठाकरे का, जो पार्टी की युवा इकाई के मुखिया भी है, ने मुंबई समेत राज्यभर में रैलियां करके शिवसेना के पक्ष में युवाओं को जोडऩे का अभियान चला रखा है। इसी तरह कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने भी अपने दोनों पुत्रों को कोंकण में लगा रखा है। निलेश राणे जो पूर्व सांसद हैं अपने अनुज और स्वाभिमान संगठन के अध्यक्ष नितेश राणे के साथ कोंकण के रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग और रायगढ़ जिले में कांग्रेस की ओर से व्यापक प्रचार अभियान छेड़े हुए हं। इस चुनाव में तो राज ठाकरे ने भी अपने पुत्र अमित को राजनीतिक प्रशिक्षण के लिए प्रचार में उतार दिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे भले ही पूरे राज्य में पार्टी के प्रचार में लगे हों, लेकिन उनके पुत्र राहुल ठाकरे यवतमाल जिले में सक्रिय हैं। वैसे तो वरिष्ठ नेताओं की कई संतानों को चुनाव लड़ते हुए देखा जा रहा है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बेटे अमित लातूर में, तो पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे की बेटी प्रणिती सोलापुर में एवं भाजपा के दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा अपनी बहन प्रितम के साथ न सिर्फ अपने गृह जिले बीड में भाजपा की कमान संभाले हुए हैं, बल्कि पूरे राज्य में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी भी पार्टी नें पंकजा को सौंप रखी है। राकांपा अध्यक्ष शरद पवार की सांसद बेटी सुप्रिया सुले भी प्रदेश भर में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों को जिताने के लिए सक्रिय हैं। वरिष्ठ राकांपा नेता विजयसिंह मोहिते पाटील के बेटे रणजीत सिंह भी लंबे समय से पिता की विरासत संभाले हुए हैं और इस चुनाव में उन्हें भी काफी सक्रिय देखा जा रहा है। नंदुरबार राकांपा के दिग्गज नेता रहे पूर्व मंत्री विजय गावित, जो अभी भाजपा में हैं और पूरे जिले में पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे हैं, लेकिन उनकी सांसद पुत्री डॉ. हिना गावित ने पिता की सीट पर मोर्चा संभाल रखा है। स्थानीय स्तर पर अगर देखा जाए, तो मुंबई में पूर्व सांसद एकनाथ गायकवाड की बेटी जो पूर्व में राज्य की मंत्री रही हंै, इस बार भी धारावी से मैदान में हैं। इसी तरह नवी मुंबई राकांपा के वरिष्ठ नेता गणेश नाईक के बड़े बेटे पूर्व सांसद संजीव इस बार के चुनाव में बेलापुर से अपने पिता गणेश और छोटे भाई संदीप का ऐरोली में चुनाव प्रचार संभाल रहे है। ठाणे शहर से राकांपा के दिग्गज नेता वसंत डावखरे इस चुनाव में अपने बेटे निरंजन को टिकट दिलाने में कामयाब रहे है। जो ठाणे शहर सीट से एनसीपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैंं। वहीं शिवसेना विधायक प्रताप सरनाईक के पुत्रपूर्वेश भी माजीवड़ा- ओवला सीट पर अपने पिता को कामयाबी दिलाने के लिए प्रयत्नशील हैं। कुलाबा से भाजपा प्रत्याशी राज के. पुरोहित ने भी पुत्र आकाश को चुनावी जिम्मेदारी सौंप कर आगामी सियासत के लिए तैयार होने का इंतजाम कर दिया है। वसई- विरार के नेता हितेन्द्र ठाकुर का बेटा क्षितिज नालासोपारा से खुद चुनाव लड़ रहा है, तो भाईंदर से राकांपा प्रत्याशी गिल्बर्ट मेंडोसा की दो पुत्रियां और एक पुत्र उनके चुनाव कार्य को संभाले हुए हैं। मेंडोसा की बड़ी बेटी केटलीन महापौर हैं, तो बेटा वेंचर और बेटी असेन्ला कार्पोरेटर हैं। दहिसर से शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ रहे विनोद घोसालकर के प्रचार की कमान जहां उनके नगरसेवक पुत्र अभिषेक ने संभाल रखी है, वहीं दिंडोशी के विधायक राजहंस सिंह के पुत्र नितेश भी पिता की राजनैतिक विरासत को संभालते हुए चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
इस चुनाव में अपनी संतानों को काम पर लगाकर नेतागण जहां उनके प्रशिक्षण का इंतजाम कर दिये हैं, वहीं नेताओं को भी काफी राहत महसूस हो रही है और वे अपना क्षेत्र छोड़कर राज्य भर में दौरे करके प्रचार कर रहे हैं।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-16904802886601797172014-10-06T05:51:00.001-07:002014-10-06T05:51:03.018-07:00दक्षिण मुंबई में भाजपा के निशाने पर कांग्रेस, सेंध लगना तय <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-aA0Zg96oj4k/VDKQDglUF1I/AAAAAAAAAq4/7SJjXk5GzrA/s1600/arun%2Bupadhyay.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-aA0Zg96oj4k/VDKQDglUF1I/AAAAAAAAAq4/7SJjXk5GzrA/s1600/arun%2Bupadhyay.JPG" height="200" width="174" /></a> संसदीय क्षेत्रवार चल रही चुनावी परिक्रमा में आज बात दक्षिण मुंबई की, जहां की तीन सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं। एक जगह बीजेपी का विधायक है, तो एनसीपी और मनसे के एक-एक विधायक हैं। किसी जमाने में भाजपा का मजबूत गढ़ रही इस संसदीय सीट पर कामगार नेता रहे जार्ज फर्नांडीज, कैलाश नरूला, सदाशिव पाटील, रतनसिंह राजदा, मुरली देवड़ा, जयवंतीबेन मेहता, मिलिंद देवड़ा आदि ने प्रतिनिधित्व किया है। वर्तमान में शिवसेना के अरविंद सावंत इस सीट पर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। जिन्होंने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा से यह सीट छीनी है। कोलाबा से लेकर माहिम तक फैले इस संसदीय भूभाग पर कब्जा करने के लिए इस बार भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस इस कोशिश में है कि उसके विधायकों की संख्या न भी बढ़ सके तो जितने हैं कम से कम उतने तो बने रहें। एनसीपी भी अपनी वर्ली सीट बचाने को प्रयासरत है, तो मनसे ने शिवडी सीट फिर से हालिस करनेे के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है। आइये शुरुआत करते हैं मलबार हिल विधानसभा सीट से, जहां १९९० में कांग्रेस के बीए देसाई जीते थे। उसके बाद से लगातार यह सीट भाजपा के खाते में जा रही है। यहां से प्रवासी भाजपा विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा चार बार विधायक रह चुके हैं। इस बार वे पांचवीं दफा मैदान में हैं। गत चुनाव में यहां लोढ़ा को जहां ५८ हजार से अधिक वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस के राजकुमार बाफना को महज ३३ हजार के करीब मतों से संतोष करना पड़ा था। बाफना दूसरे पर रहे और मनसे के अर्चित जयेकर ने २५ हजार वोट हासिल कर तीसरी जगह बनाई थी। इस बार लोढ़ा पुन: जोर शोर से अपना वर्चस्व बरकारार रखने को मैदान में हैं। जिनके सामने शिवसेना के अरुण दुधवडकर बड़ी चुनौती के रूप में उभरे हैं। हालांकि कांग्रेस ने यहां सुशीबेन शाह के रूप कमजोर चेहरा उतारा है और राकांपा के नरेंद्र राणे भी चुनावी मुकाबले में नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में तय है कि यहां टक्कर भाजपा और सेना में ही होगी। दूसरी महत्वपूर्ण सीट है कुलाबा की, जो देवड़ा परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है। मुरली देवड़ा की करीबी एनी शेखर ने गत चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे राज के. पुरोहित को ८ हजार के करीब मतांतर से पराजित किया था। पिछले चुनाव में शेखर को ३९ हजार तथा पुरोहित को ३१ हजार वोट ही मिल पाये थे। मनसे के अरविंद गावड़े यहां २२ हजार वोट लेकर तीसरे पर थे। इस बार के चुनाव में जहां भाजपा के पक्ष में हवा है, वहीं शिवसेना का अलग लडऩा भगवा मतों का विभाजन करता है, जिससे यहां कांग्रेस फायदे में दिख रही है। कोलाबा सीट पर शेखर और पुरोहित के अलावा शिवसेना के पांडुरंग सकपाल, मनसे के अरविंद गावड़े और राकांपा के बशीर पटेल भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार मतदान के दो दिन पूर्व ही इस सीट का समीकरण साफ हो पाएगा। वैसे यहां कांग्रेस से भाजपा और शिवसेना दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार बराबरी पर लड़ रहे हैं। मुंबा देवी सीट पर लगातार तीन बार विधायक रहे राज के. पुरोहित परिसीमन के बाद पिछले चुनाव में कोलाबा चले गये थे, तो मित्र पक्ष शिवसेना ने गत चुनाव में अनिल पडवल को उतारा था। जो २८ हजार वोटों तक ही सिमट गये थे। यहां ४५ हजार वोट पाकर कांग्रेस के अमीन पटेल विजयी घोषित किये गये थे। समाजवादी पार्टी के बशीर पटेल को गत चुनाव में महज १९ हजार वोट ही मिल पाये थे। इस बार के चुनाव में कांग्रेसी विधायक अमीन पटेल के सामने भाजपा ने अतुल शाह को उतारा तो है, लेकिन अतुल का चुनाव प्रचार अभी तक रंग नहीं पकड़ पाया है। वैसे शिवसेना की उम्मीदवार योगिंद्रा सालेकर के मैदान में होने से अतुल की राह और भी मुश्किल हो गयी है। इसी तरह भायखला सीट पर कांग्रेस के मधु चव्हाण विधायक हैं, तो उनके सामने भाजपा ने भी मधु चव्हाण को ही उतारा है। यहां शिवसेना का उम्मीदवार तो नहीं है, मगर अरुण गवली की बेटी गीता को सेना द्वारा समर्थन दिये जाने से भायखला की लड़ाई तिकोनी हो गयी है। शिवड़ी सीट पर मनसे के बाला नांदगावकर वर्तमान विधायक हैं। उनके सामने शिवसेना अजय चौधरी को उतारा है, तो भाजपा ने महिला मोर्चे की नेता शलाका साल्वी को उम्मीदवारी दी है। यहां मनसे और शिवसेना के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। वर्ली विधानसभा सीट से सचिन अहीर राकांपा के टिकट पर विधायक हैं। जिनके सामने भाजपा ने सुनील राणे को उतारा है, तो शिवसेना के टिकट पर सुनील शिंदे मैदान में हैं। क्षेत्र में सचिन की मजबूत पकड़ को भाजपा से तो चुनौती नहीं मिल रही है। हां, इतना जरूर है कि शिवसेना के सुनील शिंदे सचिन का विजय रथ रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दिये हैं। दक्षिण मुुंबई में कांग्रेस के तीनों विधायकों के सामने भाजपा जिस रणनीति से उतरी है, यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि कांग्रेसी विधायकों की संख्या घटना तय है और यहां भाजपा की बढ़त भी निश्चित है। अब सवाल उठता है कि क्या मनसे और राकांपा का अस्तित्व यहां बचा रह पाएगा। इसके लिए हमें चुनाव परिणाम का इंतजार करना होगा। </div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-61155840933743847292014-10-05T06:54:00.002-07:002014-10-05T06:54:55.525-07:00 उत्तर पूर्व में संख्या बढ़ाने उतरी भाजपा, मनसे के लिए अस्तित्व का संकट<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-0k-GhmKwtII/VDFNl_FqEJI/AAAAAAAAAqo/O9tRxEh3uuQ/s1600/north%2Beast.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-0k-GhmKwtII/VDFNl_FqEJI/AAAAAAAAAqo/O9tRxEh3uuQ/s1600/north%2Beast.JPG" height="200" width="166" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
महानगर की उत्तर पूर्व सीट का इतिहास-भूगोल शुरू से बड़ा अजीब रहा है। यहां से भाजपा के वरिष्ठ नेता हसू आडवाणी, प्रमोद महाजन, जयवंतीबेन मेहता, प्रकाश मेहता और सरदार तारासिंह ने सियासत की लम्बी पारी खेली है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुरुदास कामत भी इसी सीट से पहले सांसद हुआ करते थे। यहां की अलग-अलग विधान सभा क्षेत्रों में कहीं गुजराती तो कहीं पर मराठियों का बाहुल्य है। किसी इलाके में सिंधी तो कहीं अल्पसंख्यक मुसलमानों का बाहुल्य है। इस क्षेत्र की दो विधानसभाओं पर वत्र्तमान में भाजपा का कब्जा है, तो तीन सीटें मनसे के कब्जें में रहीं। एक सीट पर समाजवादी पार्टी का विधायक गत चुनाव में जीता था। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
सबसे पहले ठाणे शहर की सीमा से सटी मुलुंड विधान सभा सीट पर चर्चा करते हैं। यहां बीजेपी के सरदार तारा सिंह लम्बे समय से कब्जा जमाये हुए हैं। यहां 2004 में सरदार को 90 हजार वोट मिले थे, तो 2009 में उनके मत घट कर 65 हजार हो गए थे। तारा सिंह के मतों के घटने का क्रम गत चुनाव की तरह ही जारी रहा तो इस बार यहां बीजेपी को बड़ी मुश्किल हो जाएगी। यहां सरदार तारा सिंह के विजय रथ को रोकने के लिए कांग्रेस ने जहां अपने पूर्व एमएलसी चरणसिंह सप्रा को उम्मीदवारी दी है, वहीं शिवसेना ने प्रभाकर शिंदे को उतार कर इलाके के मराठी मतों को साधने की कोशिश की है। राकांपा के टिकट पर नंदकुमार वैती और मनसे की तरफ से सत्यवान दलवी मैदान में हैं। इस सीट पर सरदार तारा सिंह का सामना या तो चरणसिंह सप्रा से होगा या फिर शिवसेना के प्रभाकर शिंदे से उनकी टकराहट होगी। हिंदीभाषियों के साथ ही इस इलाके में मराठी और सिंधी लोगों की संख्या बहुतायत है। अब बात विक्रोली सीट की, जहां से रांकापा ने अपने पूर्व सांसद संजय दीना पाटील पर दांव लगाया है। मनसे के वर्तमान विधायक मंगेश सांगले, शिवसेना सांसद संजय राऊत के अनुज सुनील राऊत शिवसेना के टिकट पर और कांग्रेस की ओर से संदेश म्हात्रे मैदान में हैं। यहां भाजपा का उम्मीदवार नहीं है। इस सीट पर गठबंधन के मित्र दल आरपीआई ने विवेक पंडित को टिकट दिया है। यह सीट राकांपा के लिए जितनी प्रतिष्ठापरक है, उससे कहीं ज्यादा मनसे के लिए । राकांपा अपने पूर्व सांसद को उतारकर यहां कब्जा जमाना चाह रही है, तो मनसे अपनी विधायकी बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। इस सीट पर गत चुनाव में तत्कालीन सांसद संजय पाटिल की पत्नी पल्लवी राकांपा की प्रत्याशी थी, जिनको मनसे उम्मीदवार मंगेश सांगले ने बड़े अंतर से पराजित किया था। अब संजय पाटिल के सामने पत्नी की हार का बदला लेने की बड़ी चुनौती है। घाटकोपर पूर्व की सीट गुजराती बाहुल्य है। यहां गुजराती-मारवाड़ी जैनों के ४५ हजार से अधिक वोट हैं। इसी के सहारे भाजपा के प्रकाश मेहता गत कई चुनावों से जीतते आ रहे हैं। इस बार कांग्रेस ने उनके सामने प्रवीण छेड़ा के रूप में जैन प्रत्याशी उतार दिया है। जगदीश चौधरी यहां शिवसेना का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तो सतीश नारकर मनसे के टिकट पर उतरे हैं। राकांपा ने नगरसेविका राखी जाधव को टिकट दिया है। स्थितियों को देखकर यही लगता है कि यहां प्रकाश मेहता और प्रवीण छेड़ा के बीच में ही मुकाबला होगा। भांडुप पश्चिम सीट पर मनसे के शिशिर शिंदे वर्तमान में विधायक हैं और फिर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उनका सामना भाजपा के मनोज कोटक, शिवसेना नगरसेवक अशोक पाटिल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण राणे समर्थक श्याम सावंत से होना है। आरपीआई ने गठबंधन धर्म तोड़ते हुए यहां अनिल गागुर्डे को बतौर निर्दलीय उम्मीदवार उतारा है। इस सीट पर मनसे और शिवसेना में टक्कर देखी जा रही है। घाटकोपर पश्चिम सीट पर मनसे के रामकदम गत चुनाव में जीते थे, जो अब भाजपा के हो लिए हैं। कदम की जगह मनसे ने उन्हें चुनौती देने के लिए अपने नगरसेवक व विभागीय अध्यक्ष दिलीप लांडे को उम्मीदवारी दी है। शिवसेना के सुधीर मोरे और कांग्रेस के रामगोविंद यादव भी इस सीट पर मैदान में हैं। राकांपा के नगरसेवक हारुन खान भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यहां राम कदम या तो मनसे से टकराएंगे या फिर उनका मुकाबला शिवसेना से होगा। मानखुर्द शिवाजी नगर की सीट मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है। ९० के दशक में यहां शिवसेना का कब्जा हुआ करता था। परिसीमन के बाद गोवंडी इलाका इस क्षेत्र में समाहित हो गया, जिससे यहां अल्पसंख्यक मतदाता ज्यादा हो गये हैं। इस सीट पर सपा के प्रदेश अध्यक्ष अबू आजमी वर्तमान में विधायक हैं। उनके सामने कांग्रेस ने यूसुफ अब्राहनी को उतारा है। शिवसेना ने पूर्व नगरसेवक बुलेट पाटिल को टिकट दिया है। भाजपा की ओर से शनीम बानू मैदान में हैं। मनसे ने सुहैल अशरफ को उतारा है तथा इस सीट पर ओवैसी की पार्टी का उम्मीदवार भी मैदान में है। यहां भाजपा की हालत सबसे कमजोर है। पार्टी ने जिस शनीम को टिकट दिया है, वो गत लोकसभा चुनाव में निर्दलीय लड़ी थी और हजार के भीतर ही वोट पा सकी थी। अब भाजपा ने शनीम पर दांव लगाकर घाटे का सौदा किया है। इस संसदीय सीट पर पहले से मनसे के तीन विधायकों में अब दो बचा है। चुनाव परिणाम के बाद देखना है ये दोनों कायम रहते हैं या संख्या घटती है। सपा की एक सीट भी यहां खतरे में लग रही है। भाजपा के दोनों वर्तमान विधायक मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। संभव है राम कदम के रूप में भाजपा को एक और विधायक मिल जाए। </div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-28815720565241122582014-10-03T10:57:00.003-07:002014-10-03T10:57:56.193-07:00दक्षिण मध्य मुंबई में निर्णायक होंगे भूमिपुत्र मतदाता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-A4o_raq5ywk/VC7jibyfgwI/AAAAAAAAAqY/-JN4vj7vz-k/s1600/south-central.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-A4o_raq5ywk/VC7jibyfgwI/AAAAAAAAAqY/-JN4vj7vz-k/s1600/south-central.jpg" height="200" width="179" /></a></div>
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लगातार दो बार से कांग्रेस के सांसद रहे एकनाथ गायकवाड़ को हराकर शिवसेना ने भले ही दक्षिण मध्य संसदीय सीट पर कब्जा जमा लिया है, लेकिन विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस की स्थिति ठीक ठाक लग रही है। इतना जरूर है कि लोकसभा क्षेत्र की बहुत सी सीटें मराठी बाहुल्य हैं। अगर भूमिपुत्र मतदाता एकजुट हुए तो इस क्षेत्र में शिवसेना का प्रदर्शन बेहतर रहेगा। दक्षिण मध्य संसदीय क्षेत्र में चेंबूर में कांग्रेस के चंद्रकांत हंडोरे विधायक हैं, तो अणुशक्ति नगर सीट से राकांपा के नवाब मलिक गत चुनाव में जीते हुए थे। धारावी सीट पर कांग्रेस की वर्षा गायकवाड तथा सायन कोलीवाड़ा से कांग्रेस के ही जगन्नाथ शेट्टी निवर्तमान विधायक हैं। इसी तरह वडाला सीट भी कांग्रेस के खाते में हैं, जहां से कालिदास कोलंबकर विधायक हैं और माहिम विधानसभा क्षेत्र पर मनसे का कब्जा है। यहां से नितिन सरदेसाई पिछले चुनाव में जीते थे। क्षेत्र की ६ विधानसभा सीटों में से ४ पर जहां कांग्रेस काबिज है, वहीं एक सीट मनसे के खाते में है तथा एक सीट पर राकांपा को जीत मिली थी। अब अगर इस चुनाव की बात करें, तो बदले हुए समीकरणों के साथ सभी दलों की निगाहें यहां के बहुसंख्य मराठी मतदाताओं पर लगी है। सबसे पहले नजर डालते हैं चेंबूर सीट पर, जो बौद्ध बाहुल्य मानी जाती है। यहां से कांग्रेस का दलित चेहरा माने जाने वाले चंद्रकांत हंडोरे लगातार दूसरी बार विधायक हैं। हंडोरे के सामने शिवसेना ने प्रकाश फातफेकर को उम्मीदवारी देकर दलित मतदाताओं को रिझाने का प्रयास किया है। भाजपा की ओर से यह सीट गठबंधन के तहत आरपीआई को दी गई है। आरपीआई के टिकट पर यहां से माफिया डान छोटा राजन के भाई दीपक निखालजे प्र$त्याशी हैं। यहां देखना यह है कि दलित मतदाताओं का झुकाव किस तरफ होता है। वैसे अगर दलित वोट हंडोरे और निखालजे में बंटे और मराठी मतदाता एकजुट रहे, तो यहां बाजी शिवसेना के हाथ लग सकती है। इसके बगल की सीट अणुशक्ति नगर से वर्तमान राकांपा विधायक और पार्टी के प्रवक्ता नवाब मलिक फिर से मैदान में हैं। जिनके सामने शिवसेना ने तुकाराम काते को उतारा है और भाजपा के टिकट पर संदीप असोलकर मैदान में हैं। यहां राकांपा और शिवसेना में कांटे की टक्कर के बावजूद मलिक की स्थिति ठीकठाक लग रही है। इस सीट पर सबकुछ निर्भर करता है मराठी मतदाताओं पर । उनका एकमुश्त झुकाव जिधर हुआ, विजयश्री उसी खेमे की होगी। क्षेत्र की एकमात्र सुरक्षित सीट है धारावी की, जहां से पूर्व मंत्री वर्षा गायकवाड़ कांग्रेस के टिकट पर तीसरी बार मैदान में हैं। वर्षा पूर्व सांसद एकनाथ गायकवाड़ की बेटी हैं और दो बार विधायक रह चुकी हैं। उनके सामने भाजपा ने नगरसेविका दिव्या ढोले को उतारा है। शिवसेना के टिकट पर पूर्व विधायक बाबूराव माने मैदान में हैं। यहां वर्षा और बाबूराव के बीच जोरदार मुकाबला होने की संभावना है। सायन कोलीवाड़ा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के विधायक जगन्नाथ शेट्टी फिर से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उनके सामने शिवसेना के मंगेश साटनकर और भाजपा नगरसेवक तमिल शेलवन मैदान में हैं। यहां शेट्टी और साटनकर के बीच रोचक मुकाबला देखा जा रहा है। इसी तरह वडाला सीट पर कांग्रेस के विधायक कालिदास कोलंबकर फिर से मैदान में उतरे हैं। कोलंबकर किसी जमाने में शिवसेना के कद्दावर विधायक माने जाते रहे हैं, जो नारायण राणे के साथ कांग्रेस में शामिल हुए थे और शिवसेना की विधायकी से इस्तीफा देकर उप चुनाव में कांग्रेस के बैनर तले फिर से विधायक चुने गये। इस बार कोलंबकर का सामना शिवसेना के हेमंत डोके और भाजपा के मिहिर कोटेचा से होना है। यहां भी कांग्रेस और शिवसेना में ही भिड़ंत होती दिख रही है। लेकिन सारा दारोमदार मराठी वोटर्स पर निर्भर करेगा। अब बात माहिम विधानसभा सीट की, जहां से मनसे के निवर्तमान विधायक नितिन सरदेसाई के सामने शिवसेना के सदा सरवणकर मजबूती के साथ प्रचार में जुटे हैं। भाजपा ने इस सीट पर विलास अंबेकर को उतारा है। कांग्रेस के दो बागी हेमंत नंदपल्ली और संदीप कटके ने नामांकन करके कांग्रेस प्रत्याशी को चुनाव से पहले ही कमजोर कर दिया है। गत चुनाव में यहां सदा सरवणकर कांग्रेस के टिकट पर उतरे थे। उस समय वे राणे के साथ शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में गये थे। इस बार पुन: अपने घर (शिवसेना) में आकर विधानसभा चुनाव में न सिर्फ किस्मत आजमा रहे हैं, बल्कि मनसे के कद्दावर नेता नितिन सरदेसाई को जोरदार टक्कर भी दे रहे हैं। दक्षिण मध्य मुंबई संसदीय सीट का गहन अध्ययन करने पर निष्कर्ष यही निकलता है कि यहां से मराठी मतदाताओं को जो भी अधिक से अधिक खींच लेगा, उसके ही ज्यादा विधायक चुने जाएंगे। </div>
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विले पार्ले, कुर्ला, कलिना, बांद्रा पूर्व-पश्चिम और चांदिवली विधानसभाओं में बंटा हुआ है मुंबई का उत्तर मध्य संसदीय क्षेत्र, जहां फिलहाल तो कांग्रेस का ही कब्जा है। सिर्फ बांद्रा पूर्व की एक सीट शिवसेना के पास है। इस पूरे संसदीय क्षेत्र में सुनील दत्त के समय से लेकर प्रिया दत्त तक कभी किसी की दाल नहीं गली, मगर हाल के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर का फायदा उठाते हुए पूनम महाजन ने यहां भगवा फहरा दिया। इस प्रमुख संसदीय सीट में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है, जबकि यहां से पार्टी ने एक से एक चेहरे उतारे हैं। जिन्हें चुनाव प्रचार के दौरान कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली सफलता से बांछे खिलाये भाजपाई इस बार भी जोर शोर से उतरे तो हैं, लेकिन एकाध सीट को छोड़ दें, तो कहीं से भी भाजपा को मजबूत स्थिति में नहीं देखा जा रहा है। इलाके की सबसे महत्वपूर्ण सीट है कलिना, जो सांताक्रुज पूर्व से लेकर कुर्ला तक फैली हुई है। यहां से कांग्रेस ने पूर्व गृहराज्य मंत्री कृपाशंकर सिंह को उतार कर अपना कब्जा बरकार रखने का प्रयास किया है। गत चुनाव में यहां मनसे के श्रीकांत मोरे दूसरे स्थान पर रहे। मोरे इस बार भी मैदान में डटे हैं। शिवसेना ने अपने वरिष्ठ नगरसेवक संजय पोतनिस को उम्मीदवारी दी है। भाजपा के टिकट पर उत्तर भारतीय चेहरे के रूप में अमरजीत सिंह को उतारा गया है। यहां कृपा और अमरजीत के बीच टक्कर संभावित है। यह भी हो सकता है कि दोनों सिंहों की लड़ाई का फायदा किसी भूमि पुत्र को मिल जाय। दूसरी अहम सीट है चांदिवली। जो अंधेरी पूर्व के साकीनाका, पवई और मरोल आदि विस्तारों को समेटे हुए है। यह सीट इस लिए भी खास मानी जाती है कि यहां से मुंबई उप नगर के पालक मंत्री नसीम खान कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। यहां भाजपा लड़ाई से पहले ही आउट हो गयी है। भाजपा के घोषित उम्मीदवार सीताराम तिवारी नामांकन के साथ बराबर शपथ पत्र नहीं लगाये थे, जिस वजह से तिवारी का नामांकन खारिज हो गया और भाजपा बिना लड़े ही रिंग से बाहर हो गयी। यहां शिवसेना ने युवा उत्तर भारतीय नेता संतोष सिंह पर दांव लगाया है, जो उत्तर भारतीय संघ अध्यक्ष आर.एन. सिंह के सुपुत्र हैं। मनसे की ओर से इस सीट पर ईश्वर तायड़े मैदान में हैं। यहां भी दोनों उत्तर भारतीय प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर देखी जा रही है। नसीम खान और संतोष सिंह दोनों ही मुंबई की राजनीति में हिंदी भाषी चेहरा हैं। अब बात विले पार्ले की, जहां कांग्रेस के वर्तमान विधायक कृष्णा हेगड़े के सामने भाजपा ने पूर्व नगरसेवक पराग अलवणी को मैदान में उतारा है। पराग पूर्व में भी इस सीट पर भाजपा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन जीत नहीं पाये थे। इस बार पूर्व विधायक अभिराम सिंह राकांपा छोड$़कर भाजपा में आ गये हैं, जिससे पराग को ताकत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण सीट है बांद्रा पश्चिम की, जहां पार्टी ने मुंबई अध्यक्ष आशीष शेलार को उतारा है, जिनका सामना होगा कांग्रेसी विधायक बाबा सिद्दीकी से। बाबा की जड़े यहां काफी गहरी मानी जाती हैं। इसके बावजूद मोदी के नाम का सहारा लेकर शेलार मैदान में डटे हुए हैं। शिवसेना ने इस सीट पर शशिकांत पराडकर को उतार कर माहौल को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है, लेकिन क्षेत्र में मराठी मतदाताओं की कमी शिवसेना को जरूर खलेगी। मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष जनार्दन चांदुरकर इसी इलाके की बांद्रा पूर्व सीट से मैदान में हैं, जो शिवसेना के वर्तमान विधायक बाला सावंत से टकराएंगे। भाजपा ने यहा खार पूर्व के नगरसेवक महेश पारकर को टिकट दिया है। अगर पारकर ने अच्छी बढ़त हासिल की, तो निश्चित ही शिवसेना कमजोर होगी और बाजी चांदुरकर के पक्ष में जा सकती है। कुर्ला सीट पर किसी भी पार्टी ने कद्दावर चेहरा नहीं उतारकर इसे उपेक्षित कर दिया है। यहां राकांपा के मिलिंद कांबले, भाजपा के विजय कांबले, शिवसेना के मंगेश कुराडकर और कांग्रेस के बीजी शिंदे मैदान में हैं, लेकिन इनमें से एक भी ऐसा चेहरा नहीं है, जो अभी चुनावी हवा को अपने पक्ष में करता दिख रहा हो। उत्तर मध्य संसदीय सीट के अध्ययन से एक बात सामने आयी है कि यहां कांग्रेस व भाजपा ने जहां अपने मुंबई अध्यक्षों को उतारा है, वहीं कृपाशंकर और नसीम खान जैसे दिग्गज कांग्रेसी भी मैदान में हैं। यहा रोचक मुकाबलों के बीच यह कह पाना मुश्किल लग रहा है कि कांग्रेस का यह मजबूत गढ़ बचा रहेगा या नहीं, लेकिन यह भी सही है कि क्षेत्र में भाजपा को खाता खोलने में कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ेगा। परिणाम जो भी हो, लेकिन बड़े चेहरों की वजह से उत्तर मध्य संसदीय सीट पर पूरे मुंबई की निगाहें लगी हुई हैं।</div>
<div class="yj6qo ajU" style="background-color: white; color: #222222; cursor: pointer; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; outline: none; padding: 10px 0px; width: 22px;">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-IMlrCIgAquw/VCw4PUVToyI/AAAAAAAAAp0/_RLwQDliKgs/s1600/north-west1.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em; text-align: center;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-IMlrCIgAquw/VCw4PUVToyI/AAAAAAAAAp0/_RLwQDliKgs/s1600/north-west1.JPG" height="175" width="200" /></a></div>
मालाड से लेकर विले पार्ले तक फैले उत्तर-पश्चिम संसदीय क्षेत्र की ६ विधानसभाओं में चार पर जहां कांग्रेस काबिज है,वहीं दो सीटों पर शिवसेना के विधायक हैं। इस क्षेत्र में खाता खोलने के लिए भाजपा ने पूरा जोर तो लगाया है, लेकिन ऐसे चेहरे उतारे गये हैं, जिनमें से किसी की भी नैया पार होती नहीं दिख रही है। शुरुआत दिंडोशी से करते हैं। यह इलाका मालाड पूर्व से शुरू होकर गोरेगांव और जोगेश्वरी पूर्व तक विस्तारित है। पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस के राजहंस सिंह विधायक चुने गये थे और शिवसेना के टिकट पर उतरे पूर्व महापौर सुनील प्रभु दूसरे पर थे। ये दोनों ही उम्मीदवार इस बार भी मैदान में हैं। इस बार मनसे ने शालिनी ठाकरे और भाजपा ने ज्वेलर मोहित कंबोज को टिकट दिया है। कंबोज मुंबई भाजपा के उत्तर भारतीय चेहरा माने जाते हैं। मोहित के साथ तकलीफ की बात यह है कि उनके साथ स्थानीय भाजपाई जुड़ नहीं पा रहे, जिस वजह से पूरा चुनाव राजहंस सिंह और सुनील प्रभु के बीच सिमट गया है। राजहंस और प्रभु दोनों ही लंबे समय से पालिका में नगरसेवक रहे और इलाके पर उनकी मजबूत पकड़ है। इस वजह से इन दोनों के बीच कांटे की टक्कर है। यहां कोई चमत्कार ही कंबोज को तीसरे से ऊपर ला सकता है। गोरेगांव पश्चिम सीट पर शिवसेना के दिग्गज नेता सुभाष देसाई विधायक हैं। गत चुनाव में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन के शरद राव से उनका सामना हुआ था। जिसमें भारी मतों के अंतर से देसाई को जीत मिली थी। इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने युवा नेता समीर देसाई को इस सीट पर उतारा है, तो भाजपा ने पूर्व उप महापौर विद्या ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है। तीनों ही उम्मीदवारों की तुलना की जाय तो सुभाष देेसाई का कद एवं उनका जनाधार कांग्रेस और भाजपा पर भारी पड़ता दिख रहा है। जोगेश्वरी और अंधेरी पूर्व के कुछ हिस्से को मिलाकर बनी है जोगेश्वरी पूर्व विधानसभा सीट। यहां शिवसेना के रवींद्र वायकर विधायक हैं। उन्होंने कांग्रेस के कामगार नेता भाई जगताप को बड़े मतों के अंतर से पराजित किया था। इस चुनाव में वायकर के सामने भाजपा ने अपनी नगरसेविका उज्ज्वला मोडक को टिकट दिया है। कभी भाजपाई रहे पूर्व उप महापौर राजेश शर्मा इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। यहां मनसे ने भी अपने नगरसेवक आंब्रे को टिकट दिया है। अगर आंब्रे ने अच्छा प्रदर्शन किया, तो वे वायकर के लिए न सिर्फ मुसीबत खड़ी कर सकते हैं, बल्कि भाजपा या कांग्रेस की जीत का मार्ग भी प्रशस्त हो जाएगा। यहां अभी तक भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर आने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं। अंधेरी पूर्व सीट पर कांग्रेस के सुरेश शेट्टी लगातार तीसरी बार विधायक हैं। लंबे समय से मंत्री भी हैं। समझौते में यह सीट भाजपा ने अपने मित्र पक्ष आरपीआई को दे रखी है। पहले आरपीआई के टिकट पर मुठभेड़ विशेषज्ञ पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा उतरना चाह रहे थे, लेकिन कानूनी पचड़े में फंस जाने के कारण उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया है। अब यहां लड़ाई सुरेश शेट्टी और शिवसेना प्रत्याशी रमेश लटके के बीच होनी है। यह सीट उत्तर भारतीय बाहुल्य मानी जाती है। अंधेरी पश्चिम सीट भी कांग्रेस के ही विधायक अशोक जाधव के कब्जे में है। यहां शिवसेना ने यूनियन नेता जयवंत परब को टिकट दिया है। भाजपा के दिवंगत ने गोपीनाथ मुंडे के सहायक रहे अमित साटम भाजपा के टिकट पर उतरे हैं। अमित पार्टी के युवा नगरसेवक हैं। जबकि जयवंत जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ रखते हैं। अब देखना है ये दोनों ही उम्मीदवार क्या अशोक जाधव को शिकस्त दे पाते हैं ? इस बात को वक्त पर छोड़ कर हम चर्चा करते हैं वर्सोवा विधानसभा की । जो जोगेश्वरी व अंधेरी पश्चिम इलाके में फैली हुई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुनील दत्त के करीबी रहे बलदेव खोसा इस सीट पर दो बार से विधायक हैं। खोसा की किस्मत ही कहा जाएगा कि यहां से शिवसेना की घोषित प्रत्याशी राजुल पटेल का नामांकन खारिज हो गया। भाजपा ने भी इस इलाके में कोई खास चेहरा नहीं उतारा है। डॉ. भारती लवेकर यहां भाजपा के टिकट पर उतरी हैं, जो काफी अंजान सी उम्मीदवार हैं। पूर्व नगरसेवक व मुंबई राकांपा के अध्यक्ष रह चुके प्रवासी नेता नरेंद्र वर्मा यहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं। यहां वर्मा और खोसा के बीच सीधी टक्कर संभावित है। मनसे ने भी इस सीट पर बिल्डर लस्करिया को टिकट दिया है, जिनका सियासी वजूद तो नहीं है, मगर मनसे के परंपरागत मराठी वोट लस्करिया के खाते में जा सकते हैं। इस संसदीय सीट के सर्वेक्षण में एक बात सामने आई है कि यहां अभी तक भाजपा का एक विधायक नहीं है और कोई जीतता हुआ भी नहीं लग रहा। वैसे भाजपा ने इस इलाके में खाता खोलने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। देखते हैं कामयाबी कहां तक मिलती है। </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-48644570786639390222014-09-30T11:04:00.001-07:002014-09-30T11:04:04.161-07:00'मेहमानों' को मिले टिकट, पालघर के शिवसैनिक नाराज <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-ufRYCWROu9s/VCrwbE5CPuI/AAAAAAAAApk/m1W6CT_Ku7s/s1600/arun%2Bupadhyay.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-ufRYCWROu9s/VCrwbE5CPuI/AAAAAAAAApk/m1W6CT_Ku7s/s1600/arun%2Bupadhyay.jpg" height="185" width="200" /></a></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
चुनावी परिक्रमा में आज का फोकस नव सृजित जिले पालघर पर। जहां वसई-विरार के इलाके को छोड़ दें, तो पूरा क्षेत्र शिवसेना या भाजपा के बाहुल्य वाला है। नगरीय क्षेत्रों को छोड़ दें, तो पूरा इलाका आदिवासियों का है। इसी लिए आरएसएस की इकाइयां इस क्षेत्र में बहुतायत कार्यरत हैं। यही कारण है कुछ चुनावों को छोड़ दें, तो यहां भाजपा के ही सांसद चुने जाते रहे हैं। कई स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों पर शिवसेना का कब्जा है। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में शिवसेना द्वारा बाहर से आये उम्मीदवारों को टिकट दे देने से स्थानीय शिवसैनिक न सिर्फ नाराज हैं, बल्कि इसका दुष्परिणाम भी सामने आ सकता है। चर्चा करते हैं जिले की विधानसभा सीटों की, जहां से शिवसेना को काफी उम्मीदें थी, लेकिन नेतृत्व ने टिकट वितरण में उम्मीदवारों का सही चयन नहीं किया, जिस वजह से जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में खासी नाराजगी है। जिला मुख्यालय की पालघर सीट पर शिवसेना ने तीन बार विधायक रह चुके कृष्णा घोड़ा को टिकट दिया है। जिनसे स्थानीय कार्यकर्ता जुड़ नहीं पा रहे हैं। इसका कारण है कि घोड़ा अभी तक राकांपा में थे। शिवसेना में आये और लगे हाथ टिकट भी ले लिया, जिससे उनके साथ प्रचार में शिवसैनिक न के बराबर दिखाई दे रहे हैं। यहां कांग्रेस के टिकट पर वर्तमान विधायक व पूर्व मंत्री राजेंद्र गावित, भाजपा के डॉ. गौड़ और हितेंद्र ठाकुर की पार्टी से मनिषा निमकर को उम्मीदवारी मिली है। आखिरी समय तक अगर शिवसेना हाई कमान द्वारा स्थानीय कार्यकर्ताओं को समझाया नहीं गया, तो पार्टी को न सिर्फ नुकसान होगा, बल्कि शिवसेना प्रत्याशी कृष्णा घोड़ा तीसरे पर भी जा सकते हैं। ऐसे में वहां कांग्रेस के गावित और आघाड़ी की मनिषा के बीच सीधा मुकाबला संभावित है। जिले की दूसरी महत्वपूर्ण सीट है बोईसर, जहां कमलाकर दलवी शिवसेना के टिकट पर मैदान में हैं। उनके सामने बहुजन विकास आघाड़ी के वर्तमान विधायक विलास तरे, भाजपा के जगदीश घोड़ी, शिवसेना के बागी सुनील धानवे और कांग्रेस के टिकट पर मड़वी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यहां भी जिस कमलाकर दलवी को सेना ने उतारा है, वो चुनाव से पूर्व राकांपा के कद्दावर नेता रहे और पिछले हर चुनाव में शिवसेना का जमकर विरोध किये हैं। इस वजह से स्थानीय शिवसैनिक उनके साथ नहीं हो पा रहे हैं। यही हालात दहाणु सीट के भी हैं, जहां शिवसेना ने राकांपा से आये शंकर नम पर दांव लगाया है। इसके पहले के सभी चुनावों में पूर्व सेना जिला प्रमुख उदय बंधु पाटिल के निर्देश पर शंकर नम हमेशा शिवसैनिकों को ही नीचा दिखाते रहे। अब अचानक उनको टिकट मिल गया है, तो पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताचुनाव में सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। विक्रमगढ़ सीट जहां पूर्व में वर्तमान सांसद चिंतामण वनगा विधायक रहे, वहां भाजपा ने विष्णु सावरा पर भरोसा जताते हुए उम्मीदवारी दी है, तो शिवसेना ने प्रकाश निकम पर दांव लगाया है। इस सीट पर राकांपा ने सुनील भूसरा को टिकट दिया है। भाजपा की मजबूत जनाधार वाली इस सीट पर शिवसेना और राकांपा उम्मीदवारों को कड़ी मशक्कत करके अपनी जमानत बचानी होगी। शहरी क्षेत्रों में नालासोपारा और वसई की सीटें आती हैं, जहां वसई में शिवसेना-भाजपा समर्थित विवेक पंडित के सामने स्थानीय क्षत्रप हितेंद्र ठाकुर मैदान में हैं, तो नालासोपार वर्तमान विधायक क्षितिज ठाकुर को भाजपा के राजननाईक से कड़ी चुनौती मिल रही है। कुल मिलाकर जिले के चुनावी परिदृष्य पर नजर डालें तो निश्चित ही यहां शिवसेना ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन कर सकती थी, मगर बाहर से आये 'मेहमानÓ उम्मीदवारों को उतार कर पार्टी ने पुराने शिवसैनिकों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दूसरी तरफइलाके मेंचर्चा है डॉ. सुहास शंखे के इशारे पर इतनी भारी संख्या में दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को शिवसेना का टिकट दिया गया है। इसके लिए उद्धव ठाकरे के पीए मिलिंद नार्वेकर के साथ मजबूत सेटिंग की गई है। शिवसेना के तालुका प्रमुख सुधीर तामोरे कहते हैं कि पार्टी ने जिसे भी टिकट दिया है, उसके लिए काम करना सभी शिवसैनिकों का धर्म है। इस बारे में पूर्व शिवसेना जिला प्रमुख प्रभाकर राऊत कहते हैं कि दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ताओंको टिकट देने का फैसला पार्टी नेतृत्व द्वारा लिया गया है। इस बात को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी जरूर है, लेकिन जल्दी ही सबकुछ ठीक कर लिया जाएगा और सारे कार्यकर्ता शिवसेना उम्मीदवारों की जीत के लिए सक्रिय हो जाएंगे। </div>
<div class="yj6qo ajU" style="color: #222222; cursor: pointer; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; outline: none; padding: 10px 0px; width: 22px;">
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-79273612399881375162014-09-30T07:45:00.000-07:002014-09-30T07:45:45.213-07:00सियासी घरानों पर लगी सभी दलों की निगाहें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-4V_u3q3_LME/VCrBP43RHSI/AAAAAAAAApM/hQWdcpBqwxk/s1600/gharana.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-4V_u3q3_LME/VCrBP43RHSI/AAAAAAAAApM/hQWdcpBqwxk/s1600/gharana.jpg" height="120" width="200" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
महानगर से सटे ठाणे व नवसृजित पालघर जिले में सक्रिय सियासी घरानों का वर्चस्व तोडऩे के लिए सभी राजनैतिक घरानों ने जैसे कमर कस ली हो। नवी मुंबई का सक्रिय नाईक परिवार हो या वसई-विरार का ठाकुर घराना चाहे मीरा-भाईंदर का मेंडोसा परिवार, सभी राजनैतिक दल इन परिवारों की जमीन खिसकाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिये हैं। लोक सभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना कर चुके नाईक परिवार को संजीव नाईक की हार के रूप में तत्कालीन शिवसेना प्रत्याशी राजन विचारे से जो कड़ी टक्कर मिली थी, शायद गणेश नाईक ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी। ऐसा ही हाल विरार के हितेंद्र ठाकुर का भी रहा। उनकी पार्टी बहुजन विकास आघाड़ी के संसदीय प्रत्याशी बलिराम जाधव को उस चिंतामण वनगा ने धराशायी कर दिया, जो ठाकुर के साम्राज्य के सामने कहीं भी नहीं टिकते थे। सम्भवत: लोकसभा चुनाव में इन दोनों घरानों को मिली हार के पीछे मोदी लहर प्रमुख कारण रही हो, मगर आसन्न विधान सभा चुनावों में भी सभी राजनैतिक दल इनकी जड़ हिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बात की जाय अगर नवी मुंबई की, तो वहां राजनीति की मजबूत गोटियां बैठाई गई हैं। बेलापुर सीट पर पालक मंत्री गणेश नाईक खुद राकांपा के उम्मीदवार हैं, जिन्हें भाजपा की मंदा म्हात्रे, शिवसेना के विजय नाहटा, कांग्रेस के नामदेव भगत, मनसे के गजानन काले आदि का सामना करना पड़ेगा। उनके पुत्र और वर्तमान विधायक संदीप नाईक ऐरोली सीट से पुन: राकांपा के टिकट पर मैदान में हंै, जिन्हें शिवसेना के विजय चौगुले, कांग्रेस के रमाकांत म्हात्रे और भाजपा के वैभवनाईक से टकराना होगा। इस सीट पर खास बात ये है कि भाजपा प्रत्याशी वैभव नाईक संदीप के चचेरे भाई हैं, जो अभी तक शिवसेना में रहे। टिकट विजय चौगुले को मिल गया, तो भाजपा का झंडा उठा लिया और पार्टी ने लगे हाथ उम्मीदवारी भी दे दी, जिससे यहां मुकाबला काफी रोचक हो गया है। नये जिले पालघर में कहा जाता है कि ठाकुर बंधुओं का वर्चस्व कायम है, लेकिन ठाकुर ब्रदर्स लोकसभा चुनाव की पराजय से उबर भी नहीं पाये थे कि येविधानसभा का चुनाव आ गया। गत विधानसभा चुनाव में ठाकुर की हैसियत को पहली चुनौती दिया था विवेक पंडित ने, जो बहुजन विकास आघाड़ी के प्रत्याशी को हराकर न सिर्फ विधानसभा में पहुंचे थे, बल्कि ठाकुर के गढ़ को हिलाने की शुरुआत भी यहीं से की थी। उसके बाद तो पालघर-बोईसर और दहाणु आदि क्षेत्रों में हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में ठाकुर की पार्टी को लगातार शिकस्त मिली और लोकसभा चुनाव की पराजय ने हितेंद्र ठाकुर के साम्राज्य को डगमगा दिया। इस चुनाव में वसई सीट पर जहां हितेंद्र ठाकुर खुद विवेक पंडित के सामने होंगे, वहीं उनके विधायक पुत्र क्षितिज के सामने भाजपा के राजन नाईक समेत सभी दलों के उम्मीदवार ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं। चुनाव परिणाम जो भी हों, लेकिन ठाकुर का साम्राज्य इस चुनाव में दांव पर लगा नजर आ रहा है। अब बात मीरा-भाईंदर की, जहां राकांपा विधायक गिल्बर्ट मेंडोसा का सिक्काचलता है। सरपंच से लेकर नगराध्यक्ष और विधायक तक का सफर तय कर चुके मेंडोसा की बेटी महापौर है। दूसरी बेटी और बेटा नगरसेवक है। छोटा भाई और चार बहनें भी नगरसेविका हैं। इस चुनाव में मेंडोसा पुन: राकांपा के टिकट पर मैदान में हैं, जिनका सामना भाजपा के नरेंद्र मेहता, कांग्रेस के याकूब कुरैशी और शिवसेना के प्रभाकर म्हात्रे से होना है। राजस्थानी बाहुल्य इस सीट पर गत चुनाव में मेंडोसा और मेहता के बीच कांटे की टक्कर रहीऔर मामूली अंतर से मेहता को पराजय का सामना करना पड़ा था। इस बार के हालात काफी जुदा हैं। जहां भाजपा शिवसेना से अलग होकर लड़ रही है, वहीं कांग्रेस और राकांपा ने भी अलग-अलग राहें पकड़ रखी हैं। परिणाम कुछ भी हो लेकिन इतना तो तय है कि हो रहा विधानसभा चुनाव न सिर्फ मेंडोसा, बल्कि गणेश नाईक व हितेंद्र ठाकुर के राजनीतिक भविष्य को निर्धारित करेगा।</div>
<div class="yj6qo ajU" style="background-color: white; color: #222222; cursor: pointer; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; outline: none; padding: 10px 0px; width: 22px;">
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-25603668724433048102014-09-30T07:37:00.000-07:002014-09-30T07:37:07.622-07:00सेना का गढ़ ध्वस्त करने भाजपा ने बनायी रणनीत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-NftidBoaCGE/VCq_83DoVyI/AAAAAAAAApA/AzwWB5Xo8Ak/s1600/thane.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-NftidBoaCGE/VCq_83DoVyI/AAAAAAAAApA/AzwWB5Xo8Ak/s1600/thane.jpg" height="116" width="200" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
एक कहावत है कोई दोस्त जब दुश्मनी पर आमादा हो जाता है, तो किसी भी हद तक जाता है और फिर रिश्तों की परवाह किये बिना दुश्मनी को अंजाम तक पहुंचाता है। कुछ ऐसा ही हुआ सेना-भाजपा गठबंधन टूटने के बाद । आज हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि भाजपा ने शिवसेना का गढ़ कहे जाने वाले ठाणे जिले पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए उसके किले को ध्वस्त करने पर पूरा जोर लगा दिया है। एक जमाना था, जब ठाणे शहर समेत पूरे जिले पर शिवसेना का परचम फहराया करता था, लेकिन आनंद दिघे के बाद पार्टी को इस जिले में कोई मजबूत झंडाबरदार नहीं मिला और धीरे-धीरे यहां सेना विघटन का शिकार होती गयी। जिले के तमाम क्षत्रप जो विभिन्न पार्टियों के सरदार बने हैं, कभी शिवसेना में बहुत असरदार हुआ करते थे। जिले के सबसे कद्दावर नेता कहे जाने वाले गणेश नाईक कभी शिवसैनिक ही थे। शिवसेना छोड़ कर जाने वालों की बात छोड़ भी दें, तो आज पार्टी को सबसे बड़ी चुनौती अपने ही हालिया दोस्त रहे भाजपा से मिल रही है। भाजपा ने बड़े सुनियोजित तरीके सेशिवसेना के एक-एक बागियों पर नजर रखी और उन्हें उम्मीदवारी भी दे दी। खासकर जहां शिवसेना के विधायक हैं, वहां भाजपा ने खास जोर लगाया हुआ है। माजीवड़ा ओवला विधान सभा सीट पर शिवसेना के प्रताप सरनाईक विधायक हैं। इस सीट पर कांग्रेस की ओर से भायंदर की नगरसेविका प्रभात पाटिल प्रत्याशी हैं। मनसे ने ठाणे स्थायी समिति के सभापति सुधाकर चव्हाण को उतारा है। राकांपा ने भी मराठी प्रत्याशी हनुमंत जगदाले पर दांव खेला है। यहां भाजपा की ओर से मीरा-भायंदर के पूर्व आयुक्त शिवमूर्ति नाईक और वरिष्ठ नगरसेवक रोहिदास पाटिल टिकट के प्रबल दावेदार थे। मगर आखिरी समय में भाजपा ने उत्तर भारतीय दांव खेलते हुए ठाणे मनपा के निर्दलीय नगरसेवक संजय पांडेय को उम्मीदवारी देकर माहौल को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है। इस सीट पर बाकी के सभी दलों ने मराठी प्रत्याशी उतारे हैं। ऐसे में भाजपा ने क्षेत्र के बहुसंख्यक हिंदी भाषियों पर डोरे डालने की नीयत से संजय को उतारा है। भाजपा ठाणे में सेना को एक कदम भी आगे नहीं जाने देना चाहती, ऐसा उसकी रणनीति देखकर लग रहा है। शिवसेना के दिग्गज नेता रहे अनन्त तरे का जैसे ही टिकट कटा, भाजपा ने उन्हें उम्मीदवारी थमा दी और जिले के प्रभावी सेना नेता एकनाथ शिंदे के सामने उतार कर शिवसेना को मुश्किल में डाल दिया। इसी तरह एरोली में टिकट की चाह लगाये बैठे युवा शिवसैनिक वैभव नाईक की जगह जैसे ही विजय चौगुले की उम्मीदवारी घोषित हुई, नाईक भाजपा खेमे में आ गये और पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। वैभव अब अपने ही चचेरे भाई व राकांपा विधायक संदीप नाईक के सामने मैदान में हैं। इसी तरह ठाणे शहर सीट पर भाजपा ने अपने पूर्व स्नातक विधायक संजय केलकर को उतार कर अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास किया है। कल्याण डोंबिवली में मनसे का टिकट न मिलने से नाराज मोरेश्वर भोईर पर दांव लगाकर भाजपा ने वहां के मराठी मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया है। ठाणे जिले में भाजपा की एक खास रणनीति देखने को मिल रही है, वह ये कि वो किसी भी तरह शिवसेना को रोकने के प्रयास में है। इसके लिए आखिरी समय तक वह बागियों पर नजर रखे रही और भाजपा का टिकट दे दिया। अब देखना यह है कि अपनी इस रणनीति में भाजपा कितना कामयाब होती है, लेकिन उसकी पूरी कोशिश है कि शिवसेना का गढ़ कहे जाने वाले ठाणे में कैसेभी हो, भगवा न फहराने पाये। </div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-83476545091370494382014-09-30T07:21:00.005-07:002014-09-30T07:21:52.692-07:00उलझा हुआ है उत्तर मुंबई का सियासी गणित <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-3dyq4EEqr4w/VCq8Sl2IYYI/AAAAAAAAAow/ONKXo1oGhrY/s1600/uljha.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-3dyq4EEqr4w/VCq8Sl2IYYI/AAAAAAAAAow/ONKXo1oGhrY/s1600/uljha.JPG" height="173" width="200" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
चुनावी परिक्रमा में आज बात उत्तर मुंबई की। वहां के बनते-बिगड़ते समीकरण की और गठबंधन टूटने के बाद पैदा हुई स्थितियों की । अभी तक इस इलाके में भाजपा के पास दो विधायक रहे और कांग्रेस भी दो के ही आंकड़े तक सीमित रही। एक विधायक शिवसेना का तथा मनसे का भी यहां एक विधायक वर्तमान में है। हालात बदले हैं। न तो शिवसेना के साथ भाजपा है और न ही कांग्रेस के साथ राकांपा। ऐसे में इन चारों ही दलों की क्या स्थिति होगी, आइये डालते हैं एक नजर । महानगर की आखिरी सीमा पर स्थित दहिसर विधान सभा अभी तक शिवसेना के खाते में रही। वहां से पार्टी के इलाकाई मुखिया विनोद घोसालकर विधायक हैं। इस सीट पर कब्जा करने के लिए भाजपा ने नगरसेविका मनिषा चौधरी को उतारा है, तो कांग्रेस ने युवा नगरसेविका शीतल म्हात्रे को टिकट दिया है। पूर्व महापौर शुभा राऊल भी यहां से शिवसेना का टिकट चाहती थी, जो न मिलने पर राज ठाकरे के खेमें में शामिल हो गयी हैं और मनसे ने उन्हें दहिसर सीट पर उतार दिया है। डॉ. शुभा राऊल दहिसर इलाके से नगरसेविका चुनी गई थी और शिवसेना ने उन्हें महापौर बनाया था। उच्च शिक्षित शुभा क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं। यही विनोद घोसालकर के लिए खतरे का सबब बन सकता है। रही बात मनिषा और शीतल की, तो मनिषा के पक्ष में उत्तर भारतीय, गुजराती, राजस्थानी और भाजपा के परंपरागत वोट हैं। दूसरी ओर शीतल का लगातार इसी क्षेत्र से तीसरी बार नगरसेविका होना और पुराने कांग्रेसी मत उनके पक्ष में देखे जा रहे हैं। इस इलाके में वर्तमान विधायक विनोद घोसालकर को काफी कमजोर देखा जा रहा है। दूसरी सीट है बोरिवली, जहां भाजपा के वर्तमान सांसद गोपाल शेट्टी पूर्व में दो बार विधायक रह चुके हैं। भाजपा ने इसे सेफ सीट समझते हुए यहां अपने वरिष्ठ नेता विनोद तावड़े को उतारा है, जिनके सामने शिवसेना के उत्तम अग्रवाल और कांग्रेस के जिलाध्यक्ष अशोक सुत्राले बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। मारवाड़ से ताल्लुक रखने वाले उत्तम अग्रवाल के पक्ष में अगर प्रवासी मतदाताओं का झुकाव हुआ, तो यहां तावड़े की राह कठिन हो जाएगी। कांग्रेस किसी कीमत में इस सीट पर तीसरे से ऊपर नहीं दिख रही है। पास की मागाठाणे सीट अभी मनसे के पास है। यहां राज ठाकरे के बाल सखा प्रवीण दरेकर विधायक हैं, जिनके सामने शिवसेना के प्रकाश सुर्वे, भाजपा के हेमेंद्र मेहता और कांग्रेस के सचिन सावंत मैदान में हैं। अगर देखा जाय तो मागाठाणे उत्तर मुंबई संसदीय सीट की ऐसी विधानसभा है, जहां सभी दलों ने मजबूत चेहरों पर दांव लगाया है। हेमेंद्र मेहता पूर्व में इसी इलाके से विधायक रह चुके हैं। प्रकाश सुर्वे गत चुनाव में राकांपा के टिकट पर उतरे थे, जो बहुत कम मार्जिन से चुनाव हारे थे। इस बार सुर्वे ने शिवसेना का झंडा थाम लिया है, जो काफी हद तक उनके लिए प्लस प्वाइंट साबित हो रहा है। क्योंकि लंबे समय तक राकांपा के जिलाध्यक्ष रहे सुर्वे के साथ शिवसेना के वोट जुड़ जाने से उनकी स्थिति में इजाफा लग रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस के टिकट पर उतरे सचिन सावंत भी मुंबई कांग्रेस के बड़े चेहरों में गिने जाते हैं। कुल मिलाकर यहां सभी दलों ने बड़े मोहरे उतारे हैं, जो सफलता के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखे हैं। परिणाम क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इस सीट पर लड़ाई भाजपा और शिवसेना के बीच दिख रही है। मनसे को यहां नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। मालाड पश्चिम की सीट कांग्रेस के खाते में है। मालवणी में कभी नगरसेवक रहे असलम शेख वर्तमान में विधायक हैं। असलम से इलाके के लोग बहुत नाराज हैं, लेकिन भाजपा की एक गलती शायद असलम को फिर से विधायक बना देगी। इस विधानसभा क्षेत्र का बड़ा हिस्सा अल्पसंख्यक बाहुल्य है। ऐसे में अगर भाजपा ने इस क्षेत्र से किसी मुस्लिम चेहरे को आजमाया होता, निस्संदेह असलम को फतह किया जा सकता था, लेकिन वरिष्ठ नगरसेवक डॉ. राम बारोट को यहां उतार कर भाजपा ने खुद ब खुद गेंद कांग्रेस के पाले में डाल दिया। इसी सीट से सटी है कांदिवली पश्चिम की चारकोप विधानसभा, जहां भाजपा के योगेश सागर विधायक हैं। गुजराती बाहुल्य इस सीट को अपने पक्ष में लेने के लिए कांग्रेस ने फिर अपने पिटे हुए मोहरे भरत पारिख को टिकट दिया है। हालांकि शिवसेना ने अपनी कारपोरेटर शुखदा गुडेकर को उतारा है, लेकिन अब भी भाजपा यहां मजबूत ही है। कांग्रेस प्रत्याशी खुद को तीसरे पर रख पायें तो बड़ी बात होगी। यहां भाजपा और सेना के बीच सीधी टक्कर की पूरी संभावना है। कांग्रेस के ही खाते की सीट है कांदिवली पूर्व, जहां रमेश सिंह ठाकुर विधायक हैं और फिर से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यहां से भाजपा ने मुंबई प्रदेश के पदाधिकारी अतुल भातखलकर को उतारा है। मनसे के उत्तर भारतीय चेहरे और राज ठाकरे के वकील अखिलेश चौबे भी मैदान में हैं। शिवसेना ने अपनी एक नगरसेविका के पति को टिकट दिया है। इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर तय है। अब देखना है रमेश सिंह ठाकुर अपनी विधायकी बचा पाते हैं या अतुल के हाथ विजयश्री लगती है। उत्तर मुंबई संसदीय क्षेत्र की सभी सीटों के अध्ययन से यह बात उभर कर आती है कि यहां गठबंधन टूटने के बाद गणित उलझ गया है और मनसे यहां अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। </div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-5248027750353266182013-03-19T11:24:00.001-07:002013-03-19T11:24:07.107-07:00फिर शर्मसार हुई महाराष्ट्र विधानसभा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="font-family: arial; font-size: small;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-0p7TJLBIMPk/UUitJjM7BaI/AAAAAAAAAeM/DudbwuC41CM/s1600/vidhan1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="195" src="http://4.bp.blogspot.com/-0p7TJLBIMPk/UUitJjM7BaI/AAAAAAAAAeM/DudbwuC41CM/s320/vidhan1.jpg" width="320" /></a>सदन में विधायकों द्वारा विरोधियों पर माईक से हमला करना और पेपर वेट फेकने जैसी घटनाएं अभी तक यूपी और बिहार में हुआ करती थी, लेकिन अब तो महाराष्ट्र विधान भवन में भी जूतम पैजार होने लगा है. हाल-फिलहाल की कुछ घटनाओं पर अगर गौर किया जाय, तो साफ़ होता है कि महाराष्ट्र के विधायकों ने भी उत्तर की नक़ल शुरू कर दी है. आज विधान सभा में एक पुलिस इन्सपेक्टर पर महाराष्ट्र के विधायकों ने जिस तरह से एकजुट होकर हमला किया, उसको देख कर उत्तरी राज्यों की याद ताजा हो गयी. </div>
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-NEOgi3s72bo/UUismnYSUBI/AAAAAAAAAeE/MArynPLfHzE/s1600/page.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="320" src="http://2.bp.blogspot.com/-NEOgi3s72bo/UUismnYSUBI/AAAAAAAAAeE/MArynPLfHzE/s320/page.jpg" width="124" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="color: red;">प्रातःकाल मुंबई के अंक में</span> </td></tr>
</tbody></table>
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बात नब्बे के दशक की है, जब मायावती के मुख्यमंत्री रहते बात ही बात में सपा के विधायकों ने सदन के भीतर बसपा विधायकों पर हमला बोल दिया था. देखते ही देखते सदन रणभूमि में तब्दील हो गया था. दोनों तरफ से जमकर माईक और पेपर वेट चले, जिसमे कई विधायकों समेत उन्हें संभालने के लिए तैनात मार्शल भी लहूलुहान हो गए थे. यूपी का विधान भवन इस तरह की कई वारदातों का गवाह बन चुका है. एक बार तो मायावती पर ही मुलायम के लोगों ने प्राण घातक हमला कर दिया था. वो तो बीजेपी के लोग बीच में आ गए थे, वरना बहिनजी का काम तमाम हो गया होता. १९९२ में हुए इस हमले में मायावती के कपडे तक फट गए थे. इसी तरह १९९७ में कल्याण सिंह के विश्वास मत के दौरान भी पक्ष-विपक्ष भीड़ गए थे और एक दुसरे पर जैम कर माईक और कुर्सियां फेंकी थी. इस दौरान विधान सभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी समेत कई एमएलए घायल हुए थे और तमाम लोग फटे हुए कपड़ों में ही मीडिया से मुखातिब हुए थे. इस तरह के बवाल कई बार यूपी विधान सभा में हो चुके हैं. बिहार विधान सभा भी कई बार विधायकों की कुश्ती का अखाड़ा बन चुकी है. लालू प्रसाद यादव की राजद के विधायकों ने वर्ष २०१० में नितीश कुमार की सरकार पर ११ करोड़ के घोटाले का आरोप लगा कर हंगामा काटना शुरू किया, तो बीजेपी और जनता दल (यूं) के विधायक उनसे भिड गए. इस हंगामे और मुक्केबाजी में बहुत से लोग चुटहिल हुए थे, तो सदन की सारी कुर्सियां टूट कर बिखर गयी थी. मध्य प्रदेश विधान सभा में वर्ष २००६ में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों का बाहुबल चर्चा का विषय बना था. २००९ में आन्ध्र विधान भवन में तेदेपा विधायकों के बवाल को नियंत्रित करने के लिए मार्शलों को कड़ी मशक्कत करनी पडी थी. इस झगड़े में कई एमएलए और सुरक्षाकर्मी घायल हुए थे. </div>
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पश्चिम बंगाल विधान सभा में भी २००६ के दौरान तृणमूल व सीपीएम के विधायकों में जमकर मारपीट हुई थी, जिसमें वाम दल के छह, तृणमूल के तीन सदस्यों समेत दो सुरक्षाकर्मी और दो मीडियाकर्मी घायल हुए थे. उड़ीसा विधानसभा में तीन साल पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बर्खास्तगी की मांग पर हंगामा करते हुए कांग्रेसियों ने सुरक्षाकर्मियों से मारपीट तथा स्पीकर से भी अभद्रता की थी।</div>
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राजस्थान विधानसभा में आज ही सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वढेरा के विरुद्ध शिकायतों के बारे में पूछे प्रश्न के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के सदस्यों में हाथापाई की नौबत आ गई। यह तो आज के दौर की सामान्य सी घटना है, लेकिन जिस तरह से महाराष्ट्र विधान भवन में नौजवान विधायकों ने एक पुलिस अधिकारी पर हमला किया, उससे मुम्बई समेत महाराष्ट्र का पुलिस महकमा आक्रोशित है. स्पीकर समेत सभी जिम्मेदार लोग पुलिस अधिकारी पर हुए हमले पर अफसोस जता रहे हैं और जांच की बात कर रहे हैं, लेकिन इस जांच से क्या सदन में हो रही इस धक्का मुक्की पर काबू पाया जा सकेगा. इसी विधान भवन में हिन्दी में शपथ न लेने पर सपा विधायक अबू आसिम आजमी के साथ मनसे के विधायकों ने मार पीट की थी, जिन्हें कुछ समय के लिए निलंबित किया गया था. लेकिन फिर से वही शुरू हुआ, जो उत्तर में हुआ करता है. इस विषय में सियासी जानकारों का मत है कि जब तक राजनीति में दागियों और अपराधियों की सक्रियता पर अंकुश नहीं लगता, तब तक यही सब होता रहेगा. </div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-44323524244170699692013-03-12T10:10:00.004-07:002013-03-12T10:10:35.191-07:00अखिलेश का पहला साल : साबित हुआ फ्लॉपशो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-Hun2jfgjRaQ/UT9gLcpulPI/AAAAAAAAAds/Zu8tmZMDTz8/s1600/sarokar.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="300" src="http://3.bp.blogspot.com/-Hun2jfgjRaQ/UT9gLcpulPI/AAAAAAAAAds/Zu8tmZMDTz8/s400/sarokar.jpg" width="400" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><b><span style="color: red;">जितने का भत्ता नहीं बांटा, उससे ज्यादा मेहमाननवाजी पर खर्चा </span></b></td></tr>
</tbody></table>
</div>
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: right; margin-left: 1em; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/--OSkR4eZt7I/UT9gTbbF1EI/AAAAAAAAAd0/JGb175ZGyC8/s1600/sarokar1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="298" src="http://3.bp.blogspot.com/--OSkR4eZt7I/UT9gTbbF1EI/AAAAAAAAAd0/JGb175ZGyC8/s400/sarokar1.jpg" width="400" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><b><span style="color: #38761d;">हे भगवान, खेती के लिए बिजली नहीं. बबुआ के लैपटॉप कईसे चली </span></b></td></tr>
</tbody></table>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;">
मायावती ने अपने शासनकाल में लखनऊ के पार्कों का न सिर्फ अम्बेडकरीकरण किया, बल्कि अपनी ही पार्टी के हाथियों और अपने बुत लगवा डाले. खुद को महिमा मंडित करने वाली इस परियोजना में माया ने सरकारी खजाने के अरबों रुपये खर्च किये. इसका खामियाजा माया को सत्ता गवां कर भुगतना पड़ा. माया की विदाई के बाद यूपी की कमान सपा के युवा नेता अखिलेश यादव के हाथों में आ गयी. जिनको महज इसलिए लोगों ने समर्थन दिया कि वो नई सोंच के साथ राज्य के विकास पर ध्यान देंगे, लेकिन मतदाताओं की उम्मीदों पर अखिलेश ने पानी फेर दिया. सपा की इस सरकार ने साल भर में कुछ ऐसा तो नहीं किया, जिसे याद किया जा सके. हां, ये बात जरूर है कि बसपा शासन काल में पुलिस के डर से दुबके दबंग सपाई खुलेआम सड़क पर आ गए. कई दंगों से रू-ब-रू हुई अखिलेश सरकार को पार्टी के ही तमाम विधायकों और मंत्रियों की वजह से शर्मसार होना पड़ा. पांच साल तक आपराधिक अज्ञातवास भोगे सपाइयों के लिए यह सरकार वरदान साबित हुई है. अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी के छुटभैये नेताओं ने पूरे प्रदेश में दूसरी पार्टियों के कई जिला परिषद अध्यक्षों और ब्लाक प्रमुखों को हटाकर अपने लोगों को पदस्थ किया. इससे सपा थोड़ी मजबूत तो होती दिखी, लेकिन फैजाबाद समेत कई शहरों में हुए कौमी फसाद ने मतदाताओं के बड़े वर्ग को सपा से दूर कर दिया है. कुंडा में डीएसपी जिया उल हक़ के क़त्ल पर अखिलेश ने जिस तरह की बेचारगी दिखाई, उससे यह साफ़ हो गया है कि युवा नेता में अभी अनुभव की बहुत कमी है. बेरोजगारी भत्ता और लैपटाप बाँट कर लोगों का दिल जीतने निकले अखिलेश के सामने सूबे की क़ानून व्यवस्था को पटरी पर लाना बहुत बड़ी चुनौती है. क्योकि क़ानून व्यवस्था सुधारने के दौरान उनका सामना सबसे पहले अपनों से ही होने वाला है. कई बार चुनौती देने के बावजूद पार्टी के कार्यकर्ता अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे. इसमें ख़ास बात यह है कि सबसे ज्यादा दागियों को सपा ने ही टिकट दिया था और ज्यादातर जीतने में भी सफल रहे. कइयों को तो लालबत्ती भी दे दी गयी है. अब भला वो चुप कैसे रहते. पांच साल तक भूमिगत रहने के बाद जब अपनी सरकार बनी है, तो उसका फ़ायदा उठाएंगे ही. इस सरकार की तमाम योजनायें भी हास्यास्पद होकर रह गयी हैं. बेरोजगारी भत्ते को देखें, ८ करोड़ भत्ता बांटने के लिए जो जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किये गए, उन पर कुल १२ करोड़ रुपये का खर्च आया है. ये तो वही कहावत हुई कि चार आने की मुर्गी और बारह आने का मसाला. इसी तरह लैपटॉप देकर युवाओं में सूचना तकनीकी का संचार करने का प्रयास किया गया है. लेकिन समस्या यह है कि जिस प्रदेश में किसानों को खेत सींचने के लिए बिजली नहीं मिल रही है, वहां लैपटॉप कैसे चार्ज किये जायेंगे. आज यूपी की हालत यह है कि मोबाइल की बैटरी चार्ज करने को बिजली नहीं मिल रही है, तो लैपटॉप और टैबलेट कहाँ से चार्ज किये जायेंगे. प्रदेश में बढ़ रहे अपराध से लोगों का ध्यान हटाने के लिए अखिलेश द्वारा युवाओं को आकर्षित करने के ये जो उपक्रम शुरू किये गए हैं, वे जमीनी हकीकत से काफी परे हैं. इस वजह से सरकार क़ानून व्यवस्था का जो डैमेज कंट्रोल करना चाह रही है, उसमे कामयाबी मिलना मुश्किल लग रहा है. सबसे बड़ी बात यह सरकार आम शहरी को सुरक्षा मुहैया कराने में असफल साबित हुई है, ऐसे में अखिलेश के एक साल के सफ़र को फ्लॉप शो ही कहा जाएगा. </div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-44455009511460373182013-03-06T10:16:00.005-08:002013-03-06T10:17:22.314-08:00राजा के बहाने नेताजी पर निशाने <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: right; margin-left: 1em; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-z1mN20q-Npo/UTeH0Xa2sVI/AAAAAAAAAdc/w9wjSm4i_FA/s1600/Sarokar.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="320" src="http://2.bp.blogspot.com/-z1mN20q-Npo/UTeH0Xa2sVI/AAAAAAAAAdc/w9wjSm4i_FA/s320/Sarokar.jpg" width="233" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><b><span style="color: red;">राजा के बहाने नेताजी पर निशाने </span></b></td></tr>
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उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया पर डीएसपी कुंडा जिया उल हक की हत्या में साजिश रचाने का आरोप लगाया गया है. राजा के ही बहाने विपक्ष को अखिलेश की सपा सरकार को घेरने का मौक़ा मिल गया है. जातीय संघर्ष में बीच-बचाव करने पहुंचे डिप्टी एसपी हक़ को बहुत ही बेरहमी से मारा गया. मौक़ा-ए-वारदात से जो कुछ पता चला है, उससे स्पष्ट होता है कि बड़े ही सुनियोजित तरीके से हक़ को मौत के घात उतारा गया और हक़ के साथ गए कई थानों के पुलिसकर्मी रात के अन्धेरे में दूर से टार्च मारते रहे, लेकिन कोई करीब जाने की जहमत नहीं उठाया. सीओ के हमराही पुलिस वाले तब गाव में घुसे, जब हमलावर अपना मकसद पूरा कर चुके थे. जो कुछ देखा गया, उससे ऐसा लगता है कि हमलावर पुलिस अधिकारी के प्रति बहुत गुस्से में थे, क्योकि उन्होंने क़त्ल के दौरान क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थी. वारदात के तुरंत बाद स्थानीय विधायक राजा भैया पर उंगली उठी और आनन-फानन में उन्होंने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा भी दे डाला. अब मामले की जांच सीबीआई को सौप दी गयी है और राजा को दुरुस्त करने की कवायद भी शुरू हो गयी है. क्योकि इस मामले को अल्पसंख्यक सियासत से जोड़ कर देखा जा रहा है. तमाम मुस्लिम नेताओं ने मृत पुलिस अधिकारी के घर पर पहुच कर आग में घी डालने का काम शुरू कर दिया है. सीएम अखिलेश स्वतः मृतक के घर पहुचे और आर्थिक इमदाद, सरकारी नौकरी तथा सीबीआई जांच के आदेश दिए, तो जाकर मामला कुछ शांत हुआ. लेकिन तमाम लोग अब भी राजा की गिरफ्तारी की मांग पर अड़े हैं, जो शायद एक-दो दिन में हो भी जायेगी. क्योकि जब रपट लिखी गई है, तो गिरफ्तार तो करना भी पडेगा. वैसे भी सरकार के कई मंत्री चाह रहे हैं कि कैसे भी राजा का बाजा बजे और उनका कद छोटा हो. एक बात जरूर है कि इस बार जैसे ही अखिलेश ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, तभी यह चर्चा शुरू हो गयी थी कि अब सूबे में जंगलराज कायम होगा और माफिया शासन चलाएंगे. हुआ भी कुछ ऐसा ही. राजा भैया का मामला सीधा एक पुलिस अधिकारी के क़त्ल से जुडा है लेकिन कई एन्य नेताओं के कारनामों ने अखिलेश सरकार को शर्मसार किया है. सपा को सत्ता में आये साल भर भी पूरे नहीं हुए, मगर कानून-व्यवस्था की नजर से कई खामियां सामने आयीं. कुंडा की इस वारदात के दौरान ही अकबर पुर में एक हिंदूवादी नेता राम बाबू गुप्ता की हत्या कर दी गयी, जिसमे स्थानीय सपा विधायक की संलिप्तता बताई जा रही है. ऐसे ही पूरे प्रदेश में कई जगह पुलिस पार्टियों पर हमले और तमाम नेताओं द्वारा सरकारी अधिकारियों को बेइज्जत करने के समाचार लगातार आ रहे हैं. ऐसे में क्या राजा भैया की मुश्कें कस कर अखिलेश प्रदेश की क़ानून व्यवस्था को पटरी पर ला पायेंगे. यही क़ानून व्यवस्था और गुंडाराज था जिसकी वजह से २००५ में मुलायम सिंह यादव को सत्ता से हाथ धोना पडा था और तत्कालीन विधान सभा चुनाव में सपा को करारी शिकस्त देकर मायावती ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया था. २०१२ के चुनाव में पुनः यूपी के लोगों मुलायम सिंह के नेतृत्व में भरोसा जताया और अखिलेश सीएम बन गए. मगर अखिलेश से यह सब कुछ संभल नहीं पा रहा है और जब से उन्होंने सत्ता संभाली है, प्रदेश में मानो माफियाराज कायम हो गया है. साम्प्रदायिक उन्माद और क़त्ल की कई प्रमुख वारदातों ने अखिलेश सरकार को कटघरे में खडा कर दिया है. अब राजा भैया के ऊपर सीओ की ह्त्या करवाने का आरोप मढ़कर सरकार खुद को पाक-साफ़ बताने की कोशिश में लगी है, लेकिन बात इतनी बिगड़ गयी है कि पानी सर से ऊपर जाता दिख रहा है. राजा भैया पर कार्रवाई करने से थोड़ी हिचक भी है सरकार में, क्योकि सत्ता पक्ष में राजा का तगड़ा वर्चस्व है. सरकार में राजा के समर्थक तीन दर्जन से भी ज्यादा एमएलए बताये जाते हैं. जिनमे अधिकांश राजपूत बिरादरी के हैं, तो कई अन्य दूसरी जातियों से ताल्लुक रखते हैं. पार्टी को यह भी डर सता रहा है कि कहीं राजा भैया को हवालात में डाला गया, तो संभव है कि सरकार लुढ़क न जाय. राजा भैया जैसों को यूपी में प्रश्रय देने का श्रेय अगर किसी को जाता है, तो वह मुलायम सिंह ही हैं. प्रदेश के हर दबंग को नेताजी ने संरक्षण दिया और जितना हो सका उन्हें पोषा भी. आज वही सपा सरकार के लिए फजीहत का सबब बने हुए हैं. आज जिस भी पार्टी में राजा भैया जैसे लोग हैं, उनके राजनैतिक कैरियर की शुरुवात मुलायम सिंह के ही साथ हुई थी और अपने ऐसे चेलों का मुलायम ख्याल भी खूब रखते हैं. तभी तो इलाहाबाद में अतीक, गाजीपुर में मुख्तार, भदोही में विजय मिश्रा, आजमगढ़ में उमाकांत-रमाकांत बंधु , फैजाबाद में मित्रसेन यादव और अभय सिंह, जौनपुर में धनंजय सिंह, प्रतापगढ़ में राजा और सुल्तानपुर में सोनू सिंह आदि लोगों ने जम कर अपना साम्राज्य फैलाया और आज ये लोग वक्त-बे-वक्त प्रशासन के लिए मुसीबत खडी करते रहते हैं. एक समय था जब ९० के दशक में मुलायम सिंह के इशारे पर उनके इसी तरह के कुछ विधायकों ने मायावती के ऊपर सरेआम हमला बोल दिया था. वो तो भाजपा के कुछ नेता बीच में आ गए, वरना बहिनजी का काम तमाम हो गया होता. यूपी की सियासत में मुलायम सिंह यादव की एक ऐसे नेता की छवि है, जो माफिया से बिलकुल परहेज नहीं करते. यही नहीं जरूरत पड़ने पर हर स्तर पर पोषण भी करते हैं. अपनी पार्टी के दबंगों का पोषण और विरोधियों का दमन मुलायम सिंह की बहुत पुरानी स्टाईल है. पंचायतों के चुनाव में तो मुलायम का यह माफिया नेटवर्क उनको बहुत कामयाबी दिलाता है. इसी वजह से ऐसे तत्वों से घिरे हुए हैं नेताजी. अब देखना है कि वो राजा पर किस तरह की कार्रवाई करते हैं.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-9134663209651098192012-11-17T09:35:00.004-08:002012-11-17T09:35:44.105-08:00पहली बार हारे ठाकरे, वो भी मौत से <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-aV5zkaB7jrU/UKfK01MlyBI/AAAAAAAAAc8/qRbjKGfgcdY/s1600/Meet_Bal_Thacke6850.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="http://4.bp.blogspot.com/-aV5zkaB7jrU/UKfK01MlyBI/AAAAAAAAAc8/qRbjKGfgcdY/s320/Meet_Bal_Thacke6850.jpg" width="320" /></a></div>
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कभी हार न मानने वाले बाल ठाकरे आखिर मौत से हार गए। पूरे चालीस साल तक महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में रहने वाले ठाकरे के निधन पर न सिर्फ उनके समर्थक, बल्कि विरोधी भी रो पड़े हैं। पांच-छ: दिनों तक मौत से जंग लड़ने के बाद शनिवार को जब उनके देहावसान की घोषणा हुई, मराठी माणुस असहाय हो उठा। मराठी माणुस के हक़ की लड़ाई लड़ते-लड़ते मुंबई और ठाणे पालिका पर अपने सत्ता स्थापित करवाने के बाद महाराष्ट्र विधान सभा पर भी भगवा परचम फहरा दिए। हमेशा खुद सत्ता से दूर रहने वाले ठाकरे अपने निष्ठावान सिपाहियों का हमेशा ख्याल रखते थे। दूसरे दलों में चल रही वंशवाद की परम्परा से बेखबर ठाकरे ने कभी अपने परिवार को आगे नहीं बढाया। वरना वो चाहते तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपने पुत्र उद्धव या भतीजे राज को बैठा देते, लेकिन उन्होंने ऐसा न करके बढ़ती जा रही परिवारवाद की रीति को करारा तमाचा मारा। शिवाजी पार्क की दशहरा रैली में उन्हें सुनने दूर-दूर से लोग पहुचा करते थे। सिर्फ यही साल है कि दसहरा रैली में शिवसैनिक अपने "साहेब" को साक्षात नहीं सुन सके। इस बात से उनके समर्थक दुखी जरुर हुए, लेकिन उन्हें यह पता था कि उनका शेर सलामत है और तबीयत ठीक नहीं होने के कारण रैली में नहीं आ सका। दशहरे के बाद से ही शिवसेना प्रमुख की सेहत को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगानी शुरू हो गई थी। दीपावली आते-आते उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गयी। नीयति के आगे किसी की चलाती कहाँ है। शनिवार दोपहर बाद मुंबई में सब कुछ सामान्य चल रहा था कि अचानक डाक्टरों ने उनके निधन की घोषणा कर दी। ठाकरे के आवास मातोश्री पर उस समय उपस्थित हर आमो-ख़ास की आँखे छलक उठी। हर कोई नाम आँखों से उनके अंतिम दर्शन को बांद्रा के कला नगर की तरफ दौड़ पडा। लेकिन किसी भी अनहोनी की आशंका से सतर्क मुंबई पुलिस ने मातोश्री के आस-पास ही नहीं, बल्कि पुरी मुंबई को अपनी आगोश में ले लिया। देर रात तक मुंबई में शान्ति के साथ जो अभूतपूर्व बंदी दिखी, उसे देख कर यही लग रहा था कि महानगर के लोग अपने कर्मवीर नेता को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहे हैं। ठाकरे आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा मराठी भूमिपुत्रों के लिए किया गया संघर्ष दुसरे नेताओं के लिए एक नजीर बन कर रहा गया है। आज वो लोग भी ठाकरे की याद में कसीदें पढ़ रहे हैं, जो कभी उनके धुर विरोधी हुआ करते थे। भारतीय राजनीति में अपनी तरह की प्रतिभा के वो एकमात्र विरले व्यक्तित्व रहे,जिनका सारा जीवन मराठी माणुस और हिंदुत्व की सेवा में बीता।<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-35361335003387018752012-05-27T09:20:00.001-07:002012-05-27T09:20:20.155-07:00भारी पड़ सकता मोदी को अहंकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: right; margin-left: 1em; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/-iPGKkQeEFBg/T8JTjZXxiYI/AAAAAAAAAcY/_jv-YBTjd0Y/s1600/sarokar.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="183" src="http://4.bp.blogspot.com/-iPGKkQeEFBg/T8JTjZXxiYI/AAAAAAAAAcY/_jv-YBTjd0Y/s320/sarokar.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">nitin gadkari ko shayad unki had me rahne ki <br />nasihat de rahe hai narendr modi</td></tr>
</tbody></table>
<span style="background-color: white; font-family: Mangal, Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px; text-align: justify;"> कांग्रेस की ओर से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा गया है कि मोदी में हिटलर के प्रचार मंत्री जोसेफ गोब्बेल्स की आत्मा समा गयी है. हाल में मुम्बई में संपन्न बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी मीटिंग में मोदी ने दिल्ली की सत्तारूढ़ कांग्रेस पर हमला बोलते हुए इस सरकार को चर्चित तांत्रिक निर्मल बाबा के दरबार के संज्ञा दी थी. इस पर नाराज कांग्रेसियों ने मोदी को जर्मनी के नाजी नेता गोब्बेल्स कह दिया है. मोदी पर हुए इस प्रहार से तमतमाई भाजपा ने कांग्रेसी नेताओं पर अदूरदर्शिता का आरोप लगाते हुए कहा है कि किसी भी नेता के विरोध का ये तरीका कतई उचित नहीं है कि उसको इस तरह कुख्यात की संज्ञा दे दी जाय. मोदी को लेकर चल रहे आरोप-प्रत्यारोप के इस दौर ने सियासी गलियारे में सुर्खियाँ बटोरना शुरू कर दिया है. इस बीच एक सवाल ये उठाता है कि आखिर बीजेपी मोदी की तानाशाही को इतना झेल क्यूँ रही है. मुम्बई की कार्यकारिणी बैठक में आने से पहले मोदी ने जिस तरह से पार्टी और संघ को घुटने टेकने को मजबूर किया, वो किसी से छिपा नहीं है. मोदी की जिद के आगे भाजपा को झुकना पडा और पार्टी के निष्ठावान संघी कार्यकर्ता संजय जोशी को बाहर का रास्ता दिखाना पडा. यह कोई पहली घटना नहीं है, जब पार्टी को मोदी के सामने बेपानी होना पडा हो. क्या मोदी पार्टी से बड़े हो गए हैं जो जब चाहे, आँख दिखाते रहते हैं. ये बात तो सोलह आने सच है कि भाजपा में पहली कतार के किसी भी नेता में इतनी माद्दा नहीं है कि वो राष्ट्रीय स्तर पर इतनी वोट हासिल कर सके कि दिल्ली की कुर्सी पाई जा सके. गडकरी को भले ही पार्टी का मुखिया बना दिया गया हो, लेकिन वह महाराष्ट्र से बाहर अपनी कुछ ख़ास पहचान नहीं रखते. राजनाथ भी भारी-भरकम कद-काया के बावजूद जमीनी स्तर पर बहुत ही कमजोर हैं. यूपी के बहार उनको भी कम ही पहचान मिलती है. अडवानी तो अब गुजरे जमाने की बात होते जा रहे हैं. बस एक सुषमा है, लेकिन पार्टी में उनको उतना महत्त्व दिया नहीं जाता. रही बात जेटली, रविशंकर और मुख्तार की, तो ये तीनों सिर्फ मीडिया तक ही सीमित हैं. ऐसे में मजबूर भाजपा के पास मोदी ही एक मात्र विकल्प बचाते हैं, लेकिन इस बात की बड़ी कीमत माग रहे हैं नरेंद्रभाई. जब चाहते हैं पार्टी नेतृत्व को झुका लेते हैं. शायद यह भूल रहे हैं कि आज वो जो भी हैं बीजेपी की वजह से ही, लेकिन उनको इस बात का बिलकुल भान नहीं है. मोदी का अहंकार आज इस तरह पार्टी आला कमान पर हाबी होता जा रहा है कि उनके सामने हर नेता बौने होते जा रहे हैं. यह बीजेपी के लिए ही नहीं मोदी के लिए घातक हो सकता </span><span style="background-color: white; font-family: Mangal, Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px; text-align: justify;">है.</span>
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-71243806752329500782012-02-20T03:39:00.000-08:002012-02-20T03:39:53.582-08:00सरोकार: हारे माननीयों के अपने<a href="http://panditarun.blogspot.in/2012/02/blog-post_20.html#links">सरोकार: हारे माननीयों के अपने</a>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-88215281338599410902012-02-20T03:32:00.001-08:002012-02-20T03:35:11.381-08:00हारे माननीयों के अपने<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="http://2.bp.blogspot.com/-QLAGA9vjdOM/T0IvUlccglI/AAAAAAAAAbA/cJNcj9eoocQ/s1600/mananeey.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://2.bp.blogspot.com/-QLAGA9vjdOM/T0IvUlccglI/AAAAAAAAAbA/cJNcj9eoocQ/s320/mananeey.jpg" width="185" /></a></div>
मुंबई पालिका चुनावों के दौरान जहां भाजपा ने किसी भी नेता के परिजन को टिकट न देने की घोषणा की, वहीं कांग्रेस ने गिन-गिनकर अपने नेताओं की बीबियों, बेटों व अन्य रिश्तेदारों को उम्मीदवारी दी थी, जिसमें कुछ तो जीत गये लेकिन कइयों की किस्मत में नगरसेवक बनना शायद नहीं लिखा था। कांग्रेस की ही तरह शिवसेना ने भी वंशवाद की परंपरा का निर्वाह करते हुए कई विधायकों के पुत्रों को मैदान में उतारा, जो जीतने में सफल रहे ।<br />
पालिका के पिछले बोर्ड में विरोधी पक्ष के नेताव विधायक राजहंस सिंह बड़ा दबाव बनाकर पार्टी से अपने बेटे नितेश को कुर्लासे टिकट दिलाया, लेकिन जिताने में कामयाब नहीं रहे । जबकि कांदिवली के विधायक रमेश सिंह ठाकुर अपने बेटे सागर ठाकुर को उत्तराधिकारी बनाने में कामयाब रहे । कांग्रेस के ही विधायक मधु चव्हाण अपने पुत्र समीर को भायखला इलाके सेमैदान में उतारे थे , लेकिन मतदाताओं ने उसे नकार दिया । पुत्रों की पराजय के गम से कांग्रेसी विधायक कालिदास कोलंबकर, सदा सरवणकर व एनी शेखर भी दुखी हैं। कालिदास के बेटे प्रथमेश, सदा सरवणकर के पुत्र समाधान व एनी शेखर के बेटे विनोद को पराजय का मुंह देखना पड़ा है । जबकि कांग्रेसी विधायक चंद्रकांत हंडोरे की बीबी संगीता चेंबूर इलाके सेनगरसेविका बनने में सफल रही ।<br />
मनसे के बोरिवली से विधायक प्रवीण दरेकर अपने भाई प्रकाश को जहां जिताने में कामयाब रहे , वहीं ठाणे में विधायक प्रताप सरनाईक की बीबी परीषा एवं पुत्र विहंग ने जीत दर्ज की है । जबकि मुंबई के दिग्गज कांग्रेसी सांसद गुरुदास कामत के भांजे समीर देसाई गोरेगांव में हार गये। शिवसेना के विभाग प्रमुख एवं दहिसर इलाके से विधायक विनोद घोसालकर अपने बेटे अभिषेक को नगरसेवक बनाने में सफल रहे । अभिषेक ने कांग्रेस के वरिष्ठ नगरसेवक राजेंद्र प्रसाद चौबे को परास्त किया ।<br />
टिकट वितरण में परिवारवाद पनपने की खबर उसी समय उठने लगी थी, जब आधे से अधिक सीटें महलाओं के लिए आरक्षित कर दी गयी। सभी पार्टियों के मठाधीशों ने अपने क्षेत्रों में दबदबा कायम रखने के लिए अपने परिजनों को टिकट दिलाने की कवायद शुरू की, तो भाजपा ने इस झगड़े से खुद को अलग करते हुए घोषणा कर दिया कि किसी भी नेता के परिवार वालों को टिकट नहीं दिया जाएगा। यहां तक कि मुंबई भाजपाध्यक्ष राज के. पुरोहित आखिरी दम तक अपनी बहू हेमा को टिकट दिलाने प्रयासरत रहे, लेकिन अंतत: उन्हें निराशा ही हाथ लगी। भाजपा में अपवाद स्वरूप सिर्फ एक टिकट गट नेता आशीष शेलार के भाई विनोद को मालाड से टिकट दिया था, जो जीतने में कामयाब रहे । विनोद के मामले में यह भी कहा जा रहा है कि वह आशीष के भाई भले थे लेकिन क्षेत्र की स्थानीय राजनीति में बड़ी सक्रियता से जुटे हुए थे। उनके टिकट मिलने का कारण आशीष का भाई होना नहीं, बल्कि पार्टी का कार्यकर्ता होना रहा। भाजपा जहां नेता परिजनों को टिकट देने से बची, वहीं सभी पार्टियों ने अपने माननीयों के अपनों को जमकर टिकट दिया, जिसमें कुछ हारे तो कुछ जीते । </div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-45024271426427552722012-02-18T10:14:00.000-08:002012-02-20T03:11:00.755-08:00...तो एक दर्जन मारवाड़ी होते नगरसेवक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-x8BvaBGZ7J4/T0IqIrEcvgI/AAAAAAAAAaw/GwyamWFyFS4/s1600/marwadi.tif" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-x8BvaBGZ7J4/T0IqIrEcvgI/AAAAAAAAAaw/GwyamWFyFS4/s1600/marwadi.tif" /></a><br />
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पालिका चुनावों में परास्त राजस्थानी समाज के उम्मीदवारों की ताजा स्थिति का आकलन करने से जाहिर होता है कि वे बिना किसी रणनीति के मैदान में उतरे और आपसी सामंजस्य का अभाव इनकी राह का कांटा बन गया।<br />
सामाजिक एकता के लिए मशहूर प्रवासी समाज ने इस चुनाव में अपनी फूट का जमकर प्रदर्शन किया। रास्थानी उम्मीदवारों के खिलाफ कई सीटों पर उनके अपने लोग भी प्रचार करते दिखे। हद तो तब हो गई जब एक ही सीट पर एक ही परिवार के दो भाई अलग-अलग पार्टियों से आमने-सामने हो गए। ऐसा दिखा अंधेरी पूर्व पवई के वार्ड संख्या ११५ में, जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस से चंदन शर्मा निर्वाचित हुए हंै। उनके सामने चचेरे भाई भवानी शंकर भाजपा के टिकट पर थे। चंदन को ६८९७ तो भवानी शंकर को ४५६३ वोट मिले। शर्मा बंधुओं की यह लड़ाई तो खुलकर थी। कई जगह मारवाड़ी उम्मीदवारों के सामने उनके ही समाज के लोग दूसरे दलों का झंडा लिये घूम रहे थे। देखने में यह भी आया कि भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों का टिकट पाकर ही कुछ लोग अपनी जीत मान बैठे। ठीक से प्रचार नहीं किया। अपने समाज के वोटरों तक भी नहीं पहुंचे। शायद उन्हें लगा बड़ी पार्टी का टिकट मिला है, वोट तो खुद ही मिल जाएंगे।<br />
कांदिवली में पुष्पा विनोद धाकड़ को अगर पूरे राजस्थानी वोट मिल जाते तो जीत कोई रोक नहीं सकता था। इस वार्ड में ५ हजार तो सिर्फ उनके सजातीय जैनों के ही वोट हैं। पुष्पा को ७४३४ वोट मिले हंै। वहां से शिवसेना की उम्मीदवार प्रजाक्ता सावंत ने ९५२३ वोट पाकर धाकड़ को हराया। २०८९ वोटों से पराजित पुष्पा अपनी हार को जीत में बदल सकती थी। बशरर्ते उनके प्रबंधक सारे राजस्थानी परिवारों तक पहुंच जाते। मगर ऐसा हुआ नहीं और राजस्थानी समाज अपनी जीती हुई एक सीट खो दिया।<br />
राजनीति के पंैतरों से अंजान इन प्रवासी उम्मीदवारों ने पार्टियों के स्थानीय कार्यकर्ताओं को प्रबंधक बना दिया था, जिन्होंने बराबर ध्यान नहीं दिया। या यूं कहें कि वे सिर्फ खानापूर्ति के लिए ही लगे थे। भाजपा ने तो टिकट कई दिए, लेकिन सिर्फ उन्हीं सीटों पर जहां जीत पाना मुश्किल था। पार्टी स्तर पर भी इन उम्मीदवारों के साथ सौतेला व्यवहार ही रहा। मालाड पश्चिम में ३१ वार्ड से उतरे भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र राठौड़ बाली के निवासी हैं, लेकिन उन्हें बाली का एक भी प्रवासी मुंबई में जानता तक नहीं। नरेंद्र को ३५२५ वोट मिले हैं। जबकि उनके सामने जीते कांग्रेस के तेजेंद्रतिवाना ने ७३५० वोट लेकर जीत दर्ज की। भाजपा ने ही शिवगंज के भरत सोलंकी को मझगांव २०६ वार्ड से टिकट दिया, जो सिर्फ २७०० वोट पाए,जबकि सामने कांग्रेस उम्मीदवार ने १०००० वोट झटक लिए। इस इलाके में इतने मारवाड़ी वोटर हैं कि अगर उन तक पहुंच लिया गया होता तो शायद सोलंकी की हार इतनी शर्मनाक न होती। हारने के लिए कांग्रेस ने शायद लक्ष्मण कोठारी को मानखुर्द में वार्ड १३४ से टिकट दे दिया। लक्ष्मण की भिड़ंत शिवसेना के धुंरधर राहुल शेवाले से हुई जो ७५८४ वोट पाए और दूसरे पर मनसे रही। कोठारी २७७५ वोट पाकर तीसरे पर चले गए। कोठारी के राजनैतिक बोध का एहसास इसी से होता है कि चुनाव की पूर्व संध्या पर उन्हें शिवसैनिकों ने खुलेआम रुपए बांटते न सिर्फ पकड़ा, बल्कि अपमानित कर पुलिस के हवाले भी कर दिया। नगरसेवक तो बनने से रहे, मुकदमा चलेगा सालों-साल ऊपर से।<br />
समुद्रके किनारे कुलाबा इलाके में वार्ड २२५ से भाजपा ने जोजावर की मंजू वैष्णव को टिकट दिया। वहां से वो दूसरी बार चुनाव लड़ी थी। इस बार २६४० ही वोट मिले, जबकि कांग्रेस की सुषमा सालुंखे ने ५६४४ वोट लेकर मैदान जीत लिया। शिवसेना ने भी परायी सीट पर कमाठीपुरा वार्ड २०९ से भीनमाल की आशा जैन को उतारा, लेकिन ३८६३ वोट पाकर आशा हारने वालों में सुमार हो गई। चुनावी नतीजे जहां यह कह रहे हैं कि अगर राजस्थानी वोट एकमुस्त हो गए होते तो शायद एक दर्जन मारवाडी नगरसेवक होते, लेकिन समाज के बिखरेपन ने ऐसा होने नहीं दिया। दूसरे जो चुनाव लड़ रहे थे, वो भी अपने लोगों से दूरी बनाए रहे।<br />
<br /></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-2078217914413450922012-02-17T00:25:00.000-08:002012-02-20T03:16:57.912-08:00अपनों की वजह से कद छोटा हुआ गुरु-चेले का<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="http://1.bp.blogspot.com/-pGR4phg7RoI/T0IrTnst-EI/AAAAAAAAAa4/KAY2Aky8kfM/s1600/GOPI-RAJ-1000.bmp" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://1.bp.blogspot.com/-pGR4phg7RoI/T0IrTnst-EI/AAAAAAAAAa4/KAY2Aky8kfM/s200/GOPI-RAJ-1000.bmp" width="188" /></a></div>
आस-पास की कई पालिकाओं और राज्य मे संपन्न स्थानीय निकाय चुनावों मे जहां अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए सत्तारूढ़ कांग्रेस और एनसीपी ने अपना पूरा जोर लगा दिया, वहीं विपक्षी शिवसेना- भाजपा ने भी कोई कसर नहीं छोड़ा. कौन कितने फायदे मे रहेगा और किसको घाटा होगा, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पायेगा. मगर भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं को इस चुनावी माहौल में जो कीमत चुकानी पडी, उसे वो कभी नहीं भूल पायेगे.
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव गोपीनाथ मुंडे अपनी पार्टी की मुम्बई इकाई के प्रमुख राज के. पुरोहित के गुरु माने जाते हैं. चुनाव के इस दौर में गुरु चेले की जोड़ी को झटके पर झटके लगे, जिससे ना सिर्फ उनकी जग हसाई हुई, बल्कि पार्टी मे भी बड़ी फजीहत का सामना करना पडा. जैसे ही चुनाव का बिगुल बजा, मुंडे का सगे भाई पंडितराव ने शरद पवार की एनसीपी का झंडा उठा लिया. बात यही नहीं ख़त्म हुई, मुंडे के भतीजे धनंजय ने भी पवार को अपना नेता मान लिया. ये दोनों ही घटनाएँ गोपीनाथ मुंडे के लिए शर्मनाक से कम नहीं हो सकती. राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी मे अपनी पकड़ रखने वाले मुंडे पर उनके विरोधी यह आरोप लगा रहे हैं कि जब वो अपना घर नहीं सभाल सकते तो पार्टी क्या सभाल पायेगे.
गोपीनाथ मुंडे हमेशा शरद पवार के खिलाफ मुखर रहा करते हैं, लेकिन पवार ने उनके घर मे सेंध लगा कर जो धक्का दिया है, भाजपा में मुंडे का कद छोटा करने के लिए काफी है. मुंडे जैसी ही हालत उनके चेले काहे जाने वाले मुम्बई भाजपा अध्यक्ष राज के. पुरोहित की भी हुई है. मुम्बई पालिका चुनाव में अपनी बहू के लिए टिकट का जुगाड़ कर पाने में नाकामयाब रहे पुरोहित को इस चुनावी प्रक्रिया के दौरान तमाम ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होना पडा, जो उनकी हैसियत को कमतर बताने के लिए पर्याप्त है. राज जिस सीट से बहू के लिए टिकट माग रहे थे, पार्टी ने वहां दूसरे को उतार दिया. मामला यहीं नहीं था गया, उसी सीट पर राज के पूर्व पीए जनक संघवी ने अपनी बीवी को उतार दिया. जो इस बात का प्रतीक है कि राज की पकड़ पार्टी पर ढीली पड़ती जा रही है. जनक की बीवी के पक्ष मे राज पुरोहित के समधी ने जमकर प्रचार किया, तो इलाके में तरह- तरह की चर्चाएँ शुरू हो गयी.
कहा जा रहा है कि चीरा बाजार इलाके की इस सीट से राज की बहू को टिकट नहीं दे कर बीजेपी ने वहां से वीणा जैन को उम्मीदवारी दे दी. इससे नाराज राज ने जनक की बीवी को निर्दलीय उतार करके वीणा की राह मुश्किल करने का भरपूर प्रयास किया. वैसे राज की इन कारगुजारियों पर उनका विरोधी खेमा बराबर नजर रखे हुआ है. विनोद तावड़े और आशीष शेलार तो जैसे राज की एक-एक खामियों पर नजर रखे हुए हैं. ये दोनों ही नेता पार्टी प्रमुख नितिन गडकरी के करीबी माने जाते हैं. ऐसे में संभव है कि चुनावों के बाद राज को अपने वरिष्ठों का कोपभाजन बनना पड़े.
महाराष्ट्र की राजनीति मे मुंडे और मुम्बई में पुरोहित की जुगलबंदी लम्बे समय से चली आ रही है. मुंडे के ही आशीर्वाद से पुरोहित ने नगरसेवक से लेकर राज्यमंत्री बनने तक का सफ़र तय किया. दो साल पहले की ही बात है, जब पुरोहित को मुम्बई अध्यक्ष बनाने के लिए मुंडे ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उनको मनाने के लिए तमाम वरिष्ठ नेताओं को मुम्बई आना पडा था. मुंडे पार्टी में पिछड़े वर्ग का चेहरा माने जाते हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी को मजबूती दिलाने में मुंडे का ख़ास योगदान माना जाता है. राज्य के गृह मंत्री रहते उन्होंने मुम्बई को अपराध मुक्त कराने में अहम् भूमिका निभाई थी. वो बड़े ही कुशल राजनेता के रूप में उभरे थे लेकिन अपनों ने उनका कद छोटा कर दिया.<br />
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</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-52430266218018193732012-01-24T10:23:00.001-08:002012-01-24T10:25:24.325-08:00निष्ठा का पलायन<a href="http://1.bp.blogspot.com/-oZkNeNGwRZc/Tx73ZZAbalI/AAAAAAAAAZ4/nWROwWVzqiE/s1600/PAGE1.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 249px;" src="http://1.bp.blogspot.com/-oZkNeNGwRZc/Tx73ZZAbalI/AAAAAAAAAZ4/nWROwWVzqiE/s320/PAGE1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5701266193879099986" /></a><br /> भूमिपुत्र मराठियों के लिए संघर्ष और फिर कट्टर हिंदूवाद कि ध्वजवाहक बनी शिवसेना जब तक सत्ता से दूर रही, सबकुछ ठीक- ठाक चलता रहा, लेकिन जैसे ही शिवसैनिकों ने सरकारी सुविधाओं का मजा लिया, पलायन भी शुरू हो गया. महाराष्ट्र के दिग्गज ओबीसी नेता छगन भुजबल जो अब पवार का राष्ट्रवादी झंडा उठाये हुए हैं, वो कभी शिवसेना प्रमुख के सबसे ख़ास सिपहसालार हुआ करते थे. भुजबल ने जब शिवसेना छोडी थी, शिवसैनिकों ने उनकी बहुत दुर्गति कि थी. लम्बे समय तक भुजबल सेना के निशाने पर रहे. पार्टी मे मनोहर जोशी के बढ़ते कद से खफा होकर भुजबल ने बाल ठाकरे से दूरी बनाई थी. उस समय भुजबल के रूप में ठाकरे ने एक अच्छा कार्यकर्ता खोया था. ये वही दौर है जब शिवसेना प्रमुख पार्टी के मामलों मे आपने परिजनों को शामिल करने लगे. उस दौरान उनके भतीजे राज ठाकरे का पार्टी मे सिक्का चलता था.वो पार्टी की छात्र इकाई के मुखिया थे. पार्टी के झगड़ालू और दबंग किस्म के युवा राज के पीछे चला करते थे. वही फौज तो आज भी राज के साथ है. शिवसेना मे रहते राज ने तत्कालीन भाजपा-सेना सरकार मे खूब मजा लिया था. वो जो चाहते, वही होता. राज के अलावा सेना प्रमुख के बेटे उद्धव और पुत्रवधू स्मिता का पार्टी और सरकार मे खूब असर था.रिमोट बाल ठाकरे के हाथों मे और देखरेख की जिम्मेदारी परिजनों पर. यही बात कई नेताओं को नागवार गुज़री और भुजबल समेत तमाम अन्य नेता आँख दिखाने लगे. पार्टी के कमजोर होने के प्रमुख कारणों मे ठाणे से आनंद दिघे का अवसान भी है, वरना ठाणे मे तो शिवसेना लहलहाया करती थी. शिवसेना से एकाग होने की तमाम लोग सिर्फ इसलिए हिम्मत नही जुटा पाते थे कि उनको बड़ी दुर्गति से गुजरना पडेगा. पार्टी से अलग होने की बड़ी कीमत चुकानी पडी थी भुजबल को. घर से बाहर तक कई बार शिवसैनिकों के कोप का भाजन बनाना पडा था. वो तो गणेश नाईक और नारायाण राणे सीधे सरकार के साथ हो लिए, वरना इन्हें भी निशाना बनाया जाता. फिर भी राणे को जबरदस्त आक्रोश का सामना करना पडा था. <br />अपनी स्थापना के समय मराठी माणूस के बीच मजबूत पकड़ रखने वाली सेना जब दूसरे अन्य दलों की तरह घर परिवार की तरफ चली, लोगो की निष्ठा पलायन करने लगी. उन दिनों अपने संगठन के लिए शिवसेना पूरे देश मे जानी जाती थी.Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-71345556546294844072012-01-23T10:03:00.001-08:002012-01-23T10:07:12.800-08:00शिवसेना का काउंट-डाउन<a href="http://4.bp.blogspot.com/--RE_AFlPWD0/Tx2hykCqoDI/AAAAAAAAAZg/0jvT-U4eN6U/s1600/UDHAV%2BTHAKRE.tif"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 190px; height: 320px;" src="http://4.bp.blogspot.com/--RE_AFlPWD0/Tx2hykCqoDI/AAAAAAAAAZg/0jvT-U4eN6U/s320/UDHAV%2BTHAKRE.tif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5700890593361305650" /></a><br />महानगरपालिका मुंबई की हो या फिर ठाणे की,दोनों ही जगह लंबे अर्से से शिवसेना का वर्चस्व कायम है। जिसका प्रमुख कारण है मराठी मतों का एकमुस्त सेना की तरफ होना तथा सहयोगी भाजपा की विशेष भागीदारी। हिंदीभाषी व गुजराती बहुसंख्य मतदाता भाजपा के समर्थक है, जिसका फायदा हमेशा शिवसेना को मिलता रहा, लेकिन वक्त के साथ अब स्थितियां बदलती नजर आ रही है।<br />शिवसेना प्रमुख की सेहत बिगडऩे के साथ ही उन्होंने अपने पुत्र उद्धव को धनुष वाण पकड़ा दिया। यही से शुरु हो गया शिवसेना का काउंट-डाउन। पहले बड़े-बड़े दिग्गजों ने पार्टी से किनारा किया। अब निचले स्तर के कार्यकर्ता भी दूसरे दलों में पनाह ले रहे है। राज ठाकरे का सेना से अलग हो कर अपनी मनसे का गठन इस काउंट-डाउन की खास कड़ी है। छगन भुजबल हो या नारायण राणे, गणेश नाईक , संजय निरुपम हो या आनंद परांजपे सभी पार्टी नेतृत्व को कोसते हुए दूसरे दलों के हो लिये। मुंबई और ठाणे पर एकछत्र राज करने वाली शिवसेना अब लडख़ड़ाती हुई दिख रही है। कोई जमाना था , जब मुंबई की छ: लोकसभा सीटों पर सुनील दत्त के अलावा भाजपा-सेना के ही सांसद चुने जाते थे। मगर पिछले चुनाव में मुंबई से भगवा युति को करारी हार का सामना करना पड़ा। पूरे ठाणे जिले को अपना गढ मानने वाली शिवसेना,अब वहां से भी नेस्तनाबूद जैसी हो गयी है। पहले ठाणे में दो लोक सभा सीटें होती थी। ठाणे में प्रकाश परांजपे तो पालघर में चिंतामणि वनगा जैसे नेता कब्जा जमाए थे। आज ठाणे में चार संसदीय क्षेत्र है, जहां सिर्फ कल्याण से शिवसेना को एक सीट पर कामयाबी मिली थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व अपने युवा सांसद आनंद परांजपे को नहीं संभाल पायी और वो पवार के साथ हो लिए। परांजपे खुशी-खुशी पवार के साथ गए, ऐसा नहीं है। मीडिया के सामने सार्वजनिक तौर पर जिस तरह वो फफक कर रोए। उससे साफ जाहिर है कि आनंद पार्टी नेतृत्व से कितने खफा है। मराठी हितों की रक्षा का दंभ भरने वाली शिवसेना भूमि पुत्रों के मुद्दे पर लंबी पारी खेल चुकी है, लेकिन अब यह मुद्दा राज ठाक रे ने झटक लिया है। <br />राज भी उद्धव से ही नाराज होकर शिवसेना को जय महाराष्ट्र बोले थे। अब वे ठाकरे परिवार के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रहे है। आम शिवसैनिक भी जो बाला साहेब की परम्परा से जुडा है, वह खुद को इस पार्टी में असहज महसूस करने लगा है। चुनावी मौसम में शुरु हुआ आया राम-गया राम का यह खेल, इसी की परिणीत है।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-63900632604395880432012-01-22T10:15:00.000-08:002012-01-23T10:09:06.103-08:00शिवसेना-राकांपा की नूराकुश्ती<a href="http://4.bp.blogspot.com/-fOc_N_EcRzE/Tx2iKziJ9vI/AAAAAAAAAZs/KJeZ5vEbu4Q/s1600/pratahkal1.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 248px; height: 320px;" src="http://4.bp.blogspot.com/-fOc_N_EcRzE/Tx2iKziJ9vI/AAAAAAAAAZs/KJeZ5vEbu4Q/s320/pratahkal1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5700891009836775154" /></a><br />महाराष्ट्र फतह को निकली शरद पवार की एनसीपी ने शिवसेना का एक सांसद झटक कर खुद को ठाणे जिले की सबसे ताकतवर पार्टी साबित कर दिया है। जिले की कल्याण डोम्बिवली सीट से शिवसेना के सांसद आनंद परांजपे ने पवार का दामन थाम कर ठाणे मे शिवसेना के किले को हिला दिया है। <br />शिवसेना के टिकट पर ठाणे सीट की कई बार नुमाइंदगी कर चुके प्रकाश परांजपे जब तक थे, पार्टी के निष्ठावान रहे। तत्कालीन दिग्गज आनंद दिघे के उनके करीबी ताल्लुक थे। दिवंगत होने के बाद परांजपे के बेटे आनंद को सेना ने दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ाया, जिसमे दोनों ही बार वो कामयाब रहे। पहली बार पिता की सीट ठाणे से एनसीपी के संजीव नाईक को, तो दूसरी बार कल्याण मे इसी पार्टी के वसंत डावखरे को परास्त किया। ये दोनों ही पराजय पवार को खलने जैसी थी। उन्होंने अपने सभी झंडा बरदारों को लगा दिया और भीतर ही भीतर सेना को खोखला कर दिया गया। वसंत डावखरे, गणेश नाईक, जीतेन्द्र आह्वाड और संजीव नाईक जैसे नेताओं की मेहनत रंग लाई। पालिका चुनाओं से ठीक पहले आनंद परांजपे को अपनी बगल मे बैठा कर पवार ने अपना पावर दिखा दिया। विरोधी पार्टी के मंच से आनंद ने शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे पर जम कर भड़ास निकाली। खुद को दिल से शिवसैनिक बताने वाले आनंद ने कहा कि अब बालासाहेब के जमाने वाली शिवसेना नहीं रही। सत्ता के लिए इस पार्टी मे जमीनी कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया जा रहा। शरद पवार की सोच विकासशील है, इसलिए उनके पास आया हूं। पवार ने भी आनंद का आपने मंच पर गर्मजोशी से स्वागत किया, और कहा कि रांकापा की नीतियों की वजह परांजपे आकर्षित हुए है। आनंद को शिवसेना से दूर करने मे रांकापा विधायक जीतेन्द्र आह्वाड के प्रयासों की चर्चा हो रही है। चुनावी माहौल मे जहां नेताओं की इस दल से उस दल मे आवा-जाही का दौर चल रहा है। इस दौरान पवार के हाथ सेना का मजबूत मोहरा लग गया। हाल फि लहाल के चुनाव मे लगातार जीत दर्ज कर रही रांकापा नवी मुम्बई, मीरा भायंदर, कलवा मुम्ब्रा और ठाणे शहर मे तो तगड़ी थी ही अब कल्याण डोम्बिवली की राह भी आसान हो जायेगी। मुम्बई के राष्ट्रवादी भवन से पवार का आशीर्वाद लेकर लौटे आनंद परांजपे सीधे ठाणे के एनसीपी दफ्तर गए। वहां भी उनका स्वागत हुआ। दूसरी तरफ आनंद के इस कदम से नाराज शिवसैनिक खूब गुसाए है। वो तो आनंद के घर पर पुलिस का तगड़ा पहरा है, वरना वहां हो हल्ला जरुर मचता। पुलिस की कड़ी निगरानी के बावजूद जगह- जगह आनंद के पुतले जलाए गए। देर रात तक ठाणे के शिवसैनिक मुम्बई मे अपने नेताओं के साथ बैठकें करते रहे। सांसद संजय राउत ने परांजपे के मामले मे पार्टी का रुख स्पष्ट किया। कहा कि पहले उनको लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ ा देना था, फि र विरोधियों से हाथ मिलाते। राउत ने इस मामले निर्णय शिवसेना प्रमुख पर छोड़ा, लेकिन यह संकेत भी दिया कि आनंद के खिलाफ कारवाई होगी।<br /> आनंद परांजपे को राकांपा की ओर झुकाकर शरद पवार ने अपने समर्थकों को खुश कर दिया है। समर्थक फूले नहीं समा रहे। शिवसेना में मायूसी जैसा है। शिवसैनिक परांजपे पर आग बबूला हैं। <br />गुस्से का कारण भी वाजिब है। शिवसैनिकों ने बड़ी मुश्किल से आनंद के रुप में कल्याण से एक सांसद चुना था। बाकी तो मुंबई और पूरे ठाणे जिले से शिवसेना का एक भी सांसद नहीं जीत पाया। शिवसेना के इकलौते खासदार आनंद का पार्टी छोडऩा बाल ठाकरे को मानने वाले कार्यकर्ताओं को अखर गया। आनंद भी किसी बड़ी राजनीति का हिस्सा बने हैं। राष्ट्रवादी के नेता इसे पवार की चतुर नीति का परिणाम बता रहे है। आनंद परांजपे ने अपने पूर्व नेता उद्धव को निशाने पर लेते हुए पवार में निष्ठा दिखाई। इसी से शिवसैनिक तिलमिला उठे है। शिवसेना और राकांपा में इधर कुछ नूरा कुश्ती जैसा चल रहा है। दोनों ही पार्टी अपने नेताओं की अदला-बदली कर रही। पवार भी जब देखो ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंचे रहते है। कांग्रेस को जब भी आंख दिखानी हो, शरद पवार का बालासाहेब के प्रति प्यार जाग उठता है। हाल ही में ठाणे के राष्ट्रवादी विधायक सुभाष भोईर का सेना में जाना हो या प्रताप सरनाईक का मामला, इनसे ही जुड़ी है आनंद परांजपे की बात। बीते दिनों ठाणे जिले में राकांपा और शिवसेना के अच्छे-अच्छे कार्यकर्ताओं का आदान-प्रदान जैसा हुआ। कल्याण डोंबिवली के पुंडलीक म्हात्रे भी कभी एनसीपी में थे। अभी शिवसैनिक बने घूम रहे। नवी मुंबई के दादा गणेश नाईक भी कभी शिवसेना के पहली लाईन में थे। नवी मुंबई से लेकर मीरा-भायंदर तक फैले तत्कालीन बेलापुर विधान सभा क्षेत्र से नाईक विधायक फिर मंत्री रहे। शिवसेना से निकलकर सालभर अपने दम पर घूमते रहे नाईक उन दिनों आनंद दिघे के सामने हल्के पड़े। एक अंजान कार्यकर्ता को दिघे ने सेना से लड़ाया था। सीताराम भोईर, गणेश दादा को हराया। पांच साल विधायक रहे भोईर अब कहा है, किसी को नहीं पता । िबल्कुल साधारण कार्यकर्ता को न सिर्फ नाईक के सामने उतारे, बल्कि तत्कालीन सांसद प्रकाश परांजपे भी जब पहला चुनाव लड़े, वे ठाणे में पार्षद ही थे। दिघे के जाते ही ठाणे में शिवसेना बिखरने लगी। नाईक भी पवार के साथ हो लिए, पूरे परिवार को फिट कर दिया। कई चुनाव ऐसे हुए है, जहां शिवसेना और शरद पवार के लोगमिल बाटकर सत्ता हथियाए। जिससे आनंद परांजपे का राष्ट्रवादी प्रवेश एक ट्रांसफर के अलावा कुछ नहीं।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-38545225806816612672011-09-17T10:58:00.000-07:002011-09-17T11:02:17.150-07:00नरेंद्रभाई की राह मे कांटे ही कांटे<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/-67Tz9iJP7K0/TnTgXAhYq9I/AAAAAAAAAXk/57rlO7aD7oM/s1600/Naredra%2Bmodi.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 251px;" src="http://3.bp.blogspot.com/-67Tz9iJP7K0/TnTgXAhYq9I/AAAAAAAAAXk/57rlO7aD7oM/s320/Naredra%2Bmodi.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5653390118138457042" /></a><br /> गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के बारे मे एक अमेरिकी सर्वेक्षण संस्था ने भविष्य का प्रधानमंत्री क्या कह दिया, नरेन्द्रभाई खुद को दिल्ली स्थित ७ रेस कोर्स का हकदार मान बैठे. अपनी कद काठी को राष्ट्रीय दर्जा देने के लिए वो तीन दिन के उपवास पर बैठे हैं।नरेंद्रभाई के इस कदम ने पूरे देश के नेताओं को हिला कर रख दिया है. गैर तो गैर, अपनों ने भी उनकों निशाने पर ले लिया है. मोदी के उपवास को लेकर पक्ष - विपक्ष मे बयानबाजी का जोरदार सिलसिला शुरू है। कांग्रेस की तरफ से तो इसका विरोध होना लाजिमी है, एनडीए के नेता भी मोदी के व्रत का मजाक उड़ाने से नहीं चूक रहे हैं । शुरुआत मे जिन लोगों ने समर्थन किया था, वो भी अब सफाई देने लगे हैं. <br />दिल्ली मे सत्तारूढ़ कांग्रेस जहां मोदी के उपवास को एक स्टंट करार दिया है, वहीं लालकृष्ण आडवाणी और अरुण जेटली सहित कई वरिष्ठ बीजेपी नेता खुद उन्हें समर्थन देने पहुंचे. तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने प्रतिनिधि भेज मोदी के को समर्थन दिया है. पंजाब के मुख्यमं त्रीप्रकाश सिंह बादल भी मोदी के उपवास स्थल पर हाजिरी लगाते देखे गए, लेकिन बीजेपी कि सबसे बड़ी सहयोगी जेडी (यू ) ने इसको कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी है. बल्कि जद अध्यक्ष शरद यादव ने इस मामले मे नरेन्द्रभाई का मजाक ही उड़ाया है. यादव के अनुसार ' देश के ज्यादातर लोगो को रोज उपवास करना पड़ता है लेकिन उनकी खबर तक कोई नहीं लेता। कुछ खास लोगो के उपवासों की ही चर्चा होती है। ' <br />इस मामले मे जयललिता ने भी अपने समर्थन को सीमित करते हुए कहा कि इसका ज्यादा मतलब न निकाला जाए। उन्होंने कहा कि मोदी ने उन्हें फोन करके समर्थन देने की माग की थी। । उन्होंने साफ किया कि मोदी के उपवास का समर्थन करने का मतलब पीएम पद के लिए उनकी उम्मीदवारी का समर्थन नहीं है। जद यू द्वारा मोदी को समर्थन ना दिया जाना, कोई नै बात नही है. बिहार विधान सभा चुनाव मे भी मोदी को भाजपा का प्रचार करने से रोका गया था. एक बात यह भी राजनैतिक गलियारे मे चर्चा का विषय बनी हुई है कि क्या लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री के रूप मे नरेन्द्रभाई को पचा पायेगे. अन्ना हजारे के आन्दोलन के बाद कांग्रेस के खिलाफ बनी हवा मे आडवाणी को लगाने लगा है कि अब पुनः बीजेपी केंद्र की सत्ता मे आ जायेगी. इसीलिये आडवाणी एक बार फिर से रथयात्रा पर निकालने वाले हैं. वर्षों से पीएम बनने का ख्वाब देख रहे आडवानी आखिर क्यू मोदी का दिल से समर्थन करेगे.ऐसे हालत मे नरेंद्र भाई की राह मे कांटे ही कांटे ही दिख रहे है.Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2825812694967159921.post-70080328272223160492011-09-06T11:17:00.000-07:002011-09-06T11:18:54.670-07:00तानाशाह माया की डगर है मुश्किल<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/-se7f-c0bL7o/TmZj80PgR8I/AAAAAAAAAXc/X9DH1PB5Tt8/s1600/mayawati.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 218px;" src="http://4.bp.blogspot.com/-se7f-c0bL7o/TmZj80PgR8I/AAAAAAAAAXc/X9DH1PB5Tt8/s320/mayawati.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5649312679049840578" /></a><br /> दलितों के वोट पर तीसरी बार यूपी की मुख्यमंत्री और अब देश की प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही बसपा सुप्रीमो मायावाती की तानाशाही के किस्से इस दिनों आम हो गए हैं. बसपा सुप्रीमो की शाहखर्ची को विकिलीक्स ने जिस तरह से फ्लैश किया है, उससे लगता है की कांशीराम ने जिन उद्देश्यों को लेकर पार्टी स्थापित की थी, मायावती उससे भटक गयी है. अमेरिकी दूतावास के गोपनीय संदेशों का खुलासा करने वाली विकिलीक्स की इस रिपोर्ट में मायावती को तानाशाही के अंदाज में काम करने वाली मायावती महिला बताया गया है.जबकि मया ने विकिलीक्स के खुलासों को बकवास बताते हुए इसे विरोधियों की साजिश करार दिया. घर से दफ्तर जाने के लिए विशेष सड़क बनवाना, अपने ब्रांड की चप्पलें लेने लखनऊ से मुंबई सरकारी विमान भेजना, खाना बनाने के लिए मुख्यमंत्री आवास में नौ रसोइयों की फौज तैनात करने के आलावा भोजन की गुणवत्ता जांचने के लिए खाद्य निरीक्षक तैनात करने के आरोप माया पर लगे है. कोइ विरोधी खाने में जहर ना मिला दे, इस बात का माया को बड़ा खौफ है, इस वजह से ही एक खाद्य निरीक्षक तैनात कर रखा है। रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रदेश के हर छोटे-बड़े फैसले माया या तो खुद करती है या उनकी चौकड़ी की नजर इन पर रहती है. जन्मदिन पर उपहार में लाखों रुपये लेने के साथ ही चुनाव में पार्टी का टिकट बेचकर करोडो कमाने का भी आरोप है.यह भी बताया गया है कि अगर किसी मंत्री ने बिना माया की मर्जी के कोई कदम उठा लिया तो उसको कान पकड़ कर उठाना-बैठना पड़ता है. यूपी के अधिकारी तो मुख्यमंत्री के डर से गाय की तरह कापते है.<br />ज्ञात होकि गत विधान सभा चुनाव मे ब्राह्मण- मुस्लिम गठजोड़ के चलते दलितों का वोट बैंक भुना कर स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाने वाली मायावती लगता है इस बार यूपी की सत्ता से दूर रहने वाली है, क्योकि ब्राह्मण अब बसपा से किनारा करने लगे है.Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/02542544993226402834noreply@blogger.com0