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मंगलवार, 23 सितंबर 2008

महाराष्ट्र में गुंडा राज



महाराष्ट्र झुलसते-झुलसते बचा। मुंबई के सीने गुंडागर्दी के फफोलों से जख्मी हो गए । दो- तीन बेकसूरों की जान चली गई। भयवश मुम्बईकर घरों में दुबके रहे। खासकर एक वर्ग,जो यहाँ यूपी-बिहार से रोजी-रोटी की तलाश में आया है। एक दिन और एक रात बिता पाना मुश्किल हो गया था। कहीं रिक्शे जलाये गए तो कही बसों को तोडा गया। सडको पर सिर्फ़ पुलिस की गाडिया ही नज़र आ रही थी। अस्पतालों में आपातकालीन कक्ष भरे हुए थे। चारों ओर दहशत ही फैली हुयी थी। ये हुआ क्यों,सिर्फ़ वोट की खातिर। राजनेता चुनावों से पूर्व भाषण में कहते है...वो सत्ता पाने के बाद "गुंडाराज" खत्म करेंगे,लेकिन इस महाराष्ट्रियन राज ने तो चुनाव से पहले ही गुंडाराज कायम कर दिया। मराठी मूल के भूमिपुत्रों के सम्मान को मुद्दा बना कर मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे जिस तरह आपसी वैमनस्य फैला रहे,इसे आम मराठी भी नही हज़म कर पा रहा है।राज कहते है कि वो मराठी युवाओं के सम्मान के लिए लड़ रहे हैं। कोई भी इस बात को सिर्फ़ धोखा मान रहा है।मुंबई मिरर अंग्रेजी दैनिक के नगर संपादक दीपक लोखंडे की कार का शीशा टूट गया था राज की गिरफ्तारी के बाद हुए बवाल में। लोखंडे भड़क गए थे। उन्होंने कहा कि राज ठाकरे मराठी मानुस का इस्तेमाल सिर्फ़ वोट कि खातिर कर रहे हैं।उनको किसी के हित कि कोई परवाह नही है।लोखंडे के अनुसार उस समय इनका मराठी प्रेम कहाँ गया था,जब मजदूर नेता दत्ता सावंत यहाँ की मिलें बंद करवा रहे थे। उन मीलों में काम करने वाले अनगिनत मराठियों पर क्या बीती होगी,उस समय जब उनके मुंह से निवाला छीना जा रहा था।ये वही राज ठाकरे है,जो बंद पड़ी एक मिल को खरीद लिए और उसपर मॉल बनाने जा रहे हैं। मराठी हितों की रक्षा की दुहाई देने वाले इस कथित मराठा छत्रप ने कोहिनूर मिल खरीदते समय क्या जरा सा भी सोचा था कि जिस मिल की जगह पर वो मॉल बनाने की तैयारी कर रहे हैं,उस पर कितने मराठियों के सपने टूटे हैं। मिले बंद होने के बाद रोटी के टुकडों के लिए तरस चुके उन मराठियों का अगर जरा भी ख्याल रहा होता राज को ,तो वे कदापि नही कोहिनूर मिल का सौदा करते।कोहिनूर मिल बंद पड़ने के बाद १० हज़ार मराठी घरों के चूल्हे बुझ गए थे। पेट की आग न बुझा पाए तमाम लोग खुदकुशी को मजबूर हो गए थे।रोजी-रोटी की तलाश में यहाँ आए हजारों मराठी मुंबई छोड़कर अपने गाव चले गए थे। आज इस बात का जिक्र इसलिए जरुरी हो गया है,क्योकि जिस मराठी मानुस की बात पर राज ठाकरे आज यूपी -बिहार के लोगो को मुंबई से खदेड़ने की बात कर रहे हैं। वही भूमिपुत्र तो उस समय भी थे, जो कोहिनूर मिल बिकने से सड़कों पर आ गए थे।उस समय क्यों नही मराठियों का हित चिंतन किया गया। भूमिपुत्रों के सपनों को चकनाचूर करने वाली कोहिनूर मिल को खरीद कर नोट बनाने वाले राज किस मुह से अपने को मराठियों का हितैषी मानते हैं।आज मराठियों के सम्मान की लडाई लड़ रहे राज ठाकरे को अब आम मराठी भी जान गया है। ये भी हो सकता है आने वाले समय में राज को झंडा उठाने वाले लोग भी नही मिलें।
आइये जानते हैं श्री लोखंडे से उन पर क्या बीती ?
महाराष्ट्र में करीब 202 एसटी बसें , 350 टैक्सियां , 8 ऑटोरिक्शॉ , 115 बेस्ट बसें , 3 ट्रक और 4 प्राइवेट गाड़ियों को या तो जला दिया गया या फिर बुरी तरह से तोड़ दिया गया। इन्हीं क्षतिग्रस्त गाड़ियों में से एक मेरी गाड़ी है। राज ठाकरे की तरफ से दावा किया जाता है कि यह सब मराठी मानुस के लिए किया जा रहा है। चाहे कुछ भी क्यों न हो , यह बात तो तय है कि राज ठाकरे को आम महाराष्ट्रियन से तो कोई मतलब नहीं है। मुझे तो लगता है कि राज को खुद भी अंदाजा नहीं है कि उनकी लड़ाई किसके लिए है। राज ठाकरे की गिरफ्तारी की खबर के साथ ही मुझे अंदाजा हो गया था कि पूरा दिन जबरदस्त हंगामाखेज़ होने वाला है। लेकिन एक पत्रकार और एक महाराष्ट्रियन होने के नाते मुझे पूरा यकीन था कि मैं पूरी तरह से सुरक्षित हूं। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के ' ऐंटी नॉर्थ इंडियन ' आंदोलन का शिकार मैं बनूंगा। लेकिन मेरा यह विश्वास घर से ऑफिस जाते वक्त पलभर में ही टुकड़े-टुकड़े हो गया। मंगलवार को जैसे ही मैं अरुण कुमार वैद्य रोड से माहिम की तरफ मुड़ा , अचानक ही 4 लोग मेरी कार के सामने आ गए। मुझे लगा कि वे लोग शायद लिफ्ट मांगने के लिए रोक रहे हैं , क्योंकि रास्ते में कोई टैक्सी या गाड़ी नहीं दिखाई दे रही थी। मुझे लगा कि वे लोग किसी साधन के अभाव में मुझसे लिफ्ट लेने की गुजारिश करेंगे। लेकिन अगले ही पल मेरे इस आशावादिता की धज्जियां उड़ गईं। बिना कुछ जानने की कोशिश किए उनमें से दो लोगों ने मेरी कार के अगले शीशे पर बड़े-बड़े पत्थर दे मारे। इस दौरान तीसरा शख्स मेरी कार का पिछला शीशा तोड़ने में लगा था। मुझे आतंकित किया चौथे शख्स ने , मेरे कुछ भी कहने से पहले ही उसने मेरे ऊपर एक जलता हुआ टायर फेंक दिया। कार के अंदर ही भस्म हो जाने के डर से मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैं वहां से भाग खड़ा हुआ और तभी रुका जब मुझे सेंट माइकल चर्च के पास एक पुलिसवाला दिखाई दिया। फिर पुलिसवालों ने अपना पुलिसिया रवैया दिखाते हुए मेरी शिकायत दर्ज करने से पहले माहिम और बांद्रा पुलिस स्टेशन के बीच दौड़ाया। लेकिन मेरी दिक्कत यह नहीं है कि मेरी शिकायत दर्ज क्यों नहीं हुई। मेरी कार भी कुछ दिनों में रिपेअर होकर सड़क पर दौड़ने लगेगी। मेरी असली दिक्कत है मेरा विश्वास , मेरा भरोसा जो अब टुकड़े-टुकड़े हो चुका है ! उस दिन छिन्न-भिन्न हो चुके मेरे विश्वास का क्या होगा ? मुंबई मिरर को दिए एक इंटरव्यू में राज ठाकरे ने कहा था कि उनके लोग किसी भी किस्म आंदोलन से पहले याचना करते हैं , वे कोई कार्रवाई करने से पहले चेतावनी या ज्ञापन देते हैं। उस दिन मेरी कार तोड़ने से पहले क्या किसी ने मुझसे पूछा ? मैंने मराठी मानुस से कौन सा अन्नाय किया था ? मैं खुद मराठी मानुस हूं , मैं यहीं पैदा हुआ और मेरी परवरिश यहीं हुई। मेरे पैरंट्स , मेरे पुरखे सभी मराठी हैं। मैं मराठी बोलता हूं , मराठी पढ़ता हूं और मराठी लिखता हूं। मैंने मराठी मीडियम के स्कूल में ही पढ़ाई की है , जैसा कि राज के अंकल (बाल ठाकरे) ने दशकों पहले ' आदेश ' दिया था (यह अलग बात है कि उनके खुद के पोते मराठी मीडियम के स्कूल में नहीं पढ़ते)। और तो और , बैंको के चेक पर मैं हस्ताक्षर भी मराठी में ही करता हूं। मैंने किसी महाराष्ट्रियन की नौकरी नहीं हड़पी।
मेरी कार के बारे में भूल जाइए। अंबादास धर रॉव की याद है आपको ? फरवरी में नासिक में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अटैक में एचएएल कंपनी काम करने वाले अंबादास की जान चली गई थी। क्या अंबादास मराठी मानुस नहीं थे ? क्या उन्होंने किसी महाराष्ट्रियन की नौकरी हड़पी थी ? उनकी हत्या क्यों की गई थी ? राज ने अंबादास की फैमिली से हाथ जोड़कर माफी मांगी थी और बस ! जबकि उनके आदमी अंबादास के मर्डर के आरोप से साफ-साफ निकल गए। राज ठाकरे के लोग जब अपने नेता की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे तो मुझे और अंबादास , दोनों को ही अपना जीवन जीने का अधिकार मिला हुआ था। आखिर हमारी गलती क्या थी ? जेट एअरवेज़ के कर्मचारियों की नौकरी वापिस दिलाने का क्रेडिट राज ठाकरे खुद ले रहे थे। वहीं उनके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे यह बताने में लगे थे कि उन 1900 जेटकर्मियों में से केवल 40 मराठी थे। खैर , मुझे इस सबसे कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन 80 के दशक में राज के अंकल और उद्धव के पिता बाल ठाकरे ने टेक्सटाइल वर्कर्स को सपोर्ट क्यों नहीं किया ? ये सारे वर्कर तो मराठी थे ! मुंबई में ग्रेट मिल स्ट्राइक के बाद एक लाख से ज्यादा मिल मजदूर मर चुके हैं। उनके लिए क्या किया राज ने , या मनोहर जोशी के बेटे उन्मेश ने ? इन्होंने ही उन मजदूरों का कब्रिस्तान कोहिनूर मिल खरीदी थी। क्यों नहीं उन्होंने तब अपने ' आदर्श ' के मुताबिक उस वक्त मिल खरीदने से मना कर दिया था ? तो मिस्टर राज ठाकरे ! आपको तो अपनी रोजी-रोटी का अधिकार है जबकि हमें नहीं है। बहरहाल , बस यूं ही बताता चलूं कि जिस ऑफिसर ने मेरी शिकायत दर्ज की वह नॉर्थ इंडियन है और वह ठेठ मराठी बोलता है। ट्रैफिक सिग्नल पर एक बुजुर्ग मेरी कार के पास आए और टूटे हुए शीशों समेटने लगे। मैंने मना किया तो वह मुस्कुराकर हिंदी में बोले , ' ऊपरवाला सब ठीक कर देगा साहब ! कोई तकलीफ नहीं है। ' विश्वास करने के लिए उनका ईश्वर उनके साथ था। लेकिन मैं खुद अपने लोगों पर भरोसा नहीं कर सकता !

10 टिप्‍पणियां:

RAJESH MISHRA ने कहा…

very very improtant messages for all Indians.


Thanks,

All the best,

Your Rajesh

annu ने कहा…

arun ji....sthaniy ghatnao ko aap paini najar se avlokit karte hue apni kalam ke madhyam se tivr chot karte h......i like it..................aapki ak pathak anu....

Abhay ने कहा…

achcha prayas hai Arun bhai. All the best.
Aabka hi,
Abhay

Unknown ने कहा…

sthaniy editor ke intrview ke sath aap ka lekh behad jandar ban pada hai,desh ki akhandata banaye rakhane ke liye aise prayaso ki sakht jarurat hai.....
aage bhi isi tarah ka kary jari rakhenge ki umeed ke sath all the best.....
sunil yadav

shahid khan ने कहा…

tum tarakki karte raho yahi duaa hae meri m. h . khan 4m bhayander

Unknown ने कहा…

ARUN JI , AAP KE HIMMAT KI DAAD DENI PADEGI KI AAPNE HAKIKAT KA AAENA ANDHO KO DHIKHANE KI KOSHISH KI HAI. YEH BAAT MARATHI BUDHIJIVI AUR MARATHI MEDIA KO MARATHI JANTA KE SAMNE RAKHNA CHAHIYE. MANOJ SINGH PRAVKTTA RJD

Unknown ने कहा…

Marathi mudda thik hai, lekin marg galat hai. Marathi Logo ke liye Raj lad rahe hai, lekin Raj Thackre ko Gunda nahi kah sakte, Unki Apni Rajnatik ka ek Vishey hai. mera manana hai ki Bahar ke logo ne yeh nahi bhulna chahiye ki ve Maharashtra Rahte hai. har koi apne State se pyar karta hai aur sabko apne state se garva rahta hai. P.MATRE (MUMBAI)

RAJESH MISHRA ने कहा…

chahca ji thanks bahut hi achhah hai.


very very improtant messages in your blog.

Unknown ने कहा…

Mil kharid kar Raj Usi Mil ko Mall Banakar Mall mai Marathi logo ko Naukri denge. Vaise Mil mai 10 Hajar log kam kar rahe the, lekin Mall mai 50 Hajar log Kam karenge. Thik Hai Bhaisab, Aur Bat rahi Patrakar Lonkhande ki Veh toh Unka Publicity hai. Vaise Unko kaun Janta tha iske pahle. PRAKASH MATRE (Samajsevi)

Vishnoi Dhaka Op ने कहा…

thenx ,
arun ji
....aap ki himmt or patrikarita ke liye dhanyawad.......
viase mene aaj 1st time hi aapka blog dekha hai