Advt

रविवार, 22 जनवरी 2012

शिवसेना-राकांपा की नूराकुश्ती


महाराष्ट्र फतह को निकली शरद पवार की एनसीपी ने शिवसेना का एक सांसद झटक कर खुद को ठाणे जिले की सबसे ताकतवर पार्टी साबित कर दिया है। जिले की कल्याण डोम्बिवली सीट से शिवसेना के सांसद आनंद परांजपे ने पवार का दामन थाम कर ठाणे मे शिवसेना के किले को हिला दिया है।
शिवसेना के टिकट पर ठाणे सीट की कई बार नुमाइंदगी कर चुके प्रकाश परांजपे जब तक थे, पार्टी के निष्ठावान रहे। तत्कालीन दिग्गज आनंद दिघे के उनके करीबी ताल्लुक थे। दिवंगत होने के बाद परांजपे के बेटे आनंद को सेना ने दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ाया, जिसमे दोनों ही बार वो कामयाब रहे। पहली बार पिता की सीट ठाणे से एनसीपी के संजीव नाईक को, तो दूसरी बार कल्याण मे इसी पार्टी के वसंत डावखरे को परास्त किया। ये दोनों ही पराजय पवार को खलने जैसी थी। उन्होंने अपने सभी झंडा बरदारों को लगा दिया और भीतर ही भीतर सेना को खोखला कर दिया गया। वसंत डावखरे, गणेश नाईक, जीतेन्द्र आह्वाड और संजीव नाईक जैसे नेताओं की मेहनत रंग लाई। पालिका चुनाओं से ठीक पहले आनंद परांजपे को अपनी बगल मे बैठा कर पवार ने अपना पावर दिखा दिया। विरोधी पार्टी के मंच से आनंद ने शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे पर जम कर भड़ास निकाली। खुद को दिल से शिवसैनिक बताने वाले आनंद ने कहा कि अब बालासाहेब के जमाने वाली शिवसेना नहीं रही। सत्ता के लिए इस पार्टी मे जमीनी कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया जा रहा। शरद पवार की सोच विकासशील है, इसलिए उनके पास आया हूं। पवार ने भी आनंद का आपने मंच पर गर्मजोशी से स्वागत किया, और कहा कि रांकापा की नीतियों की वजह परांजपे आकर्षित हुए है। आनंद को शिवसेना से दूर करने मे रांकापा विधायक जीतेन्द्र आह्वाड के प्रयासों की चर्चा हो रही है। चुनावी माहौल मे जहां नेताओं की इस दल से उस दल मे आवा-जाही का दौर चल रहा है। इस दौरान पवार के हाथ सेना का मजबूत मोहरा लग गया। हाल फि लहाल के चुनाव मे लगातार जीत दर्ज कर रही रांकापा नवी मुम्बई, मीरा भायंदर, कलवा मुम्ब्रा और ठाणे शहर मे तो तगड़ी थी ही अब कल्याण डोम्बिवली की राह भी आसान हो जायेगी। मुम्बई के राष्ट्रवादी भवन से पवार का आशीर्वाद लेकर लौटे आनंद परांजपे सीधे ठाणे के एनसीपी दफ्तर गए। वहां भी उनका स्वागत हुआ। दूसरी तरफ आनंद के इस कदम से नाराज शिवसैनिक खूब गुसाए है। वो तो आनंद के घर पर पुलिस का तगड़ा पहरा है, वरना वहां हो हल्ला जरुर मचता। पुलिस की कड़ी निगरानी के बावजूद जगह- जगह आनंद के पुतले जलाए गए। देर रात तक ठाणे के शिवसैनिक मुम्बई मे अपने नेताओं के साथ बैठकें करते रहे। सांसद संजय राउत ने परांजपे के मामले मे पार्टी का रुख स्पष्ट किया। कहा कि पहले उनको लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ ा देना था, फि र विरोधियों से हाथ मिलाते। राउत ने इस मामले निर्णय शिवसेना प्रमुख पर छोड़ा, लेकिन यह संकेत भी दिया कि आनंद के खिलाफ कारवाई होगी।
आनंद परांजपे को राकांपा की ओर झुकाकर शरद पवार ने अपने समर्थकों को खुश कर दिया है। समर्थक फूले नहीं समा रहे। शिवसेना में मायूसी जैसा है। शिवसैनिक परांजपे पर आग बबूला हैं।
गुस्से का कारण भी वाजिब है। शिवसैनिकों ने बड़ी मुश्किल से आनंद के रुप में कल्याण से एक सांसद चुना था। बाकी तो मुंबई और पूरे ठाणे जिले से शिवसेना का एक भी सांसद नहीं जीत पाया। शिवसेना के इकलौते खासदार आनंद का पार्टी छोडऩा बाल ठाकरे को मानने वाले कार्यकर्ताओं को अखर गया। आनंद भी किसी बड़ी राजनीति का हिस्सा बने हैं। राष्ट्रवादी के नेता इसे पवार की चतुर नीति का परिणाम बता रहे है। आनंद परांजपे ने अपने पूर्व नेता उद्धव को निशाने पर लेते हुए पवार में निष्ठा दिखाई। इसी से शिवसैनिक तिलमिला उठे है। शिवसेना और राकांपा में इधर कुछ नूरा कुश्ती जैसा चल रहा है। दोनों ही पार्टी अपने नेताओं की अदला-बदली कर रही। पवार भी जब देखो ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंचे रहते है। कांग्रेस को जब भी आंख दिखानी हो, शरद पवार का बालासाहेब के प्रति प्यार जाग उठता है। हाल ही में ठाणे के राष्ट्रवादी विधायक सुभाष भोईर का सेना में जाना हो या प्रताप सरनाईक का मामला, इनसे ही जुड़ी है आनंद परांजपे की बात। बीते दिनों ठाणे जिले में राकांपा और शिवसेना के अच्छे-अच्छे कार्यकर्ताओं का आदान-प्रदान जैसा हुआ। कल्याण डोंबिवली के पुंडलीक म्हात्रे भी कभी एनसीपी में थे। अभी शिवसैनिक बने घूम रहे। नवी मुंबई के दादा गणेश नाईक भी कभी शिवसेना के पहली लाईन में थे। नवी मुंबई से लेकर मीरा-भायंदर तक फैले तत्कालीन बेलापुर विधान सभा क्षेत्र से नाईक विधायक फिर मंत्री रहे। शिवसेना से निकलकर सालभर अपने दम पर घूमते रहे नाईक उन दिनों आनंद दिघे के सामने हल्के पड़े। एक अंजान कार्यकर्ता को दिघे ने सेना से लड़ाया था। सीताराम भोईर, गणेश दादा को हराया। पांच साल विधायक रहे भोईर अब कहा है, किसी को नहीं पता । िबल्कुल साधारण कार्यकर्ता को न सिर्फ नाईक के सामने उतारे, बल्कि तत्कालीन सांसद प्रकाश परांजपे भी जब पहला चुनाव लड़े, वे ठाणे में पार्षद ही थे। दिघे के जाते ही ठाणे में शिवसेना बिखरने लगी। नाईक भी पवार के साथ हो लिए, पूरे परिवार को फिट कर दिया। कई चुनाव ऐसे हुए है, जहां शिवसेना और शरद पवार के लोगमिल बाटकर सत्ता हथियाए। जिससे आनंद परांजपे का राष्ट्रवादी प्रवेश एक ट्रांसफर के अलावा कुछ नहीं।

कोई टिप्पणी नहीं: