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सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

हारे माननीयों के अपने


मुंबई पालिका चुनावों के दौरान जहां भाजपा ने किसी भी नेता के परिजन को टिकट न देने की घोषणा की, वहीं कांग्रेस ने गिन-गिनकर अपने नेताओं की बीबियों, बेटों व अन्य रिश्तेदारों को उम्मीदवारी दी थी, जिसमें कुछ तो जीत गये लेकिन कइयों की किस्मत में नगरसेवक बनना शायद नहीं लिखा था। कांग्रेस की ही तरह शिवसेना ने भी वंशवाद की परंपरा का निर्वाह करते हुए कई विधायकों के पुत्रों को मैदान में उतारा, जो जीतने में सफल रहे ।
पालिका के पिछले बोर्ड में विरोधी पक्ष के नेताव विधायक राजहंस सिंह बड़ा दबाव बनाकर पार्टी से अपने बेटे नितेश को कुर्लासे टिकट दिलाया, लेकिन जिताने में कामयाब नहीं रहे । जबकि कांदिवली के विधायक रमेश सिंह ठाकुर अपने बेटे सागर ठाकुर को उत्तराधिकारी बनाने में कामयाब रहे । कांग्रेस के ही विधायक मधु चव्हाण अपने पुत्र समीर को भायखला इलाके सेमैदान में उतारे थे , लेकिन मतदाताओं ने उसे नकार दिया । पुत्रों की पराजय के गम से कांग्रेसी विधायक कालिदास कोलंबकर, सदा सरवणकर व एनी शेखर भी दुखी हैं। कालिदास के बेटे प्रथमेश, सदा सरवणकर के पुत्र समाधान व एनी शेखर के बेटे विनोद को पराजय का मुंह देखना पड़ा है । जबकि कांग्रेसी विधायक चंद्रकांत हंडोरे की बीबी संगीता चेंबूर इलाके सेनगरसेविका बनने में सफल रही ।
मनसे के बोरिवली से विधायक प्रवीण दरेकर अपने भाई प्रकाश को जहां जिताने में कामयाब रहे , वहीं ठाणे में विधायक प्रताप सरनाईक की बीबी परीषा एवं पुत्र विहंग ने जीत दर्ज की है । जबकि मुंबई के दिग्गज कांग्रेसी सांसद गुरुदास कामत के भांजे समीर देसाई गोरेगांव में हार गये। शिवसेना के विभाग प्रमुख एवं दहिसर इलाके से विधायक विनोद घोसालकर अपने बेटे अभिषेक को नगरसेवक बनाने में सफल रहे । अभिषेक ने कांग्रेस के वरिष्ठ नगरसेवक राजेंद्र प्रसाद चौबे को परास्त किया ।
टिकट वितरण में परिवारवाद पनपने की खबर उसी समय उठने लगी थी, जब आधे से अधिक सीटें महलाओं के लिए आरक्षित कर दी गयी। सभी पार्टियों के मठाधीशों ने अपने क्षेत्रों में दबदबा कायम रखने के लिए अपने परिजनों को टिकट दिलाने की कवायद शुरू की, तो भाजपा ने इस झगड़े से खुद को अलग करते हुए घोषणा कर दिया कि किसी भी नेता के परिवार वालों को टिकट नहीं दिया जाएगा। यहां तक कि मुंबई भाजपाध्यक्ष राज के. पुरोहित आखिरी दम तक अपनी बहू हेमा को टिकट दिलाने प्रयासरत रहे, लेकिन अंतत: उन्हें निराशा ही हाथ लगी। भाजपा में अपवाद स्वरूप सिर्फ एक टिकट गट नेता आशीष शेलार के भाई विनोद को मालाड से टिकट दिया था, जो जीतने में कामयाब रहे । विनोद के मामले में यह भी कहा जा रहा है कि वह आशीष के भाई भले थे लेकिन क्षेत्र की स्थानीय राजनीति में बड़ी सक्रियता से जुटे हुए थे। उनके टिकट मिलने का कारण आशीष का भाई होना नहीं, बल्कि पार्टी का कार्यकर्ता होना रहा। भाजपा जहां नेता परिजनों को टिकट देने से बची, वहीं सभी पार्टियों ने अपने माननीयों के अपनों को जमकर टिकट दिया, जिसमें कुछ हारे तो कुछ जीते ।    

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