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गुरुवार, 11 नवंबर 2010

अशोकराव को हटाना ही चाहती थी सोनिया...


महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से बेदखल किए गए अशोक चव्हाण के बारे मे जानकार सूत्रों ने बताया है - कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी उनको बाहर का रास्ता दिखाने का बहाना ही ढूढ़ रही थी ,अचानक आदर्श सोसायटी का जिन्न बाहर आ गया. अशोकराव की तमाम शिकायते दस जनपथ मे पहुची थी, जिसमे उन पर रियल एस्टेट के सौदों मे भारी पैमाने पर वसूली करने के आरोप थे. मुंबई मे चल रही पुनर्विकास परियोजनाओं मे तमाम बिल्डरों के साथ उनकी अच्छी छन रही थी. कई बिल्डरों के साथ तो भागीदारी की भी खबरे मिली हैं. सबसे अहम् बात तो यह है की अशोकराव द्वारा किए गए तमाम वसूली के मामलो मे सोनिया गाँधी का नाम भी लिया गया. उनके एजेंट कहा करते थे , ये पैसा मैडम के यहाँ पहुचाना है.मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा की जा रही इस वसूली से तंग एक बिल्डर ने दस जनपथ तक ये शिकायत पहुचा दी थी. वो बिल्डर सोनिया का करीबी बताया जाता है. उसको वहा तक पहुचाने मे अशोकराव के विरोधियो ने मदद भी की. ये बात इसलिए भरोसे के लायक है की इसे बताने वाला कोई और नही, बल्कि इसी पार्टी का एक सांसद है, जो पृथ्वीराज चव्हाण के शपथ ग्रहण समारोह मे भाग लेने मुंबई आया था. उसने कहा, मैडम इनको हटाने का इंतजाम कर ही रही थी,तभी आदर्श सोसायटी का घोटाला बाहर आ गया. अब सवाल यह उठता है की अशोक चव्हाण की जगह आए दूसरे चव्हाण भी तो इस तरह के आरोपों से घिरे हुए है. पृथ्वीराज चव्हाण पर लगे भ्रष्टाचार के एक आरोप ने कांग्रेस की इस संस्कृत को उजागर कर डाला है. पृथ्वीराज ने 2003 में गलत दस्तावेज सौप कर सरकार से सस्ते मे फ्लैट हासिल किया हुआ है.मुंबई के वड़ाला स्थित भक्ति पार्क में उनका जो फ्लैट है, उसको उन्होंने फर्जी दस्तावेज केआधार पर ही लिया है। यूएलसी एक्ट के तहत महाराष्ट्र सरकार ने ये फ्लैट पृथ्वीराज चव्हाण को एलाट किया था। चव्हाण ने यह फ्लैट लेने के लिए खुद को महाराष्ट्र का एमएलए बताया था, जबकि उस समय वो मध्‍यप्रदेश में थे। इसके अलावा फ्लैट पाने के लिए उन्होंने अपनी सालाना कमाई 76 हजार रुपए ही बताई थी, जबकि तब वे सांसद थे और सभी जानते है की एक सांसद की सालाना आय क्या होती है. अब सवाल यह उठता है, अशोकराव की जगह लगाए गए पृथ्वीराज के बारे मे कांग्रेस का दावा कहा तक सही ठहरता है.कांग्रेस की तरफ से बताया गया है, वो बहुत ही इमानदार है,क्या यही है नए सीएम की इमानदारी ?

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