पालिका चुनावों में परास्त राजस्थानी समाज के उम्मीदवारों की ताजा स्थिति का आकलन करने से जाहिर होता है कि वे बिना किसी रणनीति के मैदान में उतरे और आपसी सामंजस्य का अभाव इनकी राह का कांटा बन गया।
सामाजिक एकता के लिए मशहूर प्रवासी समाज ने इस चुनाव में अपनी फूट का जमकर प्रदर्शन किया। रास्थानी उम्मीदवारों के खिलाफ कई सीटों पर उनके अपने लोग भी प्रचार करते दिखे। हद तो तब हो गई जब एक ही सीट पर एक ही परिवार के दो भाई अलग-अलग पार्टियों से आमने-सामने हो गए। ऐसा दिखा अंधेरी पूर्व पवई के वार्ड संख्या ११५ में, जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस से चंदन शर्मा निर्वाचित हुए हंै। उनके सामने चचेरे भाई भवानी शंकर भाजपा के टिकट पर थे। चंदन को ६८९७ तो भवानी शंकर को ४५६३ वोट मिले। शर्मा बंधुओं की यह लड़ाई तो खुलकर थी। कई जगह मारवाड़ी उम्मीदवारों के सामने उनके ही समाज के लोग दूसरे दलों का झंडा लिये घूम रहे थे। देखने में यह भी आया कि भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों का टिकट पाकर ही कुछ लोग अपनी जीत मान बैठे। ठीक से प्रचार नहीं किया। अपने समाज के वोटरों तक भी नहीं पहुंचे। शायद उन्हें लगा बड़ी पार्टी का टिकट मिला है, वोट तो खुद ही मिल जाएंगे।
कांदिवली में पुष्पा विनोद धाकड़ को अगर पूरे राजस्थानी वोट मिल जाते तो जीत कोई रोक नहीं सकता था। इस वार्ड में ५ हजार तो सिर्फ उनके सजातीय जैनों के ही वोट हैं। पुष्पा को ७४३४ वोट मिले हंै। वहां से शिवसेना की उम्मीदवार प्रजाक्ता सावंत ने ९५२३ वोट पाकर धाकड़ को हराया। २०८९ वोटों से पराजित पुष्पा अपनी हार को जीत में बदल सकती थी। बशरर्ते उनके प्रबंधक सारे राजस्थानी परिवारों तक पहुंच जाते। मगर ऐसा हुआ नहीं और राजस्थानी समाज अपनी जीती हुई एक सीट खो दिया।
राजनीति के पंैतरों से अंजान इन प्रवासी उम्मीदवारों ने पार्टियों के स्थानीय कार्यकर्ताओं को प्रबंधक बना दिया था, जिन्होंने बराबर ध्यान नहीं दिया। या यूं कहें कि वे सिर्फ खानापूर्ति के लिए ही लगे थे। भाजपा ने तो टिकट कई दिए, लेकिन सिर्फ उन्हीं सीटों पर जहां जीत पाना मुश्किल था। पार्टी स्तर पर भी इन उम्मीदवारों के साथ सौतेला व्यवहार ही रहा। मालाड पश्चिम में ३१ वार्ड से उतरे भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र राठौड़ बाली के निवासी हैं, लेकिन उन्हें बाली का एक भी प्रवासी मुंबई में जानता तक नहीं। नरेंद्र को ३५२५ वोट मिले हैं। जबकि उनके सामने जीते कांग्रेस के तेजेंद्रतिवाना ने ७३५० वोट लेकर जीत दर्ज की। भाजपा ने ही शिवगंज के भरत सोलंकी को मझगांव २०६ वार्ड से टिकट दिया, जो सिर्फ २७०० वोट पाए,जबकि सामने कांग्रेस उम्मीदवार ने १०००० वोट झटक लिए। इस इलाके में इतने मारवाड़ी वोटर हैं कि अगर उन तक पहुंच लिया गया होता तो शायद सोलंकी की हार इतनी शर्मनाक न होती। हारने के लिए कांग्रेस ने शायद लक्ष्मण कोठारी को मानखुर्द में वार्ड १३४ से टिकट दे दिया। लक्ष्मण की भिड़ंत शिवसेना के धुंरधर राहुल शेवाले से हुई जो ७५८४ वोट पाए और दूसरे पर मनसे रही। कोठारी २७७५ वोट पाकर तीसरे पर चले गए। कोठारी के राजनैतिक बोध का एहसास इसी से होता है कि चुनाव की पूर्व संध्या पर उन्हें शिवसैनिकों ने खुलेआम रुपए बांटते न सिर्फ पकड़ा, बल्कि अपमानित कर पुलिस के हवाले भी कर दिया। नगरसेवक तो बनने से रहे, मुकदमा चलेगा सालों-साल ऊपर से।
समुद्रके किनारे कुलाबा इलाके में वार्ड २२५ से भाजपा ने जोजावर की मंजू वैष्णव को टिकट दिया। वहां से वो दूसरी बार चुनाव लड़ी थी। इस बार २६४० ही वोट मिले, जबकि कांग्रेस की सुषमा सालुंखे ने ५६४४ वोट लेकर मैदान जीत लिया। शिवसेना ने भी परायी सीट पर कमाठीपुरा वार्ड २०९ से भीनमाल की आशा जैन को उतारा, लेकिन ३८६३ वोट पाकर आशा हारने वालों में सुमार हो गई। चुनावी नतीजे जहां यह कह रहे हैं कि अगर राजस्थानी वोट एकमुस्त हो गए होते तो शायद एक दर्जन मारवाडी नगरसेवक होते, लेकिन समाज के बिखरेपन ने ऐसा होने नहीं दिया। दूसरे जो चुनाव लड़ रहे थे, वो भी अपने लोगों से दूरी बनाए रहे।
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