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सोमवार, 23 मार्च 2009

दिग्भ्रमित मतदाता

चुनाव की घोषणा से पहले देश में दो राजनीतिक मोर्चो के बीच लड़ाई दिख रही थी। एक पक्ष है कांग्रेस का तो दूसरा भगवा गठबंधन है।चुनावी बयार में कांग्रेस के अपने भी पराये होते चले गए। महाराष्ट्र में शरद पवार हों या बिहार के लालू अथवा पासवान,सबके सब अब कांग्रेस को आंख दिखने लगे हैं। मायावती के डर से कांग्रेस के करीब गए मुलायम सिंह यादव भी अब दोस्ती भूलकर चुनावी मैदान में ताल ठोकते नज़र आ रहे हैं। कौन दोस्त है और कौन दुश्मन, ये लाख टके का सवाल है। इस दफा आम चुनाव में मतदाता के सामने बेहद विचित्र स्थिति होगी। वह पूरी तरह भ्रमित रहेगा कि जिस दल को वोट देने जा रहा है, चुनाव परिणाम के बाद वह किस तरफ खड़ा होगा। बिहार में संप्रग के ताजा बिखराव के बाद मुलायम सिंह, लालू प्रसाद और रामविलास पासवान की हाथ मिलाने की घोषणा ने चुनावी महासमर में एक चौथे कोण की शुरुआत कर दी है। पार्टियों की इस करवट मार राजनीति ने इस चुनाव को खुला मैदान बना दिया है जिसमें बाजी कब, किधर पलट जाए इसका अनुमान लगाना कठिन होगा। जिस तरह से पहले राजग और अब संप्रग दोनों ही गठबंधन दरक रहे हैं, उसके बाद क्षेत्रीय दल किस करवट घूमेंगे, अभी से कुछ कहना मुश्किल है। उड़ीसा में बीजद के राजग से अलग होने के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हुए थे। वह इसका जश्न मनाती उससे पहले ही यूपी में समाजवादी पार्टी से तालमेल टूट गया। मगर कांग्रेस के लिए यूपी से ज्यादा बड़ा झटका बिहार है, जहां संप्रग के दो सबसे भरोसेमंद सहयोगी राजद और लोजपा ने उसे

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