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सोमवार, 23 जनवरी 2012

शिवसेना का काउंट-डाउन


महानगरपालिका मुंबई की हो या फिर ठाणे की,दोनों ही जगह लंबे अर्से से शिवसेना का वर्चस्व कायम है। जिसका प्रमुख कारण है मराठी मतों का एकमुस्त सेना की तरफ होना तथा सहयोगी भाजपा की विशेष भागीदारी। हिंदीभाषी व गुजराती बहुसंख्य मतदाता भाजपा के समर्थक है, जिसका फायदा हमेशा शिवसेना को मिलता रहा, लेकिन वक्त के साथ अब स्थितियां बदलती नजर आ रही है।
शिवसेना प्रमुख की सेहत बिगडऩे के साथ ही उन्होंने अपने पुत्र उद्धव को धनुष वाण पकड़ा दिया। यही से शुरु हो गया शिवसेना का काउंट-डाउन। पहले बड़े-बड़े दिग्गजों ने पार्टी से किनारा किया। अब निचले स्तर के कार्यकर्ता भी दूसरे दलों में पनाह ले रहे है। राज ठाकरे का सेना से अलग हो कर अपनी मनसे का गठन इस काउंट-डाउन की खास कड़ी है। छगन भुजबल हो या नारायण राणे, गणेश नाईक , संजय निरुपम हो या आनंद परांजपे सभी पार्टी नेतृत्व को कोसते हुए दूसरे दलों के हो लिये। मुंबई और ठाणे पर एकछत्र राज करने वाली शिवसेना अब लडख़ड़ाती हुई दिख रही है। कोई जमाना था , जब मुंबई की छ: लोकसभा सीटों पर सुनील दत्त के अलावा भाजपा-सेना के ही सांसद चुने जाते थे। मगर पिछले चुनाव में मुंबई से भगवा युति को करारी हार का सामना करना पड़ा। पूरे ठाणे जिले को अपना गढ मानने वाली शिवसेना,अब वहां से भी नेस्तनाबूद जैसी हो गयी है। पहले ठाणे में दो लोक सभा सीटें होती थी। ठाणे में प्रकाश परांजपे तो पालघर में चिंतामणि वनगा जैसे नेता कब्जा जमाए थे। आज ठाणे में चार संसदीय क्षेत्र है, जहां सिर्फ कल्याण से शिवसेना को एक सीट पर कामयाबी मिली थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व अपने युवा सांसद आनंद परांजपे को नहीं संभाल पायी और वो पवार के साथ हो लिए। परांजपे खुशी-खुशी पवार के साथ गए, ऐसा नहीं है। मीडिया के सामने सार्वजनिक तौर पर जिस तरह वो फफक कर रोए। उससे साफ जाहिर है कि आनंद पार्टी नेतृत्व से कितने खफा है। मराठी हितों की रक्षा का दंभ भरने वाली शिवसेना भूमि पुत्रों के मुद्दे पर लंबी पारी खेल चुकी है, लेकिन अब यह मुद्दा राज ठाक रे ने झटक लिया है।
राज भी उद्धव से ही नाराज होकर शिवसेना को जय महाराष्ट्र बोले थे। अब वे ठाकरे परिवार के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रहे है। आम शिवसैनिक भी जो बाला साहेब की परम्परा से जुडा है, वह खुद को इस पार्टी में असहज महसूस करने लगा है। चुनावी मौसम में शुरु हुआ आया राम-गया राम का यह खेल, इसी की परिणीत है।

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