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मंगलवार, 24 जनवरी 2012

निष्ठा का पलायन


भूमिपुत्र मराठियों के लिए संघर्ष और फिर कट्टर हिंदूवाद कि ध्वजवाहक बनी शिवसेना जब तक सत्ता से दूर रही, सबकुछ ठीक- ठाक चलता रहा, लेकिन जैसे ही शिवसैनिकों ने सरकारी सुविधाओं का मजा लिया, पलायन भी शुरू हो गया. महाराष्ट्र के दिग्गज ओबीसी नेता छगन भुजबल जो अब पवार का राष्ट्रवादी झंडा उठाये हुए हैं, वो कभी शिवसेना प्रमुख के सबसे ख़ास सिपहसालार हुआ करते थे. भुजबल ने जब शिवसेना छोडी थी, शिवसैनिकों ने उनकी बहुत दुर्गति कि थी. लम्बे समय तक भुजबल सेना के निशाने पर रहे. पार्टी मे मनोहर जोशी के बढ़ते कद से खफा होकर भुजबल ने बाल ठाकरे से दूरी बनाई थी. उस समय भुजबल के रूप में ठाकरे ने एक अच्छा कार्यकर्ता खोया था. ये वही दौर है जब शिवसेना प्रमुख पार्टी के मामलों मे आपने परिजनों को शामिल करने लगे. उस दौरान उनके भतीजे राज ठाकरे का पार्टी मे सिक्का चलता था.वो पार्टी की छात्र इकाई के मुखिया थे. पार्टी के झगड़ालू और दबंग किस्म के युवा राज के पीछे चला करते थे. वही फौज तो आज भी राज के साथ है. शिवसेना मे रहते राज ने तत्कालीन भाजपा-सेना सरकार मे खूब मजा लिया था. वो जो चाहते, वही होता. राज के अलावा सेना प्रमुख के बेटे उद्धव और पुत्रवधू स्मिता का पार्टी और सरकार मे खूब असर था.रिमोट बाल ठाकरे के हाथों मे और देखरेख की जिम्मेदारी परिजनों पर. यही बात कई नेताओं को नागवार गुज़री और भुजबल समेत तमाम अन्य नेता आँख दिखाने लगे. पार्टी के कमजोर होने के प्रमुख कारणों मे ठाणे से आनंद दिघे का अवसान भी है, वरना ठाणे मे तो शिवसेना लहलहाया करती थी. शिवसेना से एकाग होने की तमाम लोग सिर्फ इसलिए हिम्मत नही जुटा पाते थे कि उनको बड़ी दुर्गति से गुजरना पडेगा. पार्टी से अलग होने की बड़ी कीमत चुकानी पडी थी भुजबल को. घर से बाहर तक कई बार शिवसैनिकों के कोप का भाजन बनाना पडा था. वो तो गणेश नाईक और नारायाण राणे सीधे सरकार के साथ हो लिए, वरना इन्हें भी निशाना बनाया जाता. फिर भी राणे को जबरदस्त आक्रोश का सामना करना पडा था.
अपनी स्थापना के समय मराठी माणूस के बीच मजबूत पकड़ रखने वाली सेना जब दूसरे अन्य दलों की तरह घर परिवार की तरफ चली, लोगो की निष्ठा पलायन करने लगी. उन दिनों अपने संगठन के लिए शिवसेना पूरे देश मे जानी जाती थी.

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