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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

अपनों की वजह से कद छोटा हुआ गुरु-चेले का

 आस-पास की कई पालिकाओं और राज्य मे संपन्न स्थानीय निकाय चुनावों मे जहां अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए सत्तारूढ़ कांग्रेस और एनसीपी ने अपना पूरा जोर लगा दिया, वहीं विपक्षी शिवसेना- भाजपा ने भी कोई कसर नहीं छोड़ा. कौन कितने फायदे मे रहेगा और किसको घाटा होगा, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पायेगा. मगर भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं को इस चुनावी माहौल में जो कीमत चुकानी पडी, उसे वो कभी नहीं भूल पायेगे. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव गोपीनाथ मुंडे अपनी पार्टी की मुम्बई इकाई के प्रमुख राज के. पुरोहित के गुरु माने जाते हैं. चुनाव के इस दौर में गुरु चेले की जोड़ी को झटके पर झटके लगे, जिससे ना सिर्फ उनकी जग हसाई हुई, बल्कि पार्टी मे भी बड़ी फजीहत का सामना करना पडा. जैसे ही चुनाव का बिगुल बजा, मुंडे का सगे भाई पंडितराव ने शरद पवार की एनसीपी का झंडा उठा लिया. बात यही नहीं ख़त्म हुई, मुंडे के भतीजे धनंजय ने भी पवार को अपना नेता मान लिया. ये दोनों ही घटनाएँ गोपीनाथ मुंडे के लिए शर्मनाक से कम नहीं हो सकती. राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी मे अपनी पकड़ रखने वाले मुंडे पर उनके विरोधी यह आरोप लगा रहे हैं कि जब वो अपना घर नहीं सभाल सकते तो पार्टी क्या सभाल पायेगे. गोपीनाथ मुंडे हमेशा शरद पवार के खिलाफ मुखर रहा करते हैं, लेकिन पवार ने उनके घर मे सेंध लगा कर जो धक्का दिया है, भाजपा में मुंडे का कद छोटा करने के लिए काफी है. मुंडे जैसी ही हालत उनके चेले काहे जाने वाले मुम्बई भाजपा अध्यक्ष राज के. पुरोहित की भी हुई है. मुम्बई पालिका चुनाव में अपनी बहू के लिए टिकट का जुगाड़ कर पाने में नाकामयाब रहे पुरोहित को इस चुनावी प्रक्रिया के दौरान तमाम ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होना पडा, जो उनकी हैसियत को कमतर बताने के लिए पर्याप्त है. राज जिस सीट से बहू के लिए टिकट माग रहे थे, पार्टी ने वहां दूसरे को उतार दिया. मामला यहीं नहीं था गया, उसी सीट पर राज के पूर्व पीए जनक संघवी ने अपनी बीवी को उतार दिया. जो इस बात का प्रतीक है कि राज की पकड़ पार्टी पर ढीली पड़ती जा रही है. जनक की बीवी के पक्ष मे राज पुरोहित के समधी ने जमकर प्रचार किया, तो इलाके में तरह- तरह की चर्चाएँ शुरू हो गयी. कहा जा रहा है कि चीरा बाजार इलाके की इस सीट से राज की बहू को टिकट नहीं दे कर बीजेपी ने वहां से वीणा जैन को उम्मीदवारी दे दी. इससे नाराज राज ने जनक की बीवी को निर्दलीय उतार करके वीणा की राह मुश्किल करने का भरपूर प्रयास किया. वैसे राज की इन कारगुजारियों पर उनका विरोधी खेमा बराबर नजर रखे हुआ है. विनोद तावड़े और आशीष शेलार तो जैसे राज की एक-एक खामियों पर नजर रखे हुए हैं. ये दोनों ही नेता पार्टी प्रमुख नितिन गडकरी के करीबी माने जाते हैं. ऐसे में संभव है कि चुनावों के बाद राज को अपने वरिष्ठों का कोपभाजन बनना पड़े. महाराष्ट्र की राजनीति मे मुंडे और मुम्बई में पुरोहित की जुगलबंदी लम्बे समय से चली आ रही है. मुंडे के ही आशीर्वाद से पुरोहित ने नगरसेवक से लेकर राज्यमंत्री बनने तक का सफ़र तय किया. दो साल पहले की ही बात है, जब पुरोहित को मुम्बई अध्यक्ष बनाने के लिए मुंडे ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उनको मनाने के लिए तमाम वरिष्ठ नेताओं को मुम्बई आना पडा था. मुंडे पार्टी में पिछड़े वर्ग का चेहरा माने जाते हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी को मजबूती दिलाने में मुंडे का ख़ास योगदान माना जाता है. राज्य के गृह मंत्री रहते उन्होंने मुम्बई को अपराध मुक्त कराने में अहम् भूमिका निभाई थी. वो बड़े ही कुशल राजनेता के रूप में उभरे थे लेकिन अपनों ने उनका कद छोटा कर दिया.

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