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मंगलवार, 19 मार्च 2013

फिर शर्मसार हुई महाराष्ट्र विधानसभा


सदन में विधायकों द्वारा विरोधियों पर माईक से हमला करना और पेपर वेट फेकने जैसी घटनाएं अभी तक यूपी और बिहार में हुआ करती थी, लेकिन अब तो महाराष्ट्र विधान भवन में भी जूतम पैजार होने लगा है. हाल-फिलहाल की कुछ घटनाओं पर अगर गौर किया जाय, तो साफ़ होता है कि महाराष्ट्र के विधायकों ने भी उत्तर की नक़ल शुरू कर दी है. आज विधान सभा में एक पुलिस इन्सपेक्टर पर महाराष्ट्र के विधायकों ने जिस तरह से एकजुट होकर  हमला किया, उसको देख कर उत्तरी राज्यों की याद ताजा हो गयी. 
प्रातःकाल मुंबई के अंक में 
बात नब्बे के दशक की है, जब मायावती के मुख्यमंत्री रहते बात ही बात में सपा के विधायकों ने सदन के भीतर  बसपा विधायकों पर हमला बोल दिया था. देखते ही देखते सदन रणभूमि में तब्दील हो गया था. दोनों तरफ से जमकर माईक और पेपर वेट चले, जिसमे कई विधायकों समेत उन्हें संभालने के लिए तैनात मार्शल भी लहूलुहान हो गए थे. यूपी का विधान भवन इस तरह की कई वारदातों का गवाह बन चुका है. एक बार तो मायावती पर ही मुलायम के लोगों ने प्राण घातक हमला कर दिया था. वो तो बीजेपी के लोग बीच में आ गए थे, वरना बहिनजी का काम तमाम हो गया होता. १९९२ में हुए इस हमले में मायावती के कपडे तक फट गए थे. इसी तरह १९९७ में कल्याण सिंह के विश्वास मत के दौरान भी पक्ष-विपक्ष भीड़ गए थे और एक दुसरे पर जैम कर माईक और कुर्सियां फेंकी थी. इस दौरान विधान सभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी समेत कई  एमएलए घायल हुए थे और तमाम लोग फटे हुए कपड़ों में ही मीडिया से मुखातिब हुए थे. इस तरह के बवाल कई बार यूपी विधान सभा में हो चुके हैं. बिहार विधान सभा भी कई बार विधायकों की कुश्ती का अखाड़ा बन चुकी है. लालू प्रसाद यादव की राजद के  विधायकों ने वर्ष २०१० में नितीश कुमार की सरकार पर ११ करोड़ के घोटाले का आरोप लगा कर हंगामा काटना शुरू किया, तो बीजेपी और जनता दल (यूं) के विधायक उनसे भिड गए. इस हंगामे और मुक्केबाजी में बहुत से लोग चुटहिल हुए थे, तो सदन की सारी कुर्सियां टूट कर बिखर गयी थी. मध्य प्रदेश विधान सभा में  वर्ष २००६ में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों का बाहुबल चर्चा का विषय बना था. २००९ में आन्ध्र विधान भवन में तेदेपा विधायकों के बवाल को नियंत्रित करने के लिए मार्शलों को कड़ी मशक्कत करनी पडी थी. इस झगड़े में कई एमएलए और सुरक्षाकर्मी घायल हुए थे. 
पश्चिम बंगाल विधान सभा में भी २००६ के दौरान तृणमूल व सीपीएम के विधायकों में जमकर मारपीट हुई थी, जिसमें वाम दल के छह, तृणमूल के तीन सदस्यों समेत  दो सुरक्षाकर्मी और दो मीडियाकर्मी घायल हुए थे. उड़ीसा विधानसभा में तीन साल पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक  की बर्खास्तगी की मांग पर हंगामा करते हुए कांग्रेसियों ने सुरक्षाकर्मियों से मारपीट तथा  स्पीकर से भी अभद्रता की थी।
राजस्थान विधानसभा में आज ही सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वढेरा  के विरुद्ध शिकायतों के बारे में पूछे प्रश्न के दौरान  कांग्रेस और बीजेपी के सदस्यों में हाथापाई की नौबत आ गई। यह तो आज के दौर की सामान्य सी घटना है, लेकिन जिस तरह से महाराष्ट्र विधान भवन में नौजवान विधायकों ने एक पुलिस अधिकारी पर हमला किया, उससे मुम्बई समेत महाराष्ट्र का पुलिस महकमा आक्रोशित है. स्पीकर समेत सभी जिम्मेदार लोग पुलिस अधिकारी पर हुए हमले पर अफसोस जता रहे हैं और जांच की बात कर रहे हैं, लेकिन इस जांच से क्या सदन में हो रही इस धक्का मुक्की पर काबू पाया जा सकेगा. इसी विधान भवन में हिन्दी में शपथ न लेने पर सपा विधायक अबू आसिम आजमी के साथ मनसे के विधायकों ने मार पीट की थी, जिन्हें कुछ समय के लिए निलंबित किया गया था. लेकिन फिर से वही शुरू हुआ, जो उत्तर में हुआ करता है. इस विषय में सियासी जानकारों का मत है कि जब तक राजनीति में दागियों और अपराधियों की सक्रियता पर अंकुश नहीं लगता, तब तक यही सब होता रहेगा. 



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