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मंगलवार, 30 सितंबर 2014

सेना का गढ़ ध्वस्त करने भाजपा ने बनायी रणनीत

 एक कहावत है कोई दोस्त जब दुश्मनी पर आमादा हो जाता है, तो किसी भी हद तक जाता है और फिर रिश्तों की परवाह किये बिना दुश्मनी को अंजाम तक पहुंचाता है। कुछ ऐसा ही हुआ सेना-भाजपा गठबंधन टूटने के बाद । आज हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि भाजपा ने शिवसेना का गढ़ कहे जाने वाले ठाणे जिले पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए उसके  किले को ध्वस्त करने पर पूरा जोर लगा दिया है। एक जमाना था, जब ठाणे शहर समेत पूरे जिले पर शिवसेना का परचम फहराया करता था, लेकिन आनंद दिघे के बाद पार्टी को इस जिले में कोई मजबूत झंडाबरदार नहीं मिला और धीरे-धीरे यहां सेना विघटन का शिकार होती गयी। जिले के तमाम क्षत्रप जो विभिन्न पार्टियों के सरदार बने हैं, कभी शिवसेना में बहुत असरदार हुआ करते थे। जिले के सबसे कद्दावर नेता कहे जाने वाले गणेश नाईक कभी शिवसैनिक ही थे। शिवसेना छोड़ कर जाने वालों की बात छोड़ भी दें, तो आज पार्टी को सबसे बड़ी चुनौती अपने ही हालिया दोस्त रहे भाजपा से मिल रही है। भाजपा ने बड़े सुनियोजित तरीके सेशिवसेना के एक-एक बागियों पर नजर रखी और उन्हें उम्मीदवारी भी दे दी। खासकर जहां शिवसेना के विधायक हैं, वहां भाजपा ने खास जोर लगाया हुआ है। माजीवड़ा ओवला विधान सभा सीट पर शिवसेना के प्रताप सरनाईक विधायक हैं। इस सीट पर कांग्रेस की ओर से भायंदर की नगरसेविका प्रभात पाटिल प्रत्याशी हैं। मनसे ने ठाणे स्थायी समिति के सभापति सुधाकर चव्हाण को उतारा है। राकांपा ने भी मराठी प्रत्याशी हनुमंत जगदाले पर दांव खेला है। यहां भाजपा की ओर से मीरा-भायंदर के पूर्व आयुक्त शिवमूर्ति नाईक और वरिष्ठ नगरसेवक रोहिदास पाटिल टिकट के प्रबल दावेदार थे। मगर आखिरी समय में भाजपा ने उत्तर भारतीय दांव खेलते हुए ठाणे मनपा के निर्दलीय नगरसेवक संजय पांडेय को उम्मीदवारी देकर माहौल को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है। इस सीट पर बाकी के सभी दलों ने मराठी प्रत्याशी उतारे हैं। ऐसे में भाजपा ने क्षेत्र के बहुसंख्यक हिंदी भाषियों पर डोरे डालने की नीयत से संजय को उतारा है। भाजपा ठाणे में सेना को एक कदम भी आगे नहीं जाने देना चाहती, ऐसा उसकी रणनीति देखकर लग रहा है। शिवसेना के दिग्गज नेता रहे अनन्त तरे का जैसे ही टिकट कटा, भाजपा ने उन्हें उम्मीदवारी थमा दी और जिले के प्रभावी सेना नेता एकनाथ शिंदे के सामने उतार कर शिवसेना को मुश्किल में डाल दिया। इसी तरह एरोली में टिकट की चाह लगाये बैठे युवा शिवसैनिक वैभव नाईक की जगह जैसे ही विजय चौगुले की उम्मीदवारी घोषित हुई, नाईक भाजपा खेमे में आ गये और पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। वैभव अब अपने ही चचेरे भाई व राकांपा विधायक संदीप नाईक के सामने मैदान में हैं। इसी तरह ठाणे शहर सीट पर भाजपा ने अपने पूर्व स्नातक विधायक संजय केलकर को उतार कर अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास किया है। कल्याण डोंबिवली में मनसे का टिकट न मिलने से नाराज मोरेश्वर भोईर पर दांव लगाकर भाजपा ने वहां के मराठी मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया है। ठाणे जिले में भाजपा की एक खास रणनीति देखने को मिल रही है, वह ये कि वो किसी भी तरह शिवसेना को रोकने के प्रयास में है। इसके लिए आखिरी समय तक वह बागियों पर नजर रखे रही और भाजपा का टिकट दे दिया। अब देखना यह है कि अपनी इस रणनीति में भाजपा कितना कामयाब होती है, लेकिन उसकी पूरी कोशिश है कि शिवसेना का गढ़ कहे जाने वाले ठाणे में कैसेभी हो, भगवा न फहराने पाये।  

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