Advt

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

सियासी घरानों पर लगी सभी दलों की निगाहें

महानगर से सटे ठाणे व नवसृजित पालघर जिले में सक्रिय सियासी घरानों का वर्चस्व तोडऩे के लिए सभी राजनैतिक घरानों ने जैसे कमर कस ली हो। नवी मुंबई का सक्रिय नाईक परिवार हो या वसई-विरार का ठाकुर घराना चाहे मीरा-भाईंदर का मेंडोसा परिवार, सभी राजनैतिक दल इन परिवारों की जमीन खिसकाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिये हैं। लोक सभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना कर चुके नाईक परिवार को संजीव नाईक की हार के रूप में तत्कालीन शिवसेना प्रत्याशी राजन विचारे से जो कड़ी टक्कर मिली थी, शायद गणेश नाईक ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी। ऐसा ही हाल विरार के हितेंद्र ठाकुर का भी रहा। उनकी पार्टी बहुजन विकास आघाड़ी के संसदीय प्रत्याशी बलिराम जाधव को उस चिंतामण वनगा ने धराशायी कर दिया, जो ठाकुर के साम्राज्य के सामने कहीं भी नहीं टिकते थे। सम्भवत: लोकसभा चुनाव में इन दोनों घरानों को मिली हार के पीछे मोदी लहर प्रमुख कारण रही हो, मगर आसन्न विधान सभा चुनावों में भी सभी राजनैतिक दल इनकी जड़ हिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बात की जाय अगर नवी मुंबई की, तो वहां राजनीति की मजबूत गोटियां बैठाई गई हैं। बेलापुर सीट पर पालक मंत्री गणेश नाईक खुद राकांपा के उम्मीदवार हैं, जिन्हें भाजपा की मंदा म्हात्रे, शिवसेना के विजय नाहटा, कांग्रेस के नामदेव भगत, मनसे के गजानन काले आदि का सामना करना पड़ेगा। उनके पुत्र और वर्तमान विधायक संदीप नाईक ऐरोली सीट से पुन: राकांपा के टिकट पर मैदान में हंै, जिन्हें शिवसेना के विजय चौगुले, कांग्रेस के रमाकांत म्हात्रे और भाजपा के वैभवनाईक से टकराना होगा। इस सीट पर खास बात ये है कि भाजपा प्रत्याशी वैभव नाईक संदीप के चचेरे भाई हैं, जो अभी तक शिवसेना में रहे। टिकट विजय चौगुले को मिल गया, तो भाजपा का झंडा उठा लिया और पार्टी ने लगे हाथ उम्मीदवारी भी दे दी, जिससे यहां मुकाबला काफी रोचक हो गया है। नये जिले पालघर में कहा जाता है कि ठाकुर बंधुओं का वर्चस्व कायम है, लेकिन ठाकुर ब्रदर्स लोकसभा चुनाव की पराजय से उबर भी नहीं पाये थे कि येविधानसभा का चुनाव आ गया। गत विधानसभा चुनाव में ठाकुर की हैसियत को पहली चुनौती दिया था विवेक पंडित ने, जो बहुजन विकास आघाड़ी के प्रत्याशी को हराकर न सिर्फ विधानसभा में पहुंचे थे, बल्कि ठाकुर के गढ़ को हिलाने की शुरुआत भी यहीं से की थी। उसके बाद तो पालघर-बोईसर और दहाणु आदि क्षेत्रों में हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में ठाकुर की पार्टी को लगातार शिकस्त मिली और लोकसभा चुनाव की पराजय ने हितेंद्र ठाकुर के साम्राज्य को डगमगा दिया। इस चुनाव में वसई सीट पर जहां हितेंद्र ठाकुर खुद विवेक पंडित के सामने होंगे, वहीं उनके विधायक पुत्र क्षितिज के सामने भाजपा के राजन नाईक समेत सभी दलों के उम्मीदवार ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं। चुनाव परिणाम जो भी हों, लेकिन ठाकुर का साम्राज्य इस चुनाव में दांव पर लगा नजर आ रहा है। अब बात मीरा-भाईंदर की, जहां राकांपा विधायक गिल्बर्ट मेंडोसा का सिक्काचलता है। सरपंच से लेकर नगराध्यक्ष और विधायक तक का सफर तय कर चुके मेंडोसा की बेटी महापौर है। दूसरी बेटी और बेटा नगरसेवक है। छोटा भाई और चार बहनें भी नगरसेविका हैं। इस चुनाव में मेंडोसा पुन: राकांपा के टिकट पर मैदान में हैं, जिनका सामना भाजपा के नरेंद्र मेहता, कांग्रेस के याकूब कुरैशी और शिवसेना के प्रभाकर म्हात्रे से होना है। राजस्थानी बाहुल्य इस सीट पर गत चुनाव में मेंडोसा और मेहता के बीच कांटे की टक्कर रहीऔर मामूली अंतर से मेहता को पराजय का सामना करना पड़ा था। इस बार के हालात काफी जुदा हैं। जहां भाजपा शिवसेना से अलग होकर लड़ रही है, वहीं कांग्रेस और राकांपा ने भी अलग-अलग राहें पकड़ रखी हैं। परिणाम कुछ भी हो लेकिन इतना तो तय है कि हो रहा विधानसभा चुनाव न सिर्फ मेंडोसा, बल्कि गणेश नाईक व हितेंद्र ठाकुर के राजनीतिक भविष्य को निर्धारित करेगा।

कोई टिप्पणी नहीं: