मालाड से लेकर विले पार्ले तक फैले उत्तर-पश्चिम संसदीय क्षेत्र की ६ विधानसभाओं में चार पर जहां कांग्रेस काबिज है,वहीं दो सीटों पर शिवसेना के विधायक हैं। इस क्षेत्र में खाता खोलने के लिए भाजपा ने पूरा जोर तो लगाया है, लेकिन ऐसे चेहरे उतारे गये हैं, जिनमें से किसी की भी नैया पार होती नहीं दिख रही है। शुरुआत दिंडोशी से करते हैं। यह इलाका मालाड पूर्व से शुरू होकर गोरेगांव और जोगेश्वरी पूर्व तक विस्तारित है। पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस के राजहंस सिंह विधायक चुने गये थे और शिवसेना के टिकट पर उतरे पूर्व महापौर सुनील प्रभु दूसरे पर थे। ये दोनों ही उम्मीदवार इस बार भी मैदान में हैं। इस बार मनसे ने शालिनी ठाकरे और भाजपा ने ज्वेलर मोहित कंबोज को टिकट दिया है। कंबोज मुंबई भाजपा के उत्तर भारतीय चेहरा माने जाते हैं। मोहित के साथ तकलीफ की बात यह है कि उनके साथ स्थानीय भाजपाई जुड़ नहीं पा रहे, जिस वजह से पूरा चुनाव राजहंस सिंह और सुनील प्रभु के बीच सिमट गया है। राजहंस और प्रभु दोनों ही लंबे समय से पालिका में नगरसेवक रहे और इलाके पर उनकी मजबूत पकड़ है। इस वजह से इन दोनों के बीच कांटे की टक्कर है। यहां कोई चमत्कार ही कंबोज को तीसरे से ऊपर ला सकता है। गोरेगांव पश्चिम सीट पर शिवसेना के दिग्गज नेता सुभाष देसाई विधायक हैं। गत चुनाव में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन के शरद राव से उनका सामना हुआ था। जिसमें भारी मतों के अंतर से देसाई को जीत मिली थी। इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने युवा नेता समीर देसाई को इस सीट पर उतारा है, तो भाजपा ने पूर्व उप महापौर विद्या ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है। तीनों ही उम्मीदवारों की तुलना की जाय तो सुभाष देेसाई का कद एवं उनका जनाधार कांग्रेस और भाजपा पर भारी पड़ता दिख रहा है। जोगेश्वरी और अंधेरी पूर्व के कुछ हिस्से को मिलाकर बनी है जोगेश्वरी पूर्व विधानसभा सीट। यहां शिवसेना के रवींद्र वायकर विधायक हैं। उन्होंने कांग्रेस के कामगार नेता भाई जगताप को बड़े मतों के अंतर से पराजित किया था। इस चुनाव में वायकर के सामने भाजपा ने अपनी नगरसेविका उज्ज्वला मोडक को टिकट दिया है। कभी भाजपाई रहे पूर्व उप महापौर राजेश शर्मा इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। यहां मनसे ने भी अपने नगरसेवक आंब्रे को टिकट दिया है। अगर आंब्रे ने अच्छा प्रदर्शन किया, तो वे वायकर के लिए न सिर्फ मुसीबत खड़ी कर सकते हैं, बल्कि भाजपा या कांग्रेस की जीत का मार्ग भी प्रशस्त हो जाएगा। यहां अभी तक भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर आने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं। अंधेरी पूर्व सीट पर कांग्रेस के सुरेश शेट्टी लगातार तीसरी बार विधायक हैं। लंबे समय से मंत्री भी हैं। समझौते में यह सीट भाजपा ने अपने मित्र पक्ष आरपीआई को दे रखी है। पहले आरपीआई के टिकट पर मुठभेड़ विशेषज्ञ पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा उतरना चाह रहे थे, लेकिन कानूनी पचड़े में फंस जाने के कारण उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया है। अब यहां लड़ाई सुरेश शेट्टी और शिवसेना प्रत्याशी रमेश लटके के बीच होनी है। यह सीट उत्तर भारतीय बाहुल्य मानी जाती है। अंधेरी पश्चिम सीट भी कांग्रेस के ही विधायक अशोक जाधव के कब्जे में है। यहां शिवसेना ने यूनियन नेता जयवंत परब को टिकट दिया है। भाजपा के दिवंगत ने गोपीनाथ मुंडे के सहायक रहे अमित साटम भाजपा के टिकट पर उतरे हैं। अमित पार्टी के युवा नगरसेवक हैं। जबकि जयवंत जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ रखते हैं। अब देखना है ये दोनों ही उम्मीदवार क्या अशोक जाधव को शिकस्त दे पाते हैं ? इस बात को वक्त पर छोड़ कर हम चर्चा करते हैं वर्सोवा विधानसभा की । जो जोगेश्वरी व अंधेरी पश्चिम इलाके में फैली हुई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुनील दत्त के करीबी रहे बलदेव खोसा इस सीट पर दो बार से विधायक हैं। खोसा की किस्मत ही कहा जाएगा कि यहां से शिवसेना की घोषित प्रत्याशी राजुल पटेल का नामांकन खारिज हो गया। भाजपा ने भी इस इलाके में कोई खास चेहरा नहीं उतारा है। डॉ. भारती लवेकर यहां भाजपा के टिकट पर उतरी हैं, जो काफी अंजान सी उम्मीदवार हैं। पूर्व नगरसेवक व मुंबई राकांपा के अध्यक्ष रह चुके प्रवासी नेता नरेंद्र वर्मा यहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं। यहां वर्मा और खोसा के बीच सीधी टक्कर संभावित है। मनसे ने भी इस सीट पर बिल्डर लस्करिया को टिकट दिया है, जिनका सियासी वजूद तो नहीं है, मगर मनसे के परंपरागत मराठी वोट लस्करिया के खाते में जा सकते हैं। इस संसदीय सीट के सर्वेक्षण में एक बात सामने आई है कि यहां अभी तक भाजपा का एक विधायक नहीं है और कोई जीतता हुआ भी नहीं लग रहा। वैसे भाजपा ने इस इलाके में खाता खोलने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। देखते हैं कामयाबी कहां तक मिलती है।
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