चुनावी परिक्रमा में आज का फोकस नव सृजित जिले पालघर पर। जहां वसई-विरार के इलाके को छोड़ दें, तो पूरा क्षेत्र शिवसेना या भाजपा के बाहुल्य वाला है। नगरीय क्षेत्रों को छोड़ दें, तो पूरा इलाका आदिवासियों का है। इसी लिए आरएसएस की इकाइयां इस क्षेत्र में बहुतायत कार्यरत हैं। यही कारण है कुछ चुनावों को छोड़ दें, तो यहां भाजपा के ही सांसद चुने जाते रहे हैं। कई स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों पर शिवसेना का कब्जा है। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में शिवसेना द्वारा बाहर से आये उम्मीदवारों को टिकट दे देने से स्थानीय शिवसैनिक न सिर्फ नाराज हैं, बल्कि इसका दुष्परिणाम भी सामने आ सकता है। चर्चा करते हैं जिले की विधानसभा सीटों की, जहां से शिवसेना को काफी उम्मीदें थी, लेकिन नेतृत्व ने टिकट वितरण में उम्मीदवारों का सही चयन नहीं किया, जिस वजह से जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में खासी नाराजगी है। जिला मुख्यालय की पालघर सीट पर शिवसेना ने तीन बार विधायक रह चुके कृष्णा घोड़ा को टिकट दिया है। जिनसे स्थानीय कार्यकर्ता जुड़ नहीं पा रहे हैं। इसका कारण है कि घोड़ा अभी तक राकांपा में थे। शिवसेना में आये और लगे हाथ टिकट भी ले लिया, जिससे उनके साथ प्रचार में शिवसैनिक न के बराबर दिखाई दे रहे हैं। यहां कांग्रेस के टिकट पर वर्तमान विधायक व पूर्व मंत्री राजेंद्र गावित, भाजपा के डॉ. गौड़ और हितेंद्र ठाकुर की पार्टी से मनिषा निमकर को उम्मीदवारी मिली है। आखिरी समय तक अगर शिवसेना हाई कमान द्वारा स्थानीय कार्यकर्ताओं को समझाया नहीं गया, तो पार्टी को न सिर्फ नुकसान होगा, बल्कि शिवसेना प्रत्याशी कृष्णा घोड़ा तीसरे पर भी जा सकते हैं। ऐसे में वहां कांग्रेस के गावित और आघाड़ी की मनिषा के बीच सीधा मुकाबला संभावित है। जिले की दूसरी महत्वपूर्ण सीट है बोईसर, जहां कमलाकर दलवी शिवसेना के टिकट पर मैदान में हैं। उनके सामने बहुजन विकास आघाड़ी के वर्तमान विधायक विलास तरे, भाजपा के जगदीश घोड़ी, शिवसेना के बागी सुनील धानवे और कांग्रेस के टिकट पर मड़वी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यहां भी जिस कमलाकर दलवी को सेना ने उतारा है, वो चुनाव से पूर्व राकांपा के कद्दावर नेता रहे और पिछले हर चुनाव में शिवसेना का जमकर विरोध किये हैं। इस वजह से स्थानीय शिवसैनिक उनके साथ नहीं हो पा रहे हैं। यही हालात दहाणु सीट के भी हैं, जहां शिवसेना ने राकांपा से आये शंकर नम पर दांव लगाया है। इसके पहले के सभी चुनावों में पूर्व सेना जिला प्रमुख उदय बंधु पाटिल के निर्देश पर शंकर नम हमेशा शिवसैनिकों को ही नीचा दिखाते रहे। अब अचानक उनको टिकट मिल गया है, तो पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताचुनाव में सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। विक्रमगढ़ सीट जहां पूर्व में वर्तमान सांसद चिंतामण वनगा विधायक रहे, वहां भाजपा ने विष्णु सावरा पर भरोसा जताते हुए उम्मीदवारी दी है, तो शिवसेना ने प्रकाश निकम पर दांव लगाया है। इस सीट पर राकांपा ने सुनील भूसरा को टिकट दिया है। भाजपा की मजबूत जनाधार वाली इस सीट पर शिवसेना और राकांपा उम्मीदवारों को कड़ी मशक्कत करके अपनी जमानत बचानी होगी। शहरी क्षेत्रों में नालासोपारा और वसई की सीटें आती हैं, जहां वसई में शिवसेना-भाजपा समर्थित विवेक पंडित के सामने स्थानीय क्षत्रप हितेंद्र ठाकुर मैदान में हैं, तो नालासोपार वर्तमान विधायक क्षितिज ठाकुर को भाजपा के राजननाईक से कड़ी चुनौती मिल रही है। कुल मिलाकर जिले के चुनावी परिदृष्य पर नजर डालें तो निश्चित ही यहां शिवसेना ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन कर सकती थी, मगर बाहर से आये 'मेहमानÓ उम्मीदवारों को उतार कर पार्टी ने पुराने शिवसैनिकों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दूसरी तरफइलाके मेंचर्चा है डॉ. सुहास शंखे के इशारे पर इतनी भारी संख्या में दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को शिवसेना का टिकट दिया गया है। इसके लिए उद्धव ठाकरे के पीए मिलिंद नार्वेकर के साथ मजबूत सेटिंग की गई है। शिवसेना के तालुका प्रमुख सुधीर तामोरे कहते हैं कि पार्टी ने जिसे भी टिकट दिया है, उसके लिए काम करना सभी शिवसैनिकों का धर्म है। इस बारे में पूर्व शिवसेना जिला प्रमुख प्रभाकर राऊत कहते हैं कि दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ताओंको टिकट देने का फैसला पार्टी नेतृत्व द्वारा लिया गया है। इस बात को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी जरूर है, लेकिन जल्दी ही सबकुछ ठीक कर लिया जाएगा और सारे कार्यकर्ता शिवसेना उम्मीदवारों की जीत के लिए सक्रिय हो जाएंगे।
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