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सोमवार, 6 अक्टूबर 2014

दक्षिण मुंबई में भाजपा के निशाने पर कांग्रेस, सेंध लगना तय

 संसदीय क्षेत्रवार चल रही चुनावी परिक्रमा में आज बात दक्षिण मुंबई की, जहां की तीन सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं। एक जगह बीजेपी का विधायक है, तो एनसीपी और मनसे के एक-एक विधायक हैं। किसी जमाने में भाजपा का मजबूत गढ़ रही इस संसदीय सीट पर कामगार नेता रहे जार्ज फर्नांडीज, कैलाश नरूला, सदाशिव पाटील, रतनसिंह राजदा, मुरली देवड़ा, जयवंतीबेन मेहता, मिलिंद देवड़ा आदि ने प्रतिनिधित्व किया है। वर्तमान में शिवसेना के अरविंद सावंत इस सीट पर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। जिन्होंने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा से यह सीट छीनी है। कोलाबा से लेकर माहिम तक फैले इस संसदीय भूभाग पर कब्जा करने के लिए इस बार भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस इस कोशिश में है कि उसके विधायकों की संख्या न भी बढ़ सके तो जितने हैं कम से कम उतने तो बने रहें। एनसीपी भी अपनी वर्ली सीट बचाने को प्रयासरत है, तो मनसे ने शिवडी सीट फिर से हालिस करनेे के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है। आइये शुरुआत करते हैं मलबार हिल विधानसभा सीट से, जहां १९९० में कांग्रेस के बीए देसाई जीते थे। उसके बाद से लगातार यह सीट भाजपा के खाते में जा रही है। यहां से प्रवासी भाजपा विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा चार बार विधायक रह चुके हैं। इस बार वे पांचवीं दफा मैदान में हैं। गत चुनाव में यहां लोढ़ा को जहां ५८ हजार से अधिक वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस के राजकुमार बाफना को महज ३३ हजार के करीब मतों से संतोष करना पड़ा था। बाफना दूसरे पर रहे और मनसे के अर्चित जयेकर ने २५ हजार वोट हासिल कर तीसरी जगह बनाई थी। इस बार लोढ़ा पुन: जोर शोर से अपना वर्चस्व बरकारार रखने को मैदान में हैं। जिनके सामने शिवसेना के अरुण दुधवडकर बड़ी चुनौती के रूप में उभरे हैं। हालांकि कांग्रेस ने यहां सुशीबेन शाह के रूप कमजोर चेहरा उतारा है और राकांपा के नरेंद्र राणे भी चुनावी मुकाबले में नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में तय है कि यहां टक्कर भाजपा और सेना में ही होगी। दूसरी महत्वपूर्ण सीट है कुलाबा की, जो देवड़ा परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है। मुरली देवड़ा की करीबी एनी शेखर ने गत चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे राज के. पुरोहित को ८ हजार के करीब मतांतर से पराजित किया था। पिछले चुनाव में शेखर को ३९ हजार तथा पुरोहित को ३१ हजार वोट ही मिल पाये थे। मनसे के अरविंद गावड़े यहां २२ हजार वोट लेकर तीसरे पर थे। इस बार के चुनाव में जहां भाजपा के पक्ष में हवा है, वहीं शिवसेना का अलग लडऩा भगवा मतों का विभाजन करता है, जिससे यहां कांग्रेस फायदे में दिख रही है। कोलाबा सीट पर शेखर और पुरोहित के अलावा शिवसेना के पांडुरंग सकपाल, मनसे के अरविंद गावड़े और राकांपा के बशीर पटेल भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार मतदान के दो दिन पूर्व ही इस सीट का समीकरण साफ हो पाएगा। वैसे यहां कांग्रेस से भाजपा और शिवसेना दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार बराबरी पर लड़ रहे हैं। मुंबा देवी सीट पर लगातार तीन बार विधायक रहे राज के. पुरोहित परिसीमन के बाद पिछले चुनाव में कोलाबा चले गये थे, तो मित्र पक्ष शिवसेना ने गत चुनाव में अनिल पडवल को उतारा था। जो २८ हजार वोटों तक ही सिमट गये थे। यहां ४५ हजार वोट पाकर कांग्रेस के अमीन पटेल विजयी घोषित किये गये थे। समाजवादी पार्टी के बशीर पटेल को गत चुनाव में महज १९ हजार वोट ही मिल पाये थे। इस बार के चुनाव में कांग्रेसी विधायक अमीन पटेल के सामने भाजपा ने अतुल शाह को उतारा तो है, लेकिन अतुल का चुनाव प्रचार अभी तक रंग नहीं पकड़ पाया है। वैसे शिवसेना की उम्मीदवार योगिंद्रा सालेकर के मैदान में होने से अतुल की राह और भी मुश्किल हो गयी है। इसी तरह भायखला सीट पर कांग्रेस के मधु चव्हाण विधायक हैं, तो उनके सामने भाजपा ने भी मधु चव्हाण को ही उतारा है। यहां शिवसेना का उम्मीदवार तो नहीं है, मगर अरुण गवली की बेटी गीता को सेना द्वारा समर्थन दिये जाने से भायखला की लड़ाई तिकोनी हो गयी है। शिवड़ी सीट पर मनसे के बाला नांदगावकर वर्तमान विधायक हैं। उनके सामने शिवसेना अजय चौधरी को उतारा है, तो भाजपा ने महिला मोर्चे की नेता शलाका साल्वी को उम्मीदवारी दी है। यहां मनसे और शिवसेना के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। वर्ली विधानसभा सीट से सचिन अहीर राकांपा के टिकट पर विधायक हैं। जिनके सामने भाजपा ने सुनील राणे को उतारा है, तो शिवसेना के टिकट पर सुनील शिंदे मैदान में हैं। क्षेत्र में सचिन की मजबूत पकड़ को भाजपा से तो चुनौती नहीं मिल रही है। हां, इतना जरूर है कि शिवसेना के सुनील शिंदे सचिन का विजय रथ रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दिये हैं। दक्षिण मुुंबई में कांग्रेस के तीनों विधायकों के सामने भाजपा जिस रणनीति से उतरी है, यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि कांग्रेसी विधायकों की संख्या घटना तय है और यहां भाजपा की बढ़त भी निश्चित है। अब सवाल उठता है कि क्या मनसे और राकांपा का अस्तित्व यहां बचा रह पाएगा। इसके लिए हमें चुनाव परिणाम का इंतजार करना होगा। 

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