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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

मायावती का झांसा है पूर्वांचल की मांग




भारत सरकार ने तेलांगना को अलग राज्य का दर्जा देने का विचार क्या बनाया, उत्तर प्रदेश में भी पृथक पूर्वांचल की मांग उठने लगी। खास बात तो यह है कि इस मांग को हवा किसी और ने नहीं, बल्कि सूबे की मुख्यमंत्री मायावती ने ही दिया। माया द्वारा पूर्वांचल नाम से उत्तर प्रदेश को तोड़कर नया राज्य बनाने संबंधी पत्र भी भारत सरकार को भेजा जा चुका है। आनन-फानन में बहनजी द्वारा उठाए गए इस कदम ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों में एक खास चर्चा का विषय बन गया है। लोग कह रहे कि पूर्वांचल की स्थापना का औचित्य क्या है? हाल के दशकों में बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को विभाजित कर तत्कालीन एनडीए सरकार ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल की स्थापना की थी। क्या हासिल कर लिया वहां के लोगों ने? कौन सी विकास की दरिया बह गई वहां? इतना जरूर है कि उन लोगों को भी अब मुख्यमंत्री की कुर्सी मयस्सर होने लगी, जो बड़ी मुश्किल से विधायक या सांसद बन पाते थे। नए राज्यों की स्थापना के पीछे असली मकसद तो यही हुआ करते हैं, जबिक बात की जाती है क्षेत्र के विकास की। अब अगर बहनजी की बात की जाए, तो हाल के लोकसभा चुनावों में जिस तरह उनकी पार्टी बैकफुट पर गई है, उसे पुन: संजीवनी देने के लिए उन्होंने पूर्वांचल नाम का यह शिगूफा छोड़ा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कभी बसपा बहुत मजबूत हुआ करती थी। मगर जिस तरह मुलायम सिंह यादव और चौधरी अजीत सिंह गलबहियां करते दिख रहे हैं, वह मायावती के लिए भविष्य का बड़ा ही अशुभ संकेत हो सकता है। इसके अलावा पश्चिम में कल्याण सिंह सरीखे कई और भी तगड़े लोग माया को हिलाने का दम रखते हैं। ऐसे में अगर यू।पी. की सत्ता बसपा के हाथ से निकल भी जाए, तो पूर्वी हिस्से पर कम से कम कब्जा बना रहे। इसी नीयत से संभवत: मायावती ने पूर्वांचल राज्य की मांग कर डाली है। ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली बार पूर्वांचल का जिन्न बाहर आया हो। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में सक्रिय भोजपुरिया संगठनों द्वारा यह मांग लंबे समय से की जाती रही है। इससे पूर्व मायावती ने आखिर क्यों नहीं उनका समर्थन कर दिया। आज जब पावों तले जमीन खिसकती हुई नजर आ रही है, तो उत्तर प्रदेश के नक्शे पर कैंची चलाने की तैयारी कर बैठी हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में वैसे भी इस दौरान बसपा का ठीक-ठाक जनाधार है। दलित तो पहले से ही बहनजी की पूजा कर रहे थे। यादव और राजपूतों से पीडि़त ब्राम्हण भी माया का आशीर्वाद लेने लगे हैं। इसी जातीय गठजोड़ के आधार पर गत विधान सभा चुनाव में बसपा को स्पष्ट बहुमत मिला था। जिसमें पूर्वांचल की उल्लेखनीय भूमिका रही। सबसे खास बात तो यह है कि पूर्वांचल के जितने भी माफिया हैं, सभी बहनजी की शरण में आ गए हैं। इस वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश में बसपा का हाथी खूब ताकतवर हो गया है। यह सबकुछ यूं ही चलता रहे, इसके लिए आम जनता को अगर कुछ नहीं दे सके तो झांसा ही दे दिया जाए। इसी नीयत से माया ने पूर्वांचल का ये तीर छोड़ा है। यह भी नहीं है कि कांग्रेस लगे हाथ उनकी ये मांग मान ही लेगी। वैसे भी कांग्रेस से बसपा के कैसे रिश्ते हैं, सभी को मालूम है। ऐसी स्थिति में पूर्वांचल राज्य की कामना बेमानी सी लगती है। वह भी यूं कि कांग्रेस किसी ऐसे मुद्दे पर मुहर नहीं लगाएगी, जिसका फायदा मायावती को मिल रहा हो। हां इतना जरूर है कि मायावती ने पूर्वांचलवासियों के दिलों में जगह बनाने के लिए झांसा ही सही, लेकिन कुछ तो दिया है।

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