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शनिवार, 5 जून 2010

यूपी पुलिस करे भी तो क्या?


उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जब भी सूबे की कमान संभालती हैं, माफिया उन्मूलन का उनका एक कार्यक्रम सुनिश्चित है। प्रदेश का विकास हो या ना हो, विरोधी पार्टी के दबंग नेताओं की लगाम कसना नहीं भूलतीं। इस बार पुन: पंचायत चुनाव से पहले माफिया उन्मूलन अभियान की तैयारी है, ताकि प्रदेश की निचली संसद में बसपाईयों को ठूंस-ठूंस कर भरा जा सके। उनका ध्यान पूर्वी उत्तर प्रदेश पर खास तौर से है। पूर्वांचल की पुलिस को खास तौर पर ताकीद किया गया है कि जितना हो सके गुंडा तत्वों को ठिकाने लगाया जाए। प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) बृजलाल ने पुलिस के आला अधिकारियों के साथ बैठक करके गुंडा तत्वों पर नियंत्रण की बात कही है। अब सवाल यह उठता है कि पूर्वांचल के इस इलाके में एक नहीं कई बार माफिया गिरोहों की आपसी भिड़ंत में एके ४७/५६ जैसे स्वचालित हथियार चले हैं। यह भी कोई नई बात नहीं। १०-१५ साल पहले से पूर्वांचल में इन हथियारों का चलन दिखा है। वह भी तब जब यूपी पुलिस के पास ये असलहे नहीं थे। उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाही तो आज भी वही अंग्रेजों के जमाने वाला घिसा-पिटा पुराना ३०३ का मस्कट इस्तेमाल करते हैं। पुलिस थानों में एकाध एसएलआर जरूर है, मगर क्या उससे समूचा माफिया उन्मूलन सफल हो पाएगा। इसी बीच सवाल यह भी खड़ा हुआ कि तमाम ऐसे बड़े गिरोहबाज भी हैं, जो बहनजी की ही गोद में बैठे हुए हैं। बात करते हैं जौनपुर के धनंजय सिंह की। जो जोनल स्तर के गिरोहबाज हैं। मगर क्या स्थानीय पुलिस धनंजय पर हाथ डाल पाएगी। खुद बसपा के सांसद हैं। उनका बाप बहनजी की पार्टी से ही विधायक है। ऐसे में कैसे सोचा जाए कि जौनपुर जिले में सरकार का माफिया उन्मूलन सफल रहेगा। पंचायत चुनाव निष्पक्ष कराने की बात करने वाली मायावती सरकार जौनपुर जिले में भला कैसे धनंजय पर काबू पाएगी? आइए बात करते हैं बनारस इलाके की, यहां का चंदौली क्षेत्र प्रदेश स्तरीय माफिया बृजेश सिंह की कर्मस्थली है। बृजेश की बीबी एमएलसी है, तो भतीजा विधायक। चंदौली, बनारस और भदोही जिले की पंचायतों पर नजर गड़ाए बैठे बृजेश के लोगों पर मायावती की पुलिस भला कैसे कानूनी कार्रवाई कर पाएगी। गाजीपुर के माफिया विधायक मुख्तार अंसारी व अफजाल अंसारी को तो मायावती ने शिकंजे में ले लिया है। इसी तरह आजमगढ़ के रमाकांत और उमाकांत यादव पर भी पुलिस की भृकुटि हमेशा टेढ़ी ही रही है। लेकिन क्या गोरखपुर के बाबा आदित्यनाथ पर पुलिस की नजर नहीं पड़ती? प्रदेश के वरिष्ठ आईपीएस जगमोहन यादव कहते हैं कि गोरखपुर संभाग में वहां के सांसद आदित्यनाथ की समांतर सत्ता चलती है। जगमोहन बताते हैं कि जब वे वहां आईजी थे, काफी हद तक नियंत्रण किया। मगर जड़ें बहुत मजबूत हैं। इसलिए इतनी आसानी से गोरखपुर मंडल को आतंक से मुक्त कराना मुश्किल होगा। ऐसे ही गोरखपुर के बाबा हरिशंकर तिवारी, महाराजगंज जिले में अखिलेश सिंह, गोंडा में ब्रजभूषण सिंह आदि ऐसे लोग हैं, जो कहीं न कहीं पुलिस की ऐतिहासिक सूची अपना नाम दर्ज कराए हैं और जो सियासत में भी मजबूत पकड़ रखते हैं। अब सवाल यह उठता है कि जो बसपा के हैं, क्या उन पर उत्तर प्रदेश की पुलिस कार्रवाई कर पाएगी? अपने परिचित तमाम ऐसे जांबाज अधिकारी हैं यूपी पुलिस के दस्ते में, जिन्हें अगर खुला छोड़ दिया जाए, तो सूबे से गुंडागर्दी नेस्नाबूद हो जायेगी। मगर वे करें भी क्या? उनके हाथ जो बधे हैं। शासन का आदेश हो जाए, तो किसी भी नेता की बादशाहत को मिट्टी में मिलाने की माद्दा रखने वाले तमाम पुलिस अधिकारी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। पार्टी के हिसाब से माफिया उन्मूलन की बात उन्हें रोक देती है। ऐसे में यूपी की पुलिस करे भी तो क्या? अब बसपावालों का पक्ष ले, विरोधियों पर कहर बरपाये, यह भला कैसे हो सकता है?

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