राजा के बहाने नेताजी पर निशाने |
उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया पर डीएसपी कुंडा जिया उल हक की हत्या में साजिश रचाने का आरोप लगाया गया है. राजा के ही बहाने विपक्ष को अखिलेश की सपा सरकार को घेरने का मौक़ा मिल गया है. जातीय संघर्ष में बीच-बचाव करने पहुंचे डिप्टी एसपी हक़ को बहुत ही बेरहमी से मारा गया. मौक़ा-ए-वारदात से जो कुछ पता चला है, उससे स्पष्ट होता है कि बड़े ही सुनियोजित तरीके से हक़ को मौत के घात उतारा गया और हक़ के साथ गए कई थानों के पुलिसकर्मी रात के अन्धेरे में दूर से टार्च मारते रहे, लेकिन कोई करीब जाने की जहमत नहीं उठाया. सीओ के हमराही पुलिस वाले तब गाव में घुसे, जब हमलावर अपना मकसद पूरा कर चुके थे. जो कुछ देखा गया, उससे ऐसा लगता है कि हमलावर पुलिस अधिकारी के प्रति बहुत गुस्से में थे, क्योकि उन्होंने क़त्ल के दौरान क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थी. वारदात के तुरंत बाद स्थानीय विधायक राजा भैया पर उंगली उठी और आनन-फानन में उन्होंने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा भी दे डाला. अब मामले की जांच सीबीआई को सौप दी गयी है और राजा को दुरुस्त करने की कवायद भी शुरू हो गयी है. क्योकि इस मामले को अल्पसंख्यक सियासत से जोड़ कर देखा जा रहा है. तमाम मुस्लिम नेताओं ने मृत पुलिस अधिकारी के घर पर पहुच कर आग में घी डालने का काम शुरू कर दिया है. सीएम अखिलेश स्वतः मृतक के घर पहुचे और आर्थिक इमदाद, सरकारी नौकरी तथा सीबीआई जांच के आदेश दिए, तो जाकर मामला कुछ शांत हुआ. लेकिन तमाम लोग अब भी राजा की गिरफ्तारी की मांग पर अड़े हैं, जो शायद एक-दो दिन में हो भी जायेगी. क्योकि जब रपट लिखी गई है, तो गिरफ्तार तो करना भी पडेगा. वैसे भी सरकार के कई मंत्री चाह रहे हैं कि कैसे भी राजा का बाजा बजे और उनका कद छोटा हो. एक बात जरूर है कि इस बार जैसे ही अखिलेश ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, तभी यह चर्चा शुरू हो गयी थी कि अब सूबे में जंगलराज कायम होगा और माफिया शासन चलाएंगे. हुआ भी कुछ ऐसा ही. राजा भैया का मामला सीधा एक पुलिस अधिकारी के क़त्ल से जुडा है लेकिन कई एन्य नेताओं के कारनामों ने अखिलेश सरकार को शर्मसार किया है. सपा को सत्ता में आये साल भर भी पूरे नहीं हुए, मगर कानून-व्यवस्था की नजर से कई खामियां सामने आयीं. कुंडा की इस वारदात के दौरान ही अकबर पुर में एक हिंदूवादी नेता राम बाबू गुप्ता की हत्या कर दी गयी, जिसमे स्थानीय सपा विधायक की संलिप्तता बताई जा रही है. ऐसे ही पूरे प्रदेश में कई जगह पुलिस पार्टियों पर हमले और तमाम नेताओं द्वारा सरकारी अधिकारियों को बेइज्जत करने के समाचार लगातार आ रहे हैं. ऐसे में क्या राजा भैया की मुश्कें कस कर अखिलेश प्रदेश की क़ानून व्यवस्था को पटरी पर ला पायेंगे. यही क़ानून व्यवस्था और गुंडाराज था जिसकी वजह से २००५ में मुलायम सिंह यादव को सत्ता से हाथ धोना पडा था और तत्कालीन विधान सभा चुनाव में सपा को करारी शिकस्त देकर मायावती ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया था. २०१२ के चुनाव में पुनः यूपी के लोगों मुलायम सिंह के नेतृत्व में भरोसा जताया और अखिलेश सीएम बन गए. मगर अखिलेश से यह सब कुछ संभल नहीं पा रहा है और जब से उन्होंने सत्ता संभाली है, प्रदेश में मानो माफियाराज कायम हो गया है. साम्प्रदायिक उन्माद और क़त्ल की कई प्रमुख वारदातों ने अखिलेश सरकार को कटघरे में खडा कर दिया है. अब राजा भैया के ऊपर सीओ की ह्त्या करवाने का आरोप मढ़कर सरकार खुद को पाक-साफ़ बताने की कोशिश में लगी है, लेकिन बात इतनी बिगड़ गयी है कि पानी सर से ऊपर जाता दिख रहा है. राजा भैया पर कार्रवाई करने से थोड़ी हिचक भी है सरकार में, क्योकि सत्ता पक्ष में राजा का तगड़ा वर्चस्व है. सरकार में राजा के समर्थक तीन दर्जन से भी ज्यादा एमएलए बताये जाते हैं. जिनमे अधिकांश राजपूत बिरादरी के हैं, तो कई अन्य दूसरी जातियों से ताल्लुक रखते हैं. पार्टी को यह भी डर सता रहा है कि कहीं राजा भैया को हवालात में डाला गया, तो संभव है कि सरकार लुढ़क न जाय. राजा भैया जैसों को यूपी में प्रश्रय देने का श्रेय अगर किसी को जाता है, तो वह मुलायम सिंह ही हैं. प्रदेश के हर दबंग को नेताजी ने संरक्षण दिया और जितना हो सका उन्हें पोषा भी. आज वही सपा सरकार के लिए फजीहत का सबब बने हुए हैं. आज जिस भी पार्टी में राजा भैया जैसे लोग हैं, उनके राजनैतिक कैरियर की शुरुवात मुलायम सिंह के ही साथ हुई थी और अपने ऐसे चेलों का मुलायम ख्याल भी खूब रखते हैं. तभी तो इलाहाबाद में अतीक, गाजीपुर में मुख्तार, भदोही में विजय मिश्रा, आजमगढ़ में उमाकांत-रमाकांत बंधु , फैजाबाद में मित्रसेन यादव और अभय सिंह, जौनपुर में धनंजय सिंह, प्रतापगढ़ में राजा और सुल्तानपुर में सोनू सिंह आदि लोगों ने जम कर अपना साम्राज्य फैलाया और आज ये लोग वक्त-बे-वक्त प्रशासन के लिए मुसीबत खडी करते रहते हैं. एक समय था जब ९० के दशक में मुलायम सिंह के इशारे पर उनके इसी तरह के कुछ विधायकों ने मायावती के ऊपर सरेआम हमला बोल दिया था. वो तो भाजपा के कुछ नेता बीच में आ गए, वरना बहिनजी का काम तमाम हो गया होता. यूपी की सियासत में मुलायम सिंह यादव की एक ऐसे नेता की छवि है, जो माफिया से बिलकुल परहेज नहीं करते. यही नहीं जरूरत पड़ने पर हर स्तर पर पोषण भी करते हैं. अपनी पार्टी के दबंगों का पोषण और विरोधियों का दमन मुलायम सिंह की बहुत पुरानी स्टाईल है. पंचायतों के चुनाव में तो मुलायम का यह माफिया नेटवर्क उनको बहुत कामयाबी दिलाता है. इसी वजह से ऐसे तत्वों से घिरे हुए हैं नेताजी. अब देखना है कि वो राजा पर किस तरह की कार्रवाई करते हैं.
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